अजमल आमिर क़साब। मुंबई हमले के आरोपी इस आतंकी के हौसले कितने बुलंद थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जेल में पुलिसकर्मियों से वह कहता था कि जब भारत की संसद पर हमले के गुनहगार अफजल गुरु को आठ साल में फांसी नहीं दे सके तो मुझे क्या दोगे? कसाब को संसद पर हुए हमले को कितने साल हुए हैं, इसका उसे बिलकुल ठीक साल याद था।
इस बात का खुलासा 26/11 हमले के मुख्य जांच अधिकारी रहे रमेश महाले ने किया। महाले ने हिन्दुस्तान से खास बातचीत में बताया कि वह बहुत जल्द इस अनुभव को किताब के जरिये दुनिया से साझा करने जा रहे हैं। उनकी किताब छप चुकी है। बस जल्द ही सबके सामने होगी।
जिसमें वह कई खुलासे करने वाले है। साथ ही इस किताब में पाकिस्तान की उन साजिशों का भी पर्दाफाश होगा जिसे शायद कम ही लोग जानते हैं।
कसाब के चेहरे पर नहीं थी कोई शिकन
महाले बताते हैं सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकी कसाब को इस बात का जरा भी मलाल नहीं था कि उसकी वजह से कितने बेगुनाहों की जान चली गई। महाले बताते हैं कि जांच के दौरान कसाब ने कोई अफसोस नहीं जताया। उसने कहा कि वह मुंबई पर हमला करने इसलिए आया था ताकि विदेशी सैलानियों का आना जाना कम हो जाए और दुनिया में भारत को लेकर असुरक्षा का संदेश जाए और मुंबई के पर्यटन को बिगाड़ सके।
जब कसाब ने कहा- कोई राखी बांध देगा..
रमेश महाले कहते हैं कसाब के अंदर इमोशन नहीं नाटक ज्यादा था। वह अक्सर पेशी के दौरान तरह तरह के नाटक करता था। एक बार की बात है कि रक्षाबंधन के दौरान उसकी कोर्ट में पेशी थी। जब उसने लोगों के हाथों में रक्षाबंधन बंधे देखा तो कहने लगा कि मुझे भी कोई राखी बांधेगा क्या?। इसी तरह एक बार उसने कोर्ट में बयान दिया कि जेल पुलिस उसे मारना चाहती है और उसके खाने में जहर मिलाकर दिया गया था। जब कोर्ट के आदेश पर उस चावल की जांच कराई गई तो फारेंसिक रिपोर्ट में निकला कि चावल में कोई जहर नहीं मिलाया गया था। इस तरह वह बीच बीच में नाटक करता रहता था। जिससे लोगों को उस पर तरस आए।
कसाब की ट्रेनिंग सबसे बेहतर थी
महाले बताते हैं कि उन्होंने जांच के दौरान कसाब से जो भी पूछताछ उस पर स्टड़ी करने के बाद एक सबसे चौंकाने वाली बात जो सामने आई वह यह थी कि उसे पुलिस, सेना, नेवी और इंटेलीजेंस की भी उसको ट्रेनिंग दी गई थी। रमेश महाले को जांच में कसाब ने बताया कि उसे पाकिस्तान में बताया गया था कि भारत में मुस्लमानों को नमाज़ नहीं पढ़ने दी जाती है।
सहयोगी प्रस्तुति : धीरज राय/अलकेष कुशवाहा
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