चंड़ीगढ़: : एक गुमनाम चिट्ठी के कितने मायने हैं। यह डेरा मुखी पर लगे यौन शोषण के आरोपों से ही पता चलता है। जब यह चिट्ठी सामने आई तो कोई यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि डेरा मुखी पर इस तरह के आरोप भी लग सकते हैं। 2002 में एक गुमनाम साध्वी ने एक गुमनाम चिट्ठी लिखी। वह कौन थी, कहां से आई, उसके साथ क्या हुआ था, किसी को नहीं पता। वह कहां रह रही है, वह आज भी गुमनाम है। बस कोर्ट की सुनवाई में दर्ज उसके बयान ही उसकी पहचान भर हैं।
जब यह चिट्ठी सामने आई तो किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। वजह थी डेरे की प्रतिष्ठा, लेकिन मई 2002 में सिरसा के तत्कालीन सैशन जज को इस चिट्ठी की जांच सौंपी गई। इसमें आशंका जाहिर की गई कि कुछ तो गलत है जिसकी जांच होनी चाहिए। इसे लेकर हाईकोर्ट ने सी.बी.आई जांच के निर्देश दिए। सितंबर 2002 में हाईकोर्ट ने चिट्ठी में लगाए गए आरोपों की जांच सी.बी.आई. से कराने के निर्देश दिए। सी.बी.आई. ने केस लेते ही पहले इसकी जांच की। इसमें पाया गया कि जांच के लिए पर्याप्त तथ्य हैं। तब दिसंबर 2002 में सी.बी.आई. ने राम रहीम के खिलाफ 376, 506 व 509 में मामला दर्ज कर लिया। केस दर्ज होते ही डेरे की ओर से दिसम्बर 2003 से सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ अपील की गई। अक्तूबर 2004 तक मामले में स्टे लगा रहा। जैसे ही स्टे हटा तो जांच में तेजी आई।
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