क्या आपको भी नींद नहीं आती !

बहुत से लोगों को नींद न आने की बीमारी होती है. उन्हें कोई न कोई फ़िक्र सताती रहती है.

वो लेटते हैं तो उन्हें पिछले काम की फ़िक्र होती है कि वो काम ठीक से हुआ या नहीं. या फिर ये सोचते रहते हैं कि उठकर क्या काम करना है. इस चक्कर में लोग सो नहीं पाते.

ऐसे न सो पाने से परेशान लोगों के लिए एक मददगार आ गया है. पश्चिमी देशों में इसे ‘स्लीप कोच’ या सुलाने वाला प्रशिक्षक कहा जाता है.

ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना की रहने वाली कर्स्टिन श्नाइडरबॉर को ही लीजिए. वो जब भी सोने जाती थीं, उन्हें कोई न कोई फ़िक्र सताती रहती थी. इस वजह से वो सो नहीं पाती थीं.

नींद न पूरी हो पाने से वो बहुत परेशान रहती थीं.

तभी एक दोस्त ने उन्हें सोने के लिए स्लीप कोच की मदद लेने का मशविरा दिया. पहले तो कर्स्टिन ने इस सलाह को ख़ारिज कर दिया.

उन्हें लगता था कि सोने की ट्रेनिंग देने वाला ये कोच उन्हें एक फेहरिस्त पकड़ा देगा. जिसमें लिखा होगा कि क्या करना है और क्या नहीं करना.

मगर जब दोस्तों और अपने पति के ज़िद्द पर उन्होंने स्लीप कोच की मदद ली तो उन्हें चौंकाने वाला तजुर्बा हुआ.

उनकी स्लीप कोच क्रिस्टिना स्टेफन के साथ कर्स्टिन की पहली मुलाक़ात इतनी दिलचस्प नहीं रही. स्टेफन उन्हें नहीं बता रही थीं कि क्या नहीं करना है. बल्कि वो तो कर्स्टिन से सवाल कर रही थीं.

कर्स्टिन के बारे में, उनके परिवार के बारे में. कर्स्टिन कहती हैं कि उनकी पहली दिक़्क़त थी कि वो कभी दफ़्तर के माहौल से अलग नहीं महसूस करती थीं. वहां के काम की फ़िक्र उन्हें हमेशा सताती थी.

लेकिन स्टेफन से पांच-दस मुलाक़ातों के बाद कर्स्टिन को बेहतर नींद आने लगी थी.

जब वो रात में जागती थीं तो स्टेफन के बताए तरीक़ों से दिमाग़ में कई तस्वीरें बनाती रहती थीं. इसे विज़ुअल इमेजिंग कहते हैं. इसके साथ ही उन्होंने अपनी कुछ आदतों में भी तब्दीली लाने की कोशिश की थी.

जैसे कि वो शाम के वक़्त काग़ज़ पर अपने अगले दिन का काम लिख लेती थीं. शाम के वक़्त उन्होंने घर पर, दफ़्तर का ज़िक्र करना बंद कर दिया था.

आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि आधी दुनिया ठीक से नहीं सोती है. दुनिया के पैंतालीस फ़ीसद लोग नींद न आने की परेशानी झेल रहे हैं. इस वजह से उनकी सेहत और ज़िंदगी पर असर पड़ रहा है.

अच्छे से न सो पाने से सेहत को भारी नुक़सान होता है. बच्चे ठीक से नहीं सो पाते तो वो मोटे होने लगते हैं. दिमाग़ी रूप से भी वो सेहतमंद नहीं होते.

बड़े लोगों में नींद पूरी न होने से डिप्रेशन, फ़िक्र और दूसरी दिमाग़ी परेशानियां होने लगती हैं.

अकेले ब्रिटेन में ही एक करोड़ लोग, ठीक से सोने के लिए डॉक्टरों के कहने पर नींद की गोलियां ले रहे हैं.

अमरीका में क़रीब तीन हज़ार ऐसे क्लिनिक चल रहे हैं जो लोगों को बेहतर नींद लेने के लिए मदद कर रहे हैं.

इस परेशानी से निपटने के लिए अमरीका में लोग क़रीब सात अरब डॉलर सालाना ख़र्च कर रहे हैं. पूरी दुनिया में नींद की बीमारी का ये कारोबार क़रीब 58 अरब डॉलर का है.

कोई नींद की गोली में पैसे ख़र्च कर रहा है, तो कोई गद्दे और तकियों पर. कोई नींद के लिए स्लीप लैब में जा रहा है.

इसी कड़ी में नया चलन है स्लीप कोच का. पहले नींद न आने से परेशान खिलाड़ी स्लीप कोच की मदद लेते थे. मगर आज आम लोग भी ठीक से सोने के लिए स्लीप कोच के पास जा रहे हैं.

यूरोप में स्लीप कोच की एक घंटे की फ़ीस सत्तर से 130 यूरो तक है.

स्पेन के एक्सपर्ट स्टीवन मैक्ग्रेगर कहते हैं कि सोना आज की तारीख़ में पेशेवर क़ाबिलियत माना जाता है. इसे सीखने की, इसका अभ्यास करने की और फिर सीखे हुए को आज़माने की ज़रूरत है.

आज हर इंसान के लिए अच्छी नींद लेना सीखना चाहिए.

जैसे अमेज़न के चीफ जेफ बेज़ोस, अपने बारह घंटे के काम के बाद आठ घंटे की नींद को ही तरजीह देते हैं.

इसी तरह हफिंग्टन पोस्ट की संस्थापक अरियाना हफिंग्टन को भी अच्छी नींद की अहमियत मालूम है. एक दिन वो दफ़्तर में ही सो गई थीं.

सोते-सोते उनका सिर मेज से टकरा गया था, इससे उनकी ठोढ़ी की हड्डी टूट गई थी. तब उन्हें नींद की अहमियत समझ में आई.

अरियाना तब से अपने हर जानने वाले को अच्छी नींद लेने की सलाह देती रहती हैं.

स्पेन के स्लीप एक्सपर्ट, स्टीवन मैक्ग्रेगर, कई कंपनियों के लिए काम करते हैं. वो बताते हैं कि अच्छी नींद न आने से लोगों को फ़ैसले लेने में दिक़्क़त होती है. उनके काम पर असर पड़ता है.

अच्छी तरह सो लेने के बाद आप रोज़मर्रा के तनाव का सामना बेहतर तरीक़े से कर सकते हैं.

फिर भी आज बहुत से लोग ठीक से नहीं सो पा रहे हैं. जानकार कहते हैं कि नींद न आने की ज़्यादातर परेशानी, थोड़ी सी कोशिश करके ठीक की जा सकती है.

लेकिन ज़्यादातर लोग इसे गंभीरता से लेते ही नहीं.

अच्छी बात ये है कि नींद लेने के लिए हमेशा बेडरूम में लेटने की ज़रूरत नहीं. आप दफ़्तर में कुछ मिनटों की झपकी लेकर भी बेहतर महसूस कर सकते हैं.

मीटिंग से पहले आधे घंटे की नींद से आपका काम कई गुना बेहतर हो सकता है.

स्टीवन कहते हैं कि अक्सर सफ़र करने वालों को सफ़र के दौरान झपकी लेने की आदत डाल लेनी चाहिए.

जर्मनी की स्लीप कोच सिबली चौधरी कहती हैं कि अच्छी नींद लेने के लिए सिर्फ़ स्लीप कोच की मदद लेने से काम नहीं चलेगा. इसके लिए ज़रूरी है कि आपके अंदर भी ठीक से सोने की ख़्वाहिश हो.

चौधरी के मुताबिक़, ठीक से सोना, ख़ुद हर इंसान पर निर्भर करता है. कोचिंग से आपको इसमें मदद मिलती है. जो सोने के लिए ख़ुद कोशिश करने को नहीं तैयार हैं, उन्हें स्लीप कोच भी नहीं सुला सकता.

इसके लिए आपको अपनी सोच बदलनी होगी. आपको ये मालूम होना चाहिए कि नींद क़ुदरती तौर पर नहीं आती.

जैसा कि ज़्यादातर लोग सोचते हैं. लोग ये भी सोचते हैं कि थक-हारकर नींद आ ही जाएगी. ऐसा भी नहीं होता. सबसे ज़्यादा फ़िक्र की बात ये है कि लोग नींद को सीरियसली नहीं लेते.

सिबली चौधरी कहती हैं कि जैसे हम बेहतर सेहत के लिए जिम जाते हैं, वर्ज़िश करते हैं. वैसे ही हमें अच्छी नींद के लिए भी कोशिश करनी होगी.

वो कहती हैं कि अच्छी नींद के लिए अपने रहन-सहन में बदलाव लाना होगा. नींद न आने की कोई एक वजह नहीं होती.

इसके लिए कई बुरी आदतें और आपका माहौल ज़िम्मेदार होता है. अक्सर इसके लिए हम ख़ुद ज़िम्मेदार होते हैं.

इसीलिए अच्छे से सोने के लिए हमें ख़ुद में बदलाव लाना होगा.

और ख़ुद को बदलना शायद सबसे मुश्किल काम है! है न?

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