छत्तीसगढ़: ‘फ़र्ज़ी मुठभेड़’ का दारोगा गिरफ़्तार

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर की आदिवासी लड़की मीना खलखो अगर आज ज़िंदा होती तो उनकी उम्र 22 साल के आसपास होती. लेकिन मीना खलखो अब केवल ख़बरों और फ़ाइलों में बची हुईं हैं.
छत्तीसगढ़ में माओवाद, मुठभेड़ और आदिवासियों के हालात पर जब भी चर्चा होती है, मीना खलखो का नाम सामने आ ही जाता है.
दो दिन पहले छत्तीसगढ़ पुलिस के एक दारोग़ा की गिरफ़्तारी के बाद मीना एक बार फिर चर्चा में हैं.
राज्य की सीआईडी का दावा है कि अगर ठीक-ठीक गिरफ़्तारियां हुईं तो यह मामला देश में फ़र्ज़ी मुठभेड़ के मामलों की नज़ीर बन जाएगा.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा, “देश में माओवाद के नाम पर आदिवासियों के साथ क्या कुछ हो रहा है और सरकारें इन मामलों में कितनी असंवेदनशील हैं, मीना खलखो का मामला उसकी नज़ीर बन चुका है.”
बलरामपुर के करचा गांव के पास पुलिस ने 6 जुलाई 2011 को कथित माओवादियों के साथ मुठभेड़ में 16 साल की मीना खलखो को मारने का दावा किया था.
पुलिस का कहना था कि माओवादी मीना खलखो की गिरफ़्तारी के लिए पुलिस दल करचा पहुंचा था, जहां माओवादियों और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ में मीना खलखो मारी गईं.

लेकिन चेरो और उरांव आदिवासियों वाले इस गांव के सारे लोग एक सुर में पुलिस की इस कहानी के ख़िलाफ़ खड़े हो गए. गांव वालों का कहना था कि मीना गांव में बकरियां चराती थीं और उनका माओवादियों से कोई लेना-देना नहीं था.
मीना की मां गुथियारी खलखो कहती हैं, “मेरी बेटी को घर का काम-काज करने और बकरियां चराने के अलावा साइकिल चलाना बहुत पसंद था. घटना वाले दिन भी वह शाम को तैयार हो कर साइकिल से नदी के पास जाने की बात कह कर निकली थी”.
वे इसके आगे जोड़ती हैं, “अगले दिन हमें बलरामपुर अस्पताल ले जाया गया, जहां मीना की लाश हमें सौंप दी गई. उसकी साइकिल का कहीं अता पता नहीं था. उसकी देह ख़ून से सनी हुई थी.”
मामला राजधानी रायपुर तक पहुंचा तो राज्य सरकार ने आनन-फ़ानन में मीना के परिजनों को मुआवज़ा देने की घोषणा कर दी.
संसद में मीना के फ़र्ज़ी मुठभेड़ का मामला उठा. विधानसभा में तीखी बहसें और विपक्षी दलों के वॉकआउट के क़िस्से अख़बारों की सुर्ख़ियां बनीं.
इसके बाद राज्य सरकार ने 30 अगस्त, 2011 को पूरे मामले की जांच बिलासपुर की ज़िला न्यायाधीश अनिता झा से तीन महीने के भीतर कराने की घोषणा की.

न्यायिक आयोग की रिपोर्ट को आते-आते चार साल गुज़र गए.
न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि मीना का माओवादियों से कोई संबंध नहीं था और मीना को पुलिस ने मार डाला.
रिपोर्ट को आधार बना कर सरकार ने मामले की सीआईडी जांच के आदेश दिए. इसके बाद अप्रैल 2015 में सीआईडी ने 11 पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ हत्या और 14 अन्य पुलिसकर्मियों पर हत्या में सहयोग करने के आरोप में मामला दर्ज किया.
मंगलवार को इस मामले में सीआईडी ने मीना खलखो की हत्या करने वाले पुलिस दल की अगुवाई करने वाले दारोग़ा निकोदीन ख़ेस्स को गिरफ़्तार कर लिया. उन्हें जेल भेज दिया गया है.

राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आरके विज़ कहते हैं, “इस मामले में यह पहली गिरफ़्तारी है. इस मामले में तीन लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द रिपोर्ट दर्ज की गई है और दूसरे अज्ञात लोगों पर भी आरोप हैं. इससे जुड़े सभी लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी.”
मानवाधिकार संगठ पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ ईकाई के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह का कहना है कि पुलिस लगातार इस तरह के मामलों में अपने साथियों के बचाव की मुद्रा में रहती है और इस मामले में भी यही हो रहा है.
वे मीना खलखो मामले में दारोग़ा की गिरफ़्तारी को दिखावा बताते हैं.
उन्होंने कहा, “बस्तर में आदिवासियों के फ़र्ज़ी मुठभेड़ों को लेकर मानवाधिकार आयोग से लेकर जनजाति आयोग तक सवाल खड़े कर चुके हैं. उनकी जांच में पुलिसकर्मी दोषी पाए गए हैं. लेकिन राज्य सरकार ऐसे अफ़सरों को जेल में डालने के बजाए, उनका सम्मान कर रही है.”

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