नई दिल्ली. ज़रूरी दवाओं के ऊंचे दाम काबू में ना रख पाने की आलोचना झेल रही सरकार इस दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रही है. ऐसे भी आरोप लगते रहे हैं कि डॉक्टरों और दवाओं कंपनियों में साठगांठ की वजह से मरीजों को ब्रैंडेड दवाएं खरीदने को मजबूर होना पड़ता है. केंद्र सरकार ने अब कहा है कि डॉक्टर्स के लिए अनिवार्य कर दिया जाएगा कि वो जेनेरिक दवाओं को प्रेस्क्रिप्शन पर लिखें. साथ ही दवा विक्रेताओं को भी ये अनुमति होगी कि वो डॉक्टर की लिखी ब्रैंडेड दवा को जेनेरिक दवा से सब्सिट्यूट कर सकें.
जेनेरिक दवा में सिर्फ साल्ट का नाम लिखा जाता है, जैसे कि पैरासिटामोल. ब्रैंडेड दवा में पैरासिटामोल को ही अलग अलग कंपनिया अपने अलग अलग ब्रैंडेड नाम से बेचती हैं.
कैमिकल एंड फर्टिलाइजर मंत्री अनंत कुमार ने बताया कि पिछले साल दवाओं की मार्केटिंग के गलत तौर तरीकों पर स्वैच्छिक यूनिफार्म कोड का रास्ता अपनाया गया था, लेकिन वो अधिक कारगर साबित नहीं रहा. अनंत कुमार के मुताबिक उन्होंने इस दिशा में बदलाव के का मुद्दा स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ उठाया है.
अनंत कुमार ने कहा कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों को भी आवश्यकतानुसार बदला जाएगा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नए मेडिकल रेग्युलेशन के मसौदे में लिखा गया है कि हर फिजीशियन को वैधानिक जेनेरिक नामों के साथ दवाओं को प्रेस्क्राइब करना चाहिए और इसके लिए पर्चे पर उनका नाम कैपिटल लैटर्स में लिखने को प्रमुखता देनी चाहिए.
ये रेग्युलेशन डॉक्टर्स से ये भी अपील करता है कि वो जहां तक संभव हो सके जेनेरिक दवाओं को ही प्रेस्क्राइब करें.
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