दलितों के न्याय के लिए आमरण अनशन

11 जुलाई को गुजरात के उना गांव में दलितों की कथित गोरक्षकों के द्वारा हुई पिटाई के बाद दलित आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है.

गुजरात के गांधीनगर में 14 दलितों ने सामाजिक बहिष्कार के चलते आमरण अनशन शुरू किया है.

प्रतिरोध संस्था के दलित नेता राजू सोंलकी ने बीबीसी से कहा कि, “पिछले कई महीने से गुजरात के 77 गांवों के दलितों ने अपने गांव छोड़ दिए हैं. फिर भी राज्य सरकार इस बारे में कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है, इसी कारण मजबूरन हमें आमरण अनशन शुरू करना पड़ा है.”

गांधीनगर की उपवास छावणी नाम के स्थान पर पिछले 14 दिनों से प्रतिरोध संस्था द्वारा दलितों के नौ परिवारों ने उपवास शुरू किया है.

 

उनकी मांग है कि उना कांड के बाद ऊंची जाति के लोग हमारा सामाजिक बहिष्कार कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें राज्य के द्वारा सरकारी तौर पर अन्य स्थानों पर पुन: स्थापित करना चाहिए.

सुरेन्द्रनगर ज़िले के सायला गांव के जहाभाई राठौड़ ने बीबीसी से बात करते हुए बताया कि, “2010 में भारतीय सेना में काम रहा मेरा बेटा दिनेश छुट्टी लेकर घर आया था, तब उसकी हत्या हो गई. उसकी हत्या के अभियुक्तों को कमजोर जांच के कारण अदालत ने बरी कर दिया था. बरी हुए अभियुक्तों ने उनका जीना हराम कर दिया है और गांव छोड़ने को मजबूर कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “हम इस मामले को लेकर कई बार राज्य के मंत्री के पास गए, उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि सब ठीक हो जाएगा. लेकिन कुछ हो नहीं रहा है. मेरी आयु 80 साल की है, मेरी बीवी 75 साल की है और हम उपवास पर बैठे हैं.”

इस बारे में बीबीसी ने राज्य के मंत्रियों से बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने बात नहीं की.

हालांकि गुजरात भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता भरत पंड्या ने बीबीसी को बताया कि, “राज्य सरकार दलितों के इस मामले को गंभीरता से ले रही है और कानून के तहत दलितों पर अत्याचार करने वालों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई होगी.”

भरत पंड्या ने ये भी कहा कि दलितों के गांव छोड़ने को दलितों और ऊंची जाति के बीच संघर्ष के रूप में ही नहीं देखना चाहिए. कई बार इसकी वजह निजी दुश्मनी भी हो सकती है.

जबकि दलित नेता राजू सोलंकी ने बताया कि, “गुजरात मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल गुजरात के 77 गांवों में दलितों को अपना घर और गांव छोड़ना पड़ा क्योंकि गांव के लोग दलितों को काम से वंचित रखते थे. उनसे बात नहीं करते थे और किसी भी प्रकार का सामाजिक व्यवहार नहीं करते थे. यह भी एक तरह का अत्याचार है.”

सोंलकी ने बताया कि, “हम पिछले 14 दिनों से भूख हड़ताल कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ़ से कोई हमसे मिलने भी नहीं आया. हम राज्य के सामाजिक विभाग के मंत्री आत्माराम परमार से मिलने गए थे. वे खुद भी दलित हैं. लेकिन वो भी हमारी स्थिति को समझने को तैयार नहीं हैं. इसी वजह से राज्य सरकार जब तक हमें विस्थापित घोषित नहीं करती तब तक हम आमरण अनशन जारी रखेंगे.”

गांधीनगर सिलिव अस्पताल के सूत्रों के मुताबिक उपवास पर बैठे कुछ लोगों की हालत नाज़ुक होती जा रही है.

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