भोपाल। अटल बिहारी बाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय में बिना मान्यता और सुविधाओं के शुरू किए गए कई विषय विवि प्रबंधन के लिए गले की हड्डी बन गए हैं। पहले बिना अनुमति के शोधार्थियों को एडमिशन देकर पीएचडी शुरू करा दी गई, जिन्हें प्रदेश के तीन विश्वविद्यालयों में एडजस्ट करना पड़ा। अब इंफ्रास्टक्चर व अनुमति के बिना शुरू किए गए इंजीनियरिंग के छात्रों को आरजीपीवी भेजा जा रहा है। इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, आरजीपीवी रिक्त सीटों के हिसाब से इन्हें शिफ़्ट करेगा। हिन्दी विवि को इंजीनियरिंग के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) से मान्यता नहीं मिली है। इसके चलते यहां प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों को आरजीपीवी में भेजा जा रहा है। विवि पांच वर्षों से मेडिकल, इंजीनियरिंग की डिग्री हिंदी में देने का प्रयास कर रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में एआईसीटीई से इंजीनियरिंग की मान्यता नहीं मिल पाई है। वहीं मेडिकल में प्रवेश के लिए विवि जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर जुटा रहा है, ताकि मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया से अनुमति मिल सके।
मान्यता के अभाव में इंजीनियरिंग के द्वितीय वर्ष में पॉलीटेक्निक डिप्लोमाधारियों के प्रवेश तक विवि को निरस्त करने पड़े थे। छात्रों के भविष्य को देखते हुए रजिस्ट्रार सुनील पारे ने आरजीपीवी को पत्र लिखकर विद्यार्थियों कोशिफ़्ट करने के लिए कहा है।
डेढ़ सौ शोधार्थी तीन विवि में हुए थे शिफ़्ट
हिन्दी विवि में विभिन्न विषयों में पीएचडी शुरू की गई थी, जिसमें ढाई सौ से अधिक शोधार्थियों ने हिन्दी में पीएचडी के लिए आवेदन किया था। इनमें से डेढ़ सौ से अधिक शोधार्थी कोर्स वर्क में पास हुए थे।
यूजीसी ने नया नियम लागू किया कि नियमित प्रोफेसर ही गाइड बन सकते हैं। हिन्दी विवि में एक भी प्रोफेसर नियमित नहीं हैं, ऐसे में इन डेढ़ सौ शोधार्थियों को बीयू, उज्जैन और इंदौर के विवि में शिट किया गया था।
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