भोपाल (एनएसएन)। दुनिया में कोई एक ऐसी जगह बताओ जहां धर्मवाद, जात-पात, पूंजीवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, सामंतवाद, कट्टरवाद न हो ! हां यह सही है कि इन सब के चलते उस देश का उस राष्ट्र का बहुत बड़ा नुकसान होता रहता है देश की जनता फिर नई आने वाली सरकार से अपने भविष्य की उम्मीदें लगा बैठती है ! यही उसकी सोच उस देश के संविधान और लोकतंत्र में आस्था और विश्वास के साथ हताश और निराश नहीं होता इसी को राष्ट्रवाद कहते हैं ! लेकिन जब किसी ने धर्म आधारित बटवारे के समय अपने स्वार्थों को ठुकराते हुए, अपने व अपने पूर्वजों की जन्मस्थली को ही अपने मादर-ए-वतन माना हो उससे बड़ा देशभक्त कोई नहीं हो सकता उसे कहते हैं भारतीय मुस्लिम, जिसे धर्म निरपेक्ष राजनीतिक दलों ने सिर्फ तुष्टीकरण ही करा है !
दुनिया के सभी देशो में से सबसे बड़ी निवासरत आबादी जो उस भारतीय समाज का हिस्सा मुस्लिम समुदाय का दोहन शोषण और सिर्फ वोट बैंक तक सीमित ! “मुसलमानों को मत समझिए वह वोटों की मंडी”, यह कथन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम में अपने उद्गार व्यक्त किए ! उन्होंने आगे कहा कि गरीब हमारे लिए सब नारा नहीं ! दलित, शोषित, वंचित, किसान यह हमारे राजनीतिक नारा नहीं है यह हमारा कमिटमेंट है “सबका साथ सबका विकास !”
यह सत्य ही नहीं बिल्कुल सच है अपने मुंह से धर्म निरपेक्ष कहने वाला राजनीतिक दल ने दलित, अल्प संख्यक, पिछड़ा वर्ग सभी का शोषण और तुष्टिकरण करा है ! दलित आज भी दलित, अल्पसंख्यक समुदाय से मुस्लिम समाज दलित से बदतर है, पिछड़ा वर्ग पिछड़ा हुआ ही है ! इस सामाजिक शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन की एक ही वजह है उस समाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिलना और जिन्हे मिला या तो वह अयोग्य थे या अपना पेट भरते रहें !
विश्वविख्यात धर्मनिरपेक्षता का ढकोसला और ढोल पीट कर मुसलमानों के वोट हथियाने वाला राजनीतिक दल की प्रवर्ती मुस्लिम पर्सनल ला को संवेधानिक स्वरूप नहीं जी हां यह सत्य है मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड एक एनजीओ की स्थिति में है ! हमारे मुस्लिम पर्सनल ला (जो शरीयत कुरान और हदीस की रोशनी में गठित है) जिसमें कोई परिवर्तन हो ही नहीं सकता जहां आए दिन विवाद की स्थिति आए दिन ! “मेरा ऐसा मानना है संविधान स्वरूप होता तो माननीय न्यायालय भारत का कोई भी मुस्लिम नागरिक केस में हस्तक्षेप य बदलाव लाने की या अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट करने का उसको अधिकार नहीं होता ! जब निकाह और तलाक वाले मामले में ही देख लीजिए के धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार तो अब मुस्लिम पर्सनल ला के लिहाज से तलाक क्यों नहीं ! यह ध्यान रखिए हमारे इस्लाम धर्म में ही मर्द हो या औरत को अपनी मंशाअनुसार निकाह व निभाह न पर तलाक लेने का औरत को भी अधिकार दिया गया है कि वह भी दूसरा निकाह, तीसरा, चौथा निकाह करने की इजाज़त है जो किसी और धर्म में नहीं थी पूर्व में व्यवस्था !
मुस्लिम नेताओं की अनदेखी कर उनके विरुद्ध अन्य किसी दल या सामान्य व्यक्ति द्वारा उस धर्मनिरपेक्ष दल को भला-बुरा कहा उसे राज्य सभा में भेज दिया गया और अल्पसंख्यक समुदाय से हटकर जो कभी वार्ड प्रतिनिधि का चुनाव नहीं लड़ा उसे देश के केंद्रीय मंत्री तक बना दिया !
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देश का धर्म आधारित बंटवारा करने वालों हिंदू मुस्लिम सिख इसाई को आपस में लड़वाने वालों ! दलित, अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग का शोषण करने वाले धर्मनिरपेक्षता का ढकोसला पीटने वालों सुनो मेरी ललकार …
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तरक्की की फसल हम भी काट लेते,
थोडे से तलवे अगर हम भी चाट लेते !
हाँ…बस मेरे लहजे में “*जी हुजूर*” न था,
इसके अलावा मेरा कोई कसूर न था !
अगर पल भर को भी मैं बे-ज़मीर हो जाता,
यकीन मानिए,मै कब का वज़ीर हो जाता !
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“अब तो वैचारिक द्वंद हैं “
@मो. तारिक (स्वतंत्र लेखक)
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