राज और डीके बिल्कुल अलग तरह की फिल्म बनाते हैं। एेसी फिल्मों के दर्शक भी वो होते हैं जिन्हें ’99’, ‘गो गोआ गॉन’, ‘चॉकलेट’ और ‘ब्लफमास्टर’ पसंद आती है। आज रिलीज हुई ‘ए जेंटलमैन’ भी कुछ इसी तरह की। बल्कि कह सकते हैं इसे और आसान, ज्यादा मसालेदार बना दिया गया है।
जो क्लास, राज और डीके अपनी इस नई फिल्म में दिखाते हैं, दरअसल वो ही बाॅलीवुड को चाहिए। फिल्म खूब मजेदार है। इतनी स्टाइल से उन्होंने इस फिल्म को बनाया है कि बार-बार मन ‘वाह’ कह उठता है। कई सीन एेसे हैं जो रोंगटे खड़े कर देते हैं और कई बार आप खूब जमकर हंसते हैं। ये भारतीय सिनेमा में बेहद रेयर है। थ्रिलर को काॅमेडी से मिलाना… हमारी इस इंडस्ट्री को अच्छे से सीखना है। इस काम में राज और डीके ने ‘ए जेंटलमैन’ के जरिये कई कदम एक-साथ बढ़ा दिए हैं।
सिद्धार्थ मल्होत्रा के डबल रोल को उन्होंने बेहद खूबसूरती से संभाला। एक सभ्य-सुशील और दूसरा तेज-तर्रार-किलर। दो-दो किरदार होने के बावजूद हीरो पूरी फिल्म में छाया महसूस नहीं होता। बाकि के किरदार भी अपनी जगह आसानी से बनाते दिखते हैं… ये है पटकथा की खूबसूरती। दो सीन के लिए आया गुजराती गैंगस्टर भी आपको सिनेमाहाॅल छोड़ने तक याद रह जाए तो वाकई बड़ी बात होती है।
कहानी तो हाॅल में जाकर ही जानियेगा, बस इतना जान लीजिए वक्त के साथ खेला है दोनों निर्देशकों ने। दर्शकों को वो सोचने के लिए मजबूर किया है जो उन्हें महसूस करवाना था। एेसा तब ही मुमकिन है जब आप लेखन पर मेहनत करते हैं।
जैकलिन फर्नांडिज को भी देखना मजेदार रहा। जमकर हंसाया उन्होंने। ये वही एक्टिंग थी जो एेसी फिल्मों की जरूरत होती है। नाचती तो वे अच्छा हैं ही। एक-दो गाने कम किए जा सकते थे। ‘बंदूक मेरी लैला’ का फिल्मांकन नए जमाने का है। एक्शन सीक्वेंस में गीत डालना कम को ही आता है। अनुराग कश्यप गैंग के बाद बाद राज और डीके के काम में ये खूबसूरती दिखती है।
एक्शन ज्यादा लग सकता है लेकिन उस स्तर का है बुरा नहीं लगता। कुलमिलाकर ये मजेदार अनुभव है और बिना तनाव के दो घंटे गुजार देता है।
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