“भगवान की कृपा है कि मैं उस रात ज़िंदा बच गया. मुझे कोई चोट नहीं आई.” ये थे चंदन अहिरवार. बात करते हुए ऐसा लगा कि कभी भी रो देंगे.
दीवाली की रात चंदन भोपाल सेंट्रल जेल में ड्यूटी कर रहे थे जब रिपोर्टों के मुताबिक़ आठ कथित सिमी कार्यकर्ताओं ने उनके सामने उनके साथी रमाशंकर यादव की गला रेतकर हत्या कर दी और उन्हें बांधकर, कोठरी में बंद करके भाग गए.
नौ घंटे बाद ये सभी आठ लोग पुलिस की गोली से मारे गए. चंदन उस रात को वो दोबारा याद नहीं करना चाहते. “(उस रात के बारे में) जो रिपोर्टों में कहा गया है वो सच है.” ये बोलकर वो चुप हो जाते हैं.
भोपाल में मंत्रालय के निकट एक बस्ती में गुलाबी रंग से पुता उनका मकान ज़्यादातर अंदर से बंद रहता है.
दोनो दरवाज़े और एक खि़ड़की के पीछे की हलचल सुनाई नहीं देती.
किवाड़ खटखटाने पर खिड़की थोड़ी खुली और पूछने पर उनकी पत्नी ने कहा, “वो बहुत डरे हुए हैं. उस रात क्या हुआ, ये उन्होंने किसी को नहीं बताया.”
रमाशंकर यादव के घर पर अभी भी मातम पसरा हुआ था. उनकी पत्नी हीरा मुनी बीमार पड़ गई हैं. रात में जब भी डेढ़ बजते हैं, वो रोने लगती हैं. दीवाली वाली रात भी रमाशंकर जेल ड्यूटी पर रात डेढ़ बजे आख़िरी बार निकले थे.
एक तरफ़ जहां भोपाल इस घटना से उबरने की कोशिश कर रहा है, स्थानीय मुसलमान नाराज़ हैं. चार नवंबर को भोपाल में मुसलमानों ने प्रदर्शन किए. आठ मृत व्यक्तियों को शहीद करार दिया गया और न्याय के लिए लड़ने की बात कही गई.
लोग सड़कों पर मुक्के लहरा रहे थे और नारे लगा रहे थे. प्रदर्शन के ठीक बाद मैं एमबीए कर रहे सोहराब अली खान से मिला. सुरक्षा बल अभी भी भारी संख्या में तैनात थे. पास चल रहे क्रिकेट मैच से लगा कि हालात क़ाबू में हैं.
सोहराब का मानना है कि आठ लोगों को किसी बहाने जेल से निकाला गया और आपसी रंजिश या मुसलमानों के खिलाफ़ भेदभाव के कारण पुलिस ने उन्हें गोली मार दी.
वो कहते हैं, “क्या किसी को खूंखार या आतंकवादी कहने से वो आतंकवादी हो जाता है? कोई मुसलमान जंग नहीं चाहता है, लेकिन कहीं से कुछ चिनगारी आती है तो यहां आग लगती है.”
उनके मुताबिक़ कोशिश होती है कि मुसलमानों को आतंकवादी बताया जाए लेकिन जब दूसरे धर्म के लोग हिंसा करते हैं तो उन्हें अपराधी कहा जाता है.
मारे गए लोगों के वकील परवेज़ आलम का फ़ोन लगातार बज रहा है. उनके फ़ोन पर सभी आठ लोगों के शवों की तस्वीरें हैं.
उनका दावा है कि उन्होंने अंतिम संस्कार से पहले सभी आठ शवों का मुआयना किया था, हालांकि शवों की आधिकारिक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है.
वो कहते हैं, क्या उन्हें ज़िंदा नहीं पकड़ा जा सकता था? क्या आठ लोगों को पकड़ने के लिए एक हज़ार सुरक्षाबलों की ज़रूरत थी?”
पुलिस का दावा है कि ये सभी ख़तरनाक लोग थे जिन पर हत्या, बम धमाके के संगीन आरोप थे, साथ ही उनके पास कट्टा और धारदार हथियार थे.
पुलिस के उलट एक स्थानीय मंत्री ने कहा, इन लोगों के पास हथियार नहीं थे जिससे शक़ बढ़े.
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