भोपाल. मध्यप्रदेश राज्य सरकार द्वारा जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए ‘अधिकतम दो बच्चों’ के नियम का उल्लंघन करने के आरोप में दमोह जिला की अदालत में चपरासी पद पर नियुक्त तीन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक करीब एक साल के लंबे विभागीय जांच के बाद तीनों कर्मचारियों को मध्य प्रदेश सिविल सर्विसेस नियम 1961 के तहत धारा 6(6) का उल्लंघन करने पर दोषी पाया गया। साल 2000 में इस नियम का संसोधन किया गया था। इस नियम के संसोधन के बाद धारा 6(6) के तहत इसमें दो बच्चों का प्रावधान जोड़ा गया। सेशन जज अंजलि पालो ने सिविल सर्विसेस नियम के तहत कल्याण सिंह ठाकुर,चंदा ठाकुर और लालचंद बर्मन को बर्खास्त कर दिया है। सूत्रों ने बताया कि अधिकतम दो बच्चो के नियम का उल्लंघन के दोषी पाए गए 11 अन्य कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है।
सोमवार को तानों कर्मचारियों ने उच्च न्यायलय में जांच की अपील की है। बर्खास्त कर्मचारियों का कहना है कि केवल हम ही क्यो? ऐसी जांच पूरे राज्य और सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए भी होनी चाहिए। जांच के बाद ही आपको मालूम चलेगा कि लाखों सरकारी कर्मचारी इस नियम का उल्लंघन करने के दोषी हैं। गौरतलब है कि 31 जनवरी 2014 को, जिला जज वी पी श्रीवास्तव ने 26 जनवरी 2011 के बाद पैदा हुए बच्चों की संख्या सहित, जिला अदालत में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के परिवार का पूरा डिटेल पेश करने की बात कही थी। इसके बाद ही तीन कर्मचारियों को दोषी पाया गया और 19 दिसंबर 2015 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। और पंद्रह दिन के अंदर उनके जवाब भी मांगा गया।
तीनों कर्मचारियों ने अपने बचाव में कहा कि उन्हे इस नियम के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कल्याण सिंह ठाकुर ने बताया कि यह नियम पंचायत प्रतिनिधियों के लिए भी लागू होती है और इसका उल्लंघन करने पर वह चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन बाद में इस नियम को संसोधित कर दिया गया। इसी तरह 2005 में नेताओं के चुनाव लड़ने के लिए भी कई तरह के नियमों को संसोधित किया गया। लेकिन हम जैसे गरीब लोगों को सजा दी जाती है। कल्याण सिंह ने कहा कि ‘मुझे मेरे बेटे के एडमिशन के लिए 4 हजार रुपए की जरुरत है। मैं तो खत्म हो गया, अब मुझे क्या करना होगा चाहिए।’
पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच ने कहा कि यह नियम 1990 के दशक और 2000 में 11 राज्यों में पारित की गई थी। जिसमें दो से ज्यादा बच्चे होने पर प्रतिनिधियों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं थी। बिहार, गुजरात और उत्तराखंड जैसे कुछ राज्यों में कानून बनाए गए जबकि हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और हरियाणा में 2005 के बाद इस नियम को निरस्त कर दिया है।
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