डा. शशि तिवारी
शशि फीचर.ओ.आर.जी.
लेखिका सूचना मंत्र की संपादक हेैं
विदेश से काला धन तो नहीं ले पाए तो क्या पहले देश में जमा काला धन जो नई-नई युक्तियों के साथ विदेशों में सुरक्षित पहुंचा खुद को सुरक्षित रखने वालों को मोदी ने दूर की चाल चलते हुए पहले तो लोगों को पोटा कि 30सितम्बर तक आप स्वेच्छा से अपने काले धन को उजागर कर दे हम केवल 45प्रतिशतकर लेंगे और आप कई चिंताओं से मुक्त हो जायेंगे, हम नहीं पूछेंगे कि ये धन आप कहाँ से लेकर आए, स्त्रोत क्या है, जमा करने वालों के नाम भी हम उजागर नहीं करेंगे, सरकार की ओर से इतनी निश्चितता का आश्वासन फिर भी काले धन के पक्के कुबेर टस से मस भी नहीं हुए लेकिन, कच्चे खिलाड़ियों ने 45प्रतिशत कर चुका 55 प्रतिशत राशि की बचत के साथ तमाम झंझटों से मुक्ति के चलते सरकार को लगभग 29,362 करोड़ रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ। बड़े धन कुबेर सोचते रहे ये सरकार का धमकाने का अंदाज पुराना है, सब चलता है,स्वच्छता अभियान नरेन्द्र मोदी का एक अहम अभियान है। इसी के चलते अच्छे-अच्छे राजनीतिक पण्डों को कानों कान खबर न लगने एवं अचानक 8 नवंबर की रात आठ बजे काले धन कुबैरों का काल बन 500 एवं 1000 रूपये के बड़े नोटों को रात 12ः00 बजे से अमान्य की घोषणा ने धन कुबेरों को अवाक कर दिया। यह किसी बड़े भूकम्प से कम का झटका नहीं था। बड़े नोटों को ठिकाने लगाने में काले धन का गिरोह जिसमें अधिकारी, नेता, ठेकेदार, भ्रष्टाचारियों में किसी गंभीर दौरे पड़ने सी स्थिति आ गई। इस अफरा-तफरी के माहौल में किसी को यह खबर सुनने पर पहले तो कुछ समझ में ही नहीं आया लेकिन जैसे-जैसेेेेेेेेेेेेेेेे अपने को संभाल पुराने धन संग्रह की तर्ज अर्थात् ‘‘गोल्ड’’ खरीदने में जुट कुछ हद तक भरपाई करने में सफलता प्राप्त की, जितना सोना धन तेरस, दीपावली पर नहीं बिका उससे ज्यादा इन चार घण्टों में अवैध रूप से रात भर सुनारों की दीपावली मनी। खरीददारों की आई बाढ़ ने सोने को भी 4500 रूपये प्रति ग्राम से ब्लेक मेें5500/- तक पहुंचा दिया। चूंकि ये फैसला अचानक ही आया तो जनता ने जमकर खरीददारी कर बड़े नोटों को ठिकाने लगाने का काम किया। काला धन संग्रहकर्ताओं के बीच एक सी स्थिति पैदा हो गई। इस अवैध कमाई को मिटते भी नहीं देख सकते थे। जैसे-जैसे समय बीता लोगों ने भी अपने दिमाग के घोड़ों को दौड़ाना शुरू किया और इसका तोड़ निकालने में गहन मंथन करने लगे। कर्नाटक में तो एक नेताजी ने बाकायदा अवैध धन को जनता में कर्ज के रूप में बांटने की भी खबरों को एवं अपने को मीडिया में, चर्चा में रहने का खेल किया। पूरे देश में बड़े विचित्र जोक्स भी वाटसएप एवं फेसबुक पर चल निकले तो किसी काले धन को सफेद बनाने की तरह-तरह की स्कीम भी चला दी। ये अलग बात है कि सरकार ऐसे लोगों से सचेत रहने की चेतावनी भी दे रही है। देश की अर्थव्यवस्था को नकली करेंसी, हथियार की खरीद फरोख्त बड़ी मात्रा में काले धन के जमाव ने अपनी एक समानान्तर व्यवस्था सी चला रखी थी जो देश की प्रगति विकास में सबसे बड़ा अवरोध थी।
निःसंदेह मोदी का फैसला आमजनों ने तो खुले दिल से प्रशंसा की वही अब वो अपने ही ऐसे लोगों के निशाने पर आ गए जो समानान्तर सरकार चला रहे थे। हाल ही में उत्तर प्रदेश एवं म.प्र. में उप चुनाव में खपने वाला बड़ा काला धन का अब पलीता लग गया। उत्तर प्रदेश चुनाव की तैयारी में जुटे नेताओं को धन की आक्सीजन देने वाले धन कुबेरों का दिवाला जो निकाल दिया। अब ये नोट महज कागज के टुकड़े से ज्यादा कुछ भी नहीं रहे।
हम सभी जानते है भ्रष्टाचार एवं अवैध धन में बड़े नोटों की अहम भूमिका होती है। सन् 1977 में भी मोरारजी देसाई सरकार ने बड़े नोटों के चलन पर प्रतिबन्ध लगाया था। आज जब प्रधानमंत्री मोदी डिजिटल इण्डिया की बात कर रहे है हर क्षेत्र में छोटे एवं बड़े पेमेन्ट आॅन लाईन से हो रहे है। ऐसी परिस्थिति में 2000 के नोट को बनाना कहीं से भी किसी के गले नहीं उतर रहा। कहीं ये काले धन कुबेरों के लिए, भ्रष्टाचारियों के लिए मरहम तो नहीं? कहीं आने वाले वर्षों में इससे भी भीषण स्थिति न बन जाए ये बड़े नोट? प्लास्टिक मनी एवं आॅन लाईन पेमेन्ट के जमाने में बड़े नोट क्यों?
यहाँ कई यक्ष प्रश्न उठ खड़े होते है जैसे 8 नवम्बर के बाद ताबड़तोड़ खरीदी पर क्या सरकार जांच करेगी? जीरों बेलेंस खाता धारकों या अन्य में जमा होने वाली राशि का आंतरण फिर चाहे वह किसी भी योजनाबद्व सोची समझी चाल के तहत् हो की माॅनीटरिंग होगी? बड़े नोटों के चलन पर सरकार क्यों जोर दे रही है जो भ्रष्टाचार, ट्रान्सफर, पोस्टिंग के माध्यम से अकूत धन बनाते है इन बुराईयों के विरूद्ध निःसंदेह मोदी के लिए अभी ये सबसे बड़ा चेलेजिंग टास्क है। जनता को भरोसा है राजनीति का शुद्धिकरण यदि कोई कर सकता है तो वह है मोदी, अभी ओर भी सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत है मसलन प्रत्येक भारतीय के पास संग्रहित सोने का स्वैच्छिक घोषणा एवं सीमा का निर्धारण दूसरा विनोबा भावे के समय चला भूदान आंदोलन की तर्ज पर एक व्यक्ति अपने पास कितनी भूमि रख सकता है की भी सीमा बंदी होना चाहिए। राजनीति के क्षेत्र में रहने वाले नेताओं उनके रिश्तेदारों एवं बेनामी सम्पत्ति के साथ एकत्रित सम्पत्ति एवं स्त्रोत का भी ब्यौरा सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
शशि फीचर.ओ.आर.जी.
लेखिका सूचना मंत्र की संपादक हेैं
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