कला-उत्सव के दूसरे दिन नयनाभिराम प्रस्तुतियाँ

भोपाल : सिंहस्थ में उज्जैन शहर के 6 स्थान पर कला-उत्सव के दूसरे दिन भारत की बहुआयामी सांस्कृतिक विरासत की मनोरम, भव्य और नयनाभिराम प्रस्तुतियाँ हुई। भरतमुनि मंच, कालिदास मंच, विक्रमादित्य मंच, भोज मंच, भर्तृहरि मंच और त्रिवेणी संग्रहालय में गायन, वादन, नृत्य और रंग-प्रस्तुतियों का बड़ी संख्या में दर्शकों ने देर तक रसास्वादन लिया।

भरतमुनि मंच पर सुविख्यात भजन गायक पण्डित रतनमोहन शर्मा के गायन से शुभारम्भ हुआ। संगीत मार्तंण्ड पण्डित जसराज के भतीजे पण्डित रतन ने सिंहस्थ के अवसर पर तैयार की गई विशिष्ट वंदनाओं का गायन किया। उनकी शिव और राम पर केन्द्रित भक्ति रचनाओं ने समा बाँधा। उनके गायन में संगीत की संस्कार सम्मत रागदारी की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही थी। इसके बाद अहमदाबाद की विख्यात गायिका सुश्री विराज अमर का गायन हुआ। उन्होंने राग झिंझोटी में द्रुत एवं मध्य-लय में अनेक रचनाओं का गायन किया। उनके स्वर-माधुर्य से श्रोता बहुत प्रभावित हुए। गायन के बाद रामलीला के प्रसंगों में राम-जन्म, ताड़का वध एवं अहिल्या उद्धार प्रस्तुत किया गया। जबलपुर की कलाकार सुश्री नीलांगी कालंतरे के कथक नृत्य और सागर के मनीष यादव ग्रुप ने बरेदी लोक नृत्य की प्रस्तुति दी।

त्रिवेणी संग्रहालय में शनिवार को सुप्रतिष्ठित लोकगायक श्री गयाप्रसाद प्रजापति के लोकगायन से शुभारंभ हुआ। इसमें इन्दौर के सुविख्यात बाँसुरी वादक श्री सलिल दाते का बाँसुरी वादन हुआ। त्रिवेणी संग्रहालय में अंतिम प्रस्तुति उज्जैन शहर के युवा गायक श्री लोकेन्द्र सिंह के गायन की हुई।

कालिदास मंच पर कला-उत्सव की शुरूआत श्री अवनीश मिश्रा के वैदिक मंत्रोच्चार से हुई। इसके बाद अनुराधा पाल मुम्बई के एकल तबला वादन एवं नई दिल्ली की युवा नृत्यांगना सुश्री संजीनी कुलकर्णी के कथक नृत्य की प्रस्तुति हुई। समापन भोपाल के सुप्रतिष्ठित रंगकर्मी श्री गोपाल दुबे के नाटक-पार्क के मंचन से हुआ।

भोज मंच पर छत्तीसगढ़ की सुप्रतिष्ठित लोक गायिका श्रीमती रेखा देवार के भर्तृहरि गायन से कला-उत्सव का प्रारंभ हुआ। बस्तर की मुरिया जनजाति के लोक कलाकारों ने गेढ़ी नृत्य की प्रस्तुति दी। अगली प्रस्तुति केरल के सिंगार मेलम नृत्य एवं आंध्रप्रदेश के गर्गलू नृत्य की हुई। छत्तीसगढ़ का पंथी लोक नृत्य, कर्नाटक राज्य का वीरगासे नृत्य, प्रसिद्ध पण्डवानी गायिका सुश्री शांतिबाई चेलक द्वारा द्रोपदी चीर हरण की प्रस्तुति, पुडुचेरी के अनुष्ठानिक नृत्य कालीअट्टम, तमिलनाडु का डमी हॉर्स, करगम नृत्य की प्रस्तुतियाँ हुई।

भर्तृहरि मंच पर कला उत्सव की शुरूआत राजेन्द्र काचरू एवं शेवती सान्याल के भक्ति पद गायन से हुई। राजस्थान का कालबेलिया नृत्य, हरियाणा का होली नृत्य, कश्मीर का तेरा ताली नृत्य, बूमरो, उत्तराखण्ड का गढ़वाली नृत्य एवं पंजाब का अखाड़ा एवं मार्शल आर्ट का प्रदर्शन किया गया।

विक्रमादित्य मंच पर कला-उत्सव का आरंभ छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध लोक नृत्य एवं लोकगायन से हुआ। जबलपुर की सुप्रतिष्ठित भक्ति संगीत गायिका सुश्री तापसी नागराज का गायन भी हुआ।

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