Vineet Dubey
आपको शायद याद हो अमेरिका मे ओशो को बिना किसी गिरफ़्तारी वारंट के बिना किसी प्राथमिकी के अमरीकी पुलिस ने अचानक गिरफ़्तार कर लिया था और १२ दिनों तक एक निर्दोष और निहत्थे व्यक्ति को बेड़ियों, हथकड़ियाँ, और ज़ंजीरों से जकड़ कर विभिन्न जेलों मे घुमाते हुऐ उन्हे यातना के कई आयामों से गुज़ारा। विश्व मीडिया बताती है, उस समय पूरे विश्व मे ओशो के अनुयायियों की संख्या करोड़ों मे थी पर पूरे विश्व मे कही कोई अशांति या हिंसक प्रदर्शन नही हुए। ओशो जिस-जिस जेलों मे पहुँचते थे वहाँ सुबह-सुबह आदमियों की भीड़ नही वल्कि फूलो से लदे ट्रक पहुच जाते थे। अकलोहोमा जेल के जेलर ने अपनी आत्मकथा मे लिखा है मै सेवानिवृत्ति के क़रीब था मैने बहुत क़ैदियों को अपनी जेलें मे आते जाते देखा है पर जब ये शख्श(ओशो) मेरी जेल मे आया तो मैने महसूस कि और देखा कि मेरी जेल एक चर्च के रुप में बदल गई थी। पूरी जेल फूलो से भर गई थी कोई जगह ख़ाली नही थी। तब मै ख़ुद उस शख़्स के पास गया और अनायास ही मेरी आँखो से अश्रु बहने लगे, मै समझ नही पा रहा था और भरे गले से मैने उनसे पुछा कि, आप ही बताइए इन फूलो का मै क्या करु? ओशो में मेरी तरफ प्रेम पुर्ण दृष्टि डाली और बोले इन फूलो को पूरे शहर से स्कूलों और कालेजो मे भिजवा दिया जाय ये मेरी तरफ से उस विद्यार्थियों को भेंट है जो अभी शिक्षा ग्रहण कर रहे है।
जब ओशो को जेल से अदालत लाया जाता था तब उनके लाखों अनुयायी नगर वासियों को फूल भेंट करते थे और शांतिपूर्ण ढंग से प्रतीक्षारत रहते कि कब ओशो कोर्ट से बाहर आयेगे। जब ओशो कोर्ट से पुन: गुज़र जाते तो कोर्ट से लेकर जेल तक की सड़क फूलो से पटी होती थी। पूरे संसार से कही ऐसी कोई ख़बर नही थी कि ओशो किसी अनुयायी ने को उग्र आचरण किया या उग्र व्यक्तव्य दिया हो। जब भी कोई उनसे ओशो के सम्बध मे कुछ पुछता तो आँखो मे आँसुओ के साथ यही कहते- प्रकृति कुछ प्रयोग कर रही है, हाँ ये प्रयोग हमारे लिये थोडा असहनीय और कष्टप्रद जरुर है पर जैसी परमपिता की मर्ज़ी। हमारे सद्गुरू ने हमे ये सिखा दिया है कि कैसे परम स्वीकार के भाव मे जिया जाता है।
जिस जेल से ओशो को जाना होता, वहाँ का जेलर अपने परिवार के साथ उन्हे विदा करने के लिये उपस्थित होता और ओशो से आग्रह करता कि क्या मेरे परिवार के साथ आप अपनी एक फ़ोटो हमे भेंट करेगे? और ओशो मधुर मुस्कान से मुस्कराते हुए वही खड़े जाते और कहते कि आओ।
बहुत पहले जब ओशो भारत मे थे तब उन पर छूरा फैंका गया। ओशो ने तत्क्षण कहा, कोई अनुयायी उन सज्जन को कुछ भी न कहे और उन्हे छुए भी नही। वे कुछ कहना चाहते है, ये उनके कहने का ढंग है। उन्हे बिल्कुल छोड़ दिया जाए फिर अगले दिन ओशो ने प्रवचन के मध्य कहा- मै यह देख कर आनंदित हूँ कि तुम मे से किसी ने उन सज्जन को कोई चोट नही पहुँचाई , वल्कि प्रेम से उन्हे बाहर जाने दिया गया। यही मेरी शिक्षा है। कल कोई मेरी हत्या का भी प्रयास करे या जान भी लेले। लेकिन तुम उन्हे प्रेम ही देना ।
*गुरुदेव सच्चे सद्गुरू की हमे शिक्षा और दीक्षा उनके अनुयायियों में परिलक्षित होती है। अनुयायी शब्द बडा समझने वाला है- अपने गुरू के बताये मार्ग पर ठीक ढंग से चलने वाले को अनुयायी कहते है । शांत, अनुशासन-शील, सर्व-स्वीकार्य और सुदृढ़ अनुयायी ही गुरु की सदाशयता को परिभाषित करते हैं।*
कल से मै चकित हूँ कि शांति के दूत बाबा रामरहीम ने क्या अद्भुत शिक्षा अपने भक्तों को दी है- पूरे शहर को आग मे झोंक दिया, ३० से ज्यादा लोग मारे गये और न बाबा और न ही उनके किसी प्रधान ने कोई ऐसा प्रयास किया जिससे यह अराजकता रुक सके और न ही कोई व्यक्तव्य दिया जिससे चरम पर पहुँची हिंसा और उग्रता ठहर सके।
बहुत आश्चर्य होता है!!!!!
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