भोपाल… सूबे में महज तीन निजी और छह सरकारी मेडिकल कालेज रह गए हैं। उन्हें नियंत्रित करने के लिए शासन ने अलग-अलग विश्वविद्यालय से संबद्धता खत्म कराकर जबलपुर में एक मेडिकल विश्वविद्यालय स्थापित कर दिया है। सिर्फ नौ कॉलेजों के लिए अलग से यूनिवर्सिटी का खर्चा अब शासन को भारी पड़ने लगा है। अगले साल आधा दर्जन सरकारी और कुछ निजी मेडिकल कॉलेज के साथ प्राईवेट मेडिकल विश्वविद्यालय और बढ़ेंगे। ऐसे में स्टूडेंट्स की जब पर बोझ तो बढ़ेगा ही मेडिकल एजुकेशन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठेंगे। प्रदेश में सात निजी मेडिकल कॉलेजों में से चार को विश्वविद्यालय का दर्जा मिल गया है। इससे अब प्रदेश में महज तीन ही मेडिकल कॉलेज बचे हैं। इसमें चिरायु, आरविंदो और आरडी गार्डी शामिल हैं। जबकि चार निजी विवि में पीपुल्स, इंडेक्स, एलएन और आरकेडीएफ शामिल हैं। महंगी हो जाएगी मेडिकल की पढ़ाई विश्वविद्यायल में तबदील हुए कॉलेज का सबसे ज्यादा असर विद्यार्थियों की जेब पर पड़ेगा। वर्तमान में कॉलेजों में बढ़ी फीस अब विवि की फीस में बढ़ोतरी के भी संकेत मिल रहे हैं। अब तक विद्यार्थियों को कॉलेजों में जहां पांच से आठ लाख 67 हजार रुपए तक की फीस का भुगतान करना पड़ता है। नई यूनिवर्सिटीज बढ़ने से अब उन्हें विवि में सात लाख रुपए से ज्यादा की फीस का भुगतान करना पड़ सकता है। क्योंकि कॉलेजों ने अपनी फीस 21 लाख रुपए तक मांगी है। निजी विवि विनियामक आयोग ने अभी तक फीस तय करने का निर्णय नहीं लिया है। ये फीस का निर्धारण का दायित्व प्रवेश एंव फीस विनियामक समिति के हिस्से में जाने वाला है। आयोग के भरोसे कैसे आएगी पारदर्शिता निजी विश्वविद्यालयों में होने वाली मेडिकल की पढ़ाई से गुणवत्ता में गिरावट आएगी। इसकी वजह निजी विवि का आटोनोमश होना है। उनको नियंत्रित करने के लिए शासन ने सिर्फ आयोग को ही स्थापित किया गया है। जबकि कॉलेजों को नियंत्रित करने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग, प्रवेश एवं फीस विनियामक समिति और मेडिकल विवि शामिल है। कॉलेज से बने निजी विवि को मेडिकल में बेहतर प्रवेश देने के साथ गुणवत्ता का ख्याल रखना होगा। हम सिर्फ फीस की समीक्षा करते हैं। उसका निर्धारण का दायित्व कमेटी को सौंपा जाएगा। अखिलेश कुमार पांडे, अध्यक्ष, निजी विवि विनियामक आयोग
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