क्या मेट्रो सिटीज में बैन हो जाएंगी सुपरबाइक्स …

दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में तीन बाइक सवारों की रेस में एक युवक की मौत हो गई। उक्त तीनों बाइकर अपनी-अपनी सुपरबाइक पर सवार थे और एक दूसरे से आगे निकलने की होड में इन्हें अपनी जान गवानी पड़ी। युवक की उम्र केवल 24 साल थी। अब इस युवक की मौत ने देशभर में एक नई जंग छेड़ दी है। इसके तहत मेट्रो सिटीज में सुपरबाइक की खरीद व बिक्री पर बैन लगाने की अपील की गई है। मृतक के परिजनों ने ही नहीं बल्कि आम जनता ने भी इस अपील में साथ दिया है। कहा जा रहा है कि केवल महानगरों में जहां पैदल चलने वालो के लिए जगह नहीं है, ऐसी जगहों पर सुपरबाइक की तेज रफ्तार का क्या काम। इसलिए मेट्रो सिटीज में सुपरबाइक की रफ्तार पर लगाम लगाई जानी चाहिए। अगर यह फैसला लिया जाता है तो एक ओर युवाओं में निराशा जागेगी लेकिन दूसरी ओर, सुपरबाइक मार्केट में घबराहट की लहर अभी से छा गई है।

वैसे यह बताने की जरूरत नहीं है कि युवाओं पर सुपरबाइक व क्रूज़र बाइक का जुनून सवार है। जिस बाइक पर युवक सवार था वह भी एक सुपरबाइक थी जिसका नाम है बनेली टीएनटी600, जिसकी कीमत करीब 8 लाख रूपए है। बाइक के फिसलने से युवक की मौत् हुई और उस समय बाइक की रफ्तार 150 किमी प्रति घंटा बताई जा रही है। दिल्ली की सड़क जिसपर लाखों वाहन हर रोज दौड़ते हैं। यहां ट्रेफिक का हाल साइकिल चलाने से भी बुरा है, ऐसी बिजी रोड पर 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार मायने की बात है। एक तरीके से देखा जाए तो मेट्रो व पॉपुलेशन वाली सिटी में इन सुपरबाइक को बैन कर ही देना चाहिए। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि सुपरबाइक की कीमतों को देखते हुए इन सिटीज़ में ही इनकी बिक्री होती है। हार्ले, बनेली, डुकाटी, केटीएम जैसी सुपरबाइक की डिमांड बड़े शहरों में ही हैं तो क्या इन एक्सपेंसिव बाइक्स का मार्केट खत्म कर दिया जाना चाहिए।

अब यही मुद्दा जंग का एक मैदान सा बन गया है। सेल्स फिगर को देखा जाए तो दिल्ली, मुंबई, गुरूग्राम, चेन्नई, बैंग्लुरू, गोवा व अहमदाबाद जैसे शहरों में ही सुपरबाइक बेची व खरीदी जाती हैं। सभी शहर मेट्रो सिटीज़ हैं और सभी में पॉपुलेशन की कोई कमी नहीं है। ऐसे में जिन सड़कों पर साइकिल चलाना तो दूर, पैदल चलना भी मुश्किल है, अब इन सड़कों पर सुपरबाइक की तेज रफ्तार का क्या किया जाए, यह सवाल सभी के जेहन में बार-बार आ रहा है। चर्चा यह भी है कि इस बारे में दिल्ली के राज्यपाल से बात किए जाने की संभावना है। मुद्दा हाईकोर्ट भी जा सकता है। ऐसे में युवाओं के शौक पर तो संयश है ही, इन बेशकीमती बाइक के बड़े व लग्ज़री डीलरशिप पर भी संकट के बादल छा गए हैं।

आखिर में इस बहस को खत्म करते हुए हम तो यही कहना चाहते हैं कि आईआॅटोइंडिया टीम को तो नहीं लगता कि सुपरबाइक्स पर बैन लग सकता है। लेकिन कोई शौक जिंदगी से बढ़कर नहीं हो सकता, यह भी सच है। सुपरबाइक के लिए एक स्पेशल रेसिंग ट्रेक बनाकर इस समस्या से निजात पाया जा सकता है। सुपरबाइक क्लब और एडवेंचर ट्रिप भी इसका एक अन्य निदान है। अगर इन सुपरबाइक्स की रफ्तार और लिमिट सीमित कर दी जाए तो निश्चित ही कुछ जिंदगियां बचेंगी, साथ ही युवाओं का शौक भी बदस्तूर जारी रह सकेगा।

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