चुनाव आयोग का सख्त रवैया रंग लाया..धन बल पर लगाम कसने में सफल रहा आयोग

 

लखनऊ। चुनाव आयोग के सख्त रवैये ने उत्तर प्रदेश में आज सम्पन्न हुए राज्य विधानसभा चुनाव में पैसे और रसूख पर नकेल कसे रखी।
पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा करोडपति और आपराधिक छवि के उम्मीदवारों की तादाद बढने के बावजूद धन और बल का चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव नही दिखायी पडा।
विकास, गरीबी उन्मूलन और कानून व्यवस्था के मुद्दे के साथ इस बार चुनावी दंगल में किस्मत आजमाने वाले लगभग एक तिहाई उम्मीदवार करोडपति थे जबकि 18 फीसदी किसी ना किसी आपराधिक वारदात में लिप्त थे। सात चरणों में मतदान की प्रक्रिया निर्विघ्न सम्पन्न होने के बाद अब सभी की निगाहें 11 मार्च को होने वाली मतगणना पर टिक गयी हैं। चुनाव के दौरान एक अरब रूपये 20 करोड से अधिक नगदी उडनदस्तों ने जब्त की, जबकि प्रचार के लिये प्रत्याशियों द्वारा खर्च करने वाले पैसे पर आयोग की पैनी निगाह रही। आयोग के निर्देश पर आबकारी विभाग ने शराब की बिक्री पर भी कडी नजर बनाये रखी। उधर, मतदान वाले क्षेत्रों में मतदाताओं और मतदेय स्थलों की सुरक्षा के चाक चौबंद इंतजाम के चलते हिंसा की बडी वारदात नहीं हो सकी। चुनाव विश्लेषक असीम मुखर्जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में चुनाव निर्विघ्न सम्पन्न कराने के लिये चुनाव आयोग के साथ साथ सुरक्षा बल के जवान निश्चित तौर पर बधाई का पात्र है।
नोटबंदी के बावजूद कई प्रत्याशियों ने मतदाताओं को लुभाने के परंपरागत तरीकों जैसे शराब और पैसा आदि खर्च करने की भरपूर कोशिश की मगर आयोग की सख्ती के कारण वे अपने मंसूबों में पूरी तरह सफल नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि आयोग की सख्ती का ही असर था कि इक्का दुक्का घटनाओं को छोड कर मतदान स्थलों पर और आसपास माहौल शांतिपूर्ण रहा। केन्द्रीय बल के जवानों के साथ स्थानीय पुलिस की भूमिका भी सराहनीय रही। चुनाव में आयोग की भूमिका को लेकर हालांकि लखनऊ विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त अध्यापक विवेक भारद्वाज की राय तनिक अलग है। श्री भारद्वाज ने कहा कि चुनाव आयोग की भूमिका पिछले सालों की तुलना में लचर रही। नोटबंदी के बावजूद एक अरब से अधिक के धन की बरामदगी इस ओर इशारा करती है कि चुनाव के दौरान पैसे का जमकर इस्तेमाल हुआ। कोई भी प्रत्याशी वोट के लिये खुलेआम धन नही बांटता। चुनाव परिणाम वास्तव में उनके तर्क को सही ठहराने के लिये काफी होंगे। एसोसियेशन फार नेशनल डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2012 के मुकाबले इस बार के चुनाव में करोडपति प्रत्याशियों की तादाद में 10 फीसदी की बढोत्तरी हुई।
पिछले विधानसभा चुनाव में 20 फीसदी प्रत्याशी करोडपति थे जबकि इस बार कुल उम्मीदवारों में 30 प्रतिशत करोडों के मालिक थे। सबसे ज्यादा करोडपति प्रत्याशी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के थे। बसपा के 400 उम्मीदवारों में 335 प्रत्याशी करोडपति थे। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर रही। दोनो दलों के 79 फीसदी उम्मीदवार करोडपति थे। रिपोर्ट के अनुसार चुनाव मे 13 प्रत्याशी फक्कड भी थे। इन्होने नामाकंन पत्र में अपनी चल और अचल संपत्ति शून्य दर्ज करायी थी। चुनाव में 18 प्रतिशत उम्मीदवार आपराधिक वारदात में लिप्त थे जबकि 15 फीसद गंभीर आपराधिक मामलों में निरूद्ध थे।

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