चूहों के अनोखे मंदिर करणी माता मंदिर

करणी माता एक हिन्दू महिला ज्ञानी थी जिसका जन्म चरण जाती में हुआ था। लोग उसे हिन्दू देवी दुर्गा का रूप मानते थे। वह जोधपुर और बीकानेर के शाही परिवार की देवी थी। एक तपस्वी बनकर उन्होंने अपना जीवन व्यतीत किया था और उस समय में लोग उनका बहोत आदर और सम्मान भी करते थे। बीकानेर के महाराजा की प्रार्थना पर ही उन्होंने उनके राज्य के दो महत्वपूर्ण किलो की नीव रखी थी। राजस्थान में बीकानेर के पास उनके नाम का एक छोटा सा मंदिर

भी है और यह मंदिर उनके घर से ओझल हो जाने के बाद ही बनवाया गया था। करणी माता मंदिर / Karni Mata Temple Of Rats सफ़ेद चूहों के लिये भी प्रसिद्ध है, सफ़ेद चूहों को वहा के लोग पवित्र मानते है और कहा जाता है की वे मंदिर की सुरक्षा करते है।इसके विपरीत इस मंदिर का जैन धर्म से कोई संबंध नही है। उनके महान कार्यो को देखते हुए उन्हें समर्पित करते हुए एक और मंदिर का निर्माण करवाया गया था लेकिन दुसरे मंदिर को इतनी प्रसिद्धि नही मिल सकी, लेकिन दुसरे मंदिर में हमें करणी माता के पद चिन्ह जरुर दिखाई देते है। करणी माता को नारी बाई के नाम से भी जाना जाता था।

करणी देवी एक योगियों और ज्ञानियों की तरह अपनी बची हुई जिंदगी को व्यतीत करना चाहती थी. इसलिये उन्होंने गाव के बाहर ही जंगल में अपना एक टेंट डाला लेकिन उस जगह के शासक के नौकर ने उन्हें पानी देने से मना कर दिया था. लेकिन वहा अनेक श्रद्धालुओं का मानना था कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी। मां के अनुयायी केवल राजस्थान में ही नहीं, देशभर में हैं, जो समय-समय पर यहां दर्शनों के लिए आते रहते हैं। संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचे। वहां जैसे ही दूसरा गेट पार किया, तो चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह गया। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं।

चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते है। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है। करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है। मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित देशनोक रेलवे स्टेशन के पास ही है यह मंदिर। वर्ष में दो बार नवरात्रों पर चैत्र व आश्विन माह में इस मंदिर पर विशाल मेला भी लगता है। तब भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएं भी हैं। मां करणी चूहे वाले मंदिर के वहां जाने वालों की मनोकामना पूरी होती है।

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