दलहनी फसलों के लिए संजीवनी है ट्राइकोडर्मा, जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों की खोज

जबलपुर. जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के वैज्ञानिकों ने ट्राइकोडर्मा नामक तरह व पाउडर रूम में एक ऐसी शोध की है, जिसके उपयोग से दलहनी फसलों में उकटा या उग्ररा रोग (बिल्ट) से रोकथाम होती है और फसल का उत्पादन बढ़ता है. यानी यह रसायन व पाउडर जैविक फफूंदनाशक है. जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अन्र्तगत मृदा विज्ञान के जवाहर जैव उर्वरक उत्पादन केन्द्र द्वारा तरल व पाउडर रूप में ट्राईकोडर्मा बिरिडी का उत्पादन किया जा रहा है, जो दलहनी फसलों हेतु अति उपयोगी जैविक फफूंदनाशक है. कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन की प्रेरणा व मार्गदर्शन से कृषकों के खेतों में विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से कृषि विज्ञान केन्द्र के द्वारा प्रथम पंक्ति प्रदर्शन से इससे आशातीत लाभ कृषकों को प्राप्त हो रहे हैं. दलहनी फसलों के लिए लाभप्रद मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन शास्त्र के आचार्य एवं विभागाध्यक्ष डॉ बी.एल. शर्मा ने बताया कि ट्राईकोडर्मा मृदा सूक्ष्म वैज्ञानिकों की एक ऐसी महत्वपूर्ण खोज है जो दलहनी फसलों जैसे-सोयाबीन, अरहर, मूँग उड़द, चना आदि के एक प्रमुख समस्या-उकटा या उग्ररा रोग (बिल्ट) की रोकथाम में संजीवनी की तरह कार्य करती है.

अत: उकटा की समस्या का समाधान ट्राईकोडर्मा द्वारा सहज एवं सरलता से संभव है. फसलों में ऐसे करती है असर जवाहर जैव उर्वरक केन्द्र के प्रभारी एवं मृदा सूक्ष्म जीव वैज्ञानिक डॉ. एन.जी. मित्रा ने बताया कि ट्राईकोडर्मा एक प्रकार का उत्कृष्ट सेल्यूलोज अपघटनकारी फफूंद है, जो दलहनी व गैर दलहनी फसलों में प्रयोग से मृदा के कार्बनिक पदार्थों का विच्छेदन करके अमीनो अम्ल ह्यूमस की निर्माण करके शर्करा एवं एल्कोहल के रूप में पौधों को पोषक तत्व की उपलब्धता बढ़ाती है.

जवाहर ट्राईकोडर्मा का दलहनी फसलों के बीजोपचार या मृदा में उपचार करने से बेहतर लाभ प्राप्त होते हैं. इसका पहले पाऊडर रूप में उत्पादन होता है, वैज्ञानिकों की टीम के अनुसंधान द्वारा ये अतुलनीय कार्य किया गया एवं शोध टीम की लगन से अब तरल जवाहर जैव उर्वरक तैयार कर दिया गया है. परिणामस्वरूप फसलोत्पादन में वृद्धि व दीर्घगामी लाभदायक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं, जो हमारे कृषकों हेतु अति उत्कृष्ट जैविक फफूंदनाशक के रूप में पहचाना जा रहा है.

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