दिखावे के लिए बॉडी बनाने की सनक

जिन लोगों को यह चिंता सताने लगती है कि वो काफ़ी दुबले-पतले और कमज़ोर हैं. उनमें बॉडी बिल्डिंग के लिए ज़्यादा कठिन अभ्यास करने की भूख पैदा हो जाती है.

निकोलस डेपूर्टर जब ख़ुद को आइने में देखते हैं तो उन्हें अब भी एक दुबला-पतला लड़का नज़र आता है, जैसा कि वो एक समय में थे. हालांकि 24 साल के निकोलस ने अब अपने शरीर को काफ़ी गठीला बना लिया है.

वो कहते हैं, “मैं हमेशा अपने खाली समय में ट्रेनिंग लेता हूं. मैंने यह तय किया है कि सप्ताह के अंत में कसरत करूं, क्योंकि अगर मैं जिम नहीं जा सकता हूं तो मुझे बहुत बुरा लगता है. यह सच में एक जुनून है”.

वो किसी आदत की वजह से हर रोज़ तीन घंटे तक कसरत नहीं करते हैं.

असल में वो एक अज्ञात बीमारी ‘बिगोरेक्सिया’ से शिकार हैं.इस बीमारी में लोगों को लगता है कि वो काफ़ी दुबले पतले हैं और अपनी बॉडी को बेहतर दिखाने की भूख उसमें बहुत ज़्यादा हो जाती है.

यह बीमारी आमतौर पर पुरुषों में ज़्यादा होती है और उन्हें लगता है कि उनके शरीर में ज़रूरी ताकत नहीं है.

निकोलस कहते हैं, मेरे अनुसार यह एक अच्छी सनक है. अगर आप दूसरों से बेहतर दिखना चाहते हैं, तो इस तरह की थोड़ी सी भूख आप में होनी चाहिए. यह एक लाइफ़ स्टाइल है, जिसे आप चौबीसों घंटे और सातों दिन कर सकते हैं”.

सिडनी यूनिवर्सिटी के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक पुरुषों में इस तरह की सनक की बीमारी महिलाओं के मुक़ाबले चार गुना ज़्यादा होती है और इसका पता भी नहीं चल पाता है.

हालांकि शोधकर्ताओं ने पाया कि पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा महिलाएं अपने शरीर को लेकर असंतुष्ट थीं, लेकिन पुरुषों पर इसका मनोवैज्ञानिक असर ज़्यादा था.

जानकार चेतावनी देते हैं कि यह किसी समय केवल पहलवानों या बॉडी बिल्डर्स के लिए चिंता की बात होती थी, लेकिन अब तो यह आम लोगों की बीमारी बनता जा रहा है.

बेल्जियम में जन्मे डेपूर्टर का शरीर शुरू से ही इस तरह गठीला नहीं था. बचपन में वो काफ़ी मोटे थे और डाइटिशियन ने उन्हें दुबला होने में मदद की. लेकिन वो बहुत ज़्यादा डाइटिंग करने लगे और फिर उन्हें अरुचि की बीमारी हो गई यानी उन्हें भूख नहीं लगती थी.

फिर वो कमज़ोर होने से बचने के लिए कसरत करने लगे. वो कहते हैं, “सबसे मुश्किल काम अरुचि को ख़त्म करना था. जब मैंने कसरत शुरू की तो इससे मुझे बहुत तकलीफ़ हुई. लेकिन मैंने देखा कि इससे बहुत फ़ायदा हो रहा है. भोजन करना, ट्रेनिंग, सोशल लाइफ़ और जिम यह सब मेरे जीवन का हिस्सा बन चुका है.”

26 साल के प्रदीप बाला को ही लीजिए, उन्हें मैग्ज़ीन में लोगों की तस्वीरों को देखकर अपने शरीर को सुडौल बनाने का ख़्याल आया. 16 साल की उम्र में वेटलिफ़्टिंग शुरू करने वाले बाला कहते हैं, “मैंने कुछ एथलीटों से प्रेरणा ली और सोचा कि मैं भी इसी तरह की बॉडी बना सकता हूं.”

लेकिन 19 साल की उम्र में उन्हें लगा कि उनका शरीर किसी फ़िटनेस मैग्ज़ीन के फ़्रंट पेज पर छपने लायक नहीं है.

वो बताते हैं, “इससे मुझे बहुत तकलीफ़ हुई. हां ये बात सही है कि मुझपर बहुत ज़्यादा सनक सवार थी. मैं अपनी पढ़ाई, परिवार और दोस्तों पर भी ध्यान नहीं दे पाता था. मैं यह भी नहीं समझ सका कि अपने शरीर को कमज़ोर समझना (बिगोरेक्सिया), एक तरह की बीमारी है.”

बिगोरेक्सिया को आमतौर पर एनोरेक्सिया (अरुचि) के विपरीत माना जाता है. एनोरेक्सिया में लोग समझते हैं कि वो बहुत ताकतवर और मोटे हैं. बिगोरेक्सिया में लोग अपने शरीर को कमज़ोर मानने लगते हैं और उनमें ताकतवर बनने की सनक पैदा हो जाती है.

शरीर को लेकर पुरुषों और महिलाओं में अलग तरह का असंतोष होता है. डॉक्टर ग्रिफ़ीथ के मुताबिक, जहां महिलाएं अपना वज़न कम करने में लगी रहती हैं, वहीं मर्द इसे बढ़ाने की कोशिश करते हैं.

हालांकि कितने लोग इस बीमारी के शिकार हैं, यह आंकड़ा मौजूद नहीं है.

बीबीसी न्यूज़ बीट की एक रिपोर्ट में यह पता चला है कि 2015 में ब्रिटेन के जिम में दस में से 1 मर्द को इस तरह की बीमारी थी. हालांकि ये आंकड़े पता कर पाना मुश्किल है, लेकिन जानकार डॉक्टरों का मानना है कि सभी पश्चिमी देशों में हालात लगभग ऐसे ही हैं.

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मनोचिकित्सक रॉबर्टो ओलिवर्डिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “ज़्यादातर शोध बताते हैं कि क़रीब 2.4 फ़ीसदी मर्दों में बॉडी बनाने की ललक होती है और उनमें 22 फ़ीसदी तो बिगोरेक्सिया के शिकार होते हैं.” उनका यह भी मानना है कि ये आंकड़े हक़ीक़त से कम हो सकते हैं.

पिछले हफ़्ते ब्रिटेन के विज्ञापन की बड़ी कंपनी क्रेडोस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, युवा लड़के अपने शरीर की बनावट को लेकर काफ़ी फ़िक्रमंद होते हैं. बॉडी बिल्डिंग के लिए सेकेंड्री स्कूल के आधे से ज़्यादा बच्चे कसरत करने के बारे में सोचते हैं.

जानकारों के मुताबिक शौकिया तौर पर बॉडी बनाना और मीडिया का सुडौल लोगों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाना एक चिंताजनक बात है.

वहीं बिगोरेक्सिया के कई साइड इफ़ैक्ट भी हैं, जो सेहत के ख़तरों से जुड़ा है.

सिडनी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे लोग न केवल बहुत ज़्यादा भोजन करने लगते हैं, बल्कि वो अवसाद के शिकार भी हो सकते हैं. यह अवसाद कई तरह से सामने आ सकता है. मसलन अगर बॉडी आपकी इच्छा के मुताबिक नहीं बन रही है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक बॉडी बिल्डिंग के लिए दवाओं का सहारा लेना भी मानव शरीर में ग्रोथ हार्मोन से जुड़े ख़तरों को बढ़ा सकता है.

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