दोनों किडनी फेल, हर तीसरे दिन डायलिसिस, आईसीयू में तैयारी कर पाई सफलता

 

विपिन शुक्ला, शिवपुरी। दोनों किडनियां फेल, हर तीसरे दिन डायलिसिस, आईसीयू में परीक्षा की तैयारी कर सीबीएसई 12वीं में फर्स्ट डिवीजन से सफलता हासिल की। यह कहानी है शिवपुरी के सेन्ट्रल स्कूल की छात्रा अंशुल गौतम की। रविवार को परिणामों में कॉमर्स संकाय की इस छात्रा ने बिषम परिस्थितियों के बावजूद 65 फीसदी अंक हासिल किए हैं।

बात अंकों की नहीं बल्कि शिवपुरी के नवाब साहब रोड पर रहने वाली अंशुल गौतम के ज्ाज्बे की है, जो सब पर भारी नजर आता है। इसी साल नवंबर माह में अंशुल की दोनों किडनी फेल होने की जानकारी परिजनों को लगी तो वे उसे दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करने ले गए।

गले और हाथ में सर्जरी हुई, हर तीसरे दिन डायलिसिस किया जाने लगा, लेकिन बहादुर बिटिया की जिद थी कि वह परीक्षा जरूर देगी। हालत को देखते हुए पिता अजय गौतम, चाचा रविकांत गौतम से लेकर डॉक्टरों व सेंट्रल स्कूल शिवपुरी की प्राचार्य व शिक्षकों ने समझाया कि बेटा तुम्हारी हालत ठीक नहीं है।

इस साल ड्रॉप ले लो, लेकिन अंशुल नहीं मानी और तमाम विषम परिस्थितियों के बावजूद परीक्षा दी और रविवार को जब परिणाम आए तो परिजनों से लेकर शिक्षकों को इस बहादुर बेटी के जज्बे पर फख्र हो रहा है। अंशुल ने 65 फीसदी अंकों के साथ हायर सेकंडरी की परीक्षा उत्तीर्ण की है। अंशुल स्वस्थ होकर आगे लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर आईएएस बनना चाहती हैं।

चाचा ने बढ़ाया हौसला, राइटर के जरिए दी परीक्षा

नवंबर माह में चेहरे पर सूजन आने के बाद परिजनों को पता चला कि अंशुल की दोनों किडनियां खराब हैं। आईसीयू में भर्ती कराया गया, तभी 2 फरवरी से प्रायोगिक परीक्षा की तारीख घोषित हो गई। हर कोई बिटिया को समझा रहा था कि इस साल परीक्षा मत दो, लेकिन जिद पर अड़ी अंशुल के इस हौसले को उसके चाचा आईटीबीपी में एसआई आशीष गौतम ने बढ़ाया और सबको भी राजी कर लिया।

दाएं हाथ में सर्जरी के कारण समस्या लिखने की थी, इसलिए सीबीएससी से राइटर का सहयोग लेने के लिए आवेदन किया गया, मंजूरी भी मिल गई। परीक्षा से पहले डायलिसिस व अन्य चेकअप कराने के बाद परिजन परीक्षा केंद्र पर अंशुल को ले जाते थे।

सफलता पर ये बोली अंशुल

जिंदगी में असफलता के लिए कई बहाने हैं, लेकिन सफलता का एक ही रास्ता है कि जिंदादिली के साथ आगे बढ़ा जाए और मैंने भी वही किया। परिजनों और शिक्षकों ने भी हौसला अफजाई की, बीमारी से लड़ाई अपनी जगह है।

 

 

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