बिजनौर हत्याकांड पर पत्रकारिता का ये घिनौना चेहरा

बिजनौर में शुक्रवार को कुछ स्कूली छात्रों के साथ छेड़खानी को लेकर हुए विवाद में तीन मुस्लिमों की हत्या कर दी गई। अक्सर जैसा की भारतीय मीडिया में कुछ अपवादों को छोड़कर मुस्लिमों को टारगेट करने की एक सांप्रदायिक बीमारी है। इस हत्याकांड को लेकर भी वहीं हुआ। अमर उजाला जैसे अखबार ने शनिवार को इस हत्याकांड को लेकर जिस तरह से खबर परोसी है, वह बताती है कि इस अखबार ने तो पत्रकारिता की ही होली जला दी है। अखबार ने इस घटना की मुख्य खबर इस शीर्षक के साथ-‘आरोपियों को मौत के घाट उतारने के लिए घर-घर खंगालते रहे उपद्रवी’ प्रकाशित किया। यही हाल दूसरे अखबारों का भी रहा। इससे समझा जा सकता है कि हमारा मीडिया वह चाहे अखबार हों, या वेब सब जगह सांप्रदायिकता का जहर किस हदतक घुल चुका है। वेब मीडिया ने जिस तरह तेजी के साथ हिन्दु युवतियों के साथ मुस्लिम युवकों द्वारा छेड़छाड़ किए जाने की खबरें परोसनी शुरू की, सोशल मीडिया में मुस्लिमों के खिलाफ नफरत का माहौल खड़ा होने लगा। लेकिन सच्चाई ये थी कि छेड़छाड़ मुस्लिम युवतियों के साथ हुई और इस अपराध के आरोपी हिन्दू समुदाय से तालुक रखने वाले बदमाश थे। और यह एक आपराधिक बदमाशी थी, जिससे अगर पुलिस सतर्कता व ईमानदारी से निपटती तो इस हत्याकांड को होने से रोका जा सकता था। इस हत्याकांड पर पढ़िये  दो टिप्पणियां-संपादक

Dilnawaz

कल बिजनौर में हुए हत्याकांड की वेब रिपोर्टिंग इस बात का भी उदाहरण है कि पत्रकारिता किस हद तक सांप्रदायिक हो चुकी है. ‘दैनिक जागरण’ ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट में लिखा, “स्कूल जाती छात्राओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने छेड़छाड़ की.”

अंग्रेज़ी अख़बार ‘इंडियन एक्सप्रैस’ की शुरुआती वेब रिपोर्ट में भी यही लिखा गया.

शाम होते-होते कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोग अपनी फ़ेसबुक पोस्टों में लिखने लगे, “लड़कियों से छेड़छाड़ पर शांतीदूत 72 हूरों के पास पहुँचाए गए.”

हालांकि बाद में इंडियन एक्सप्रैस ने अपनी रिपोर्ट में सुधार करते हुए लिखा कि छेड़छाड़ मुस्लिम लड़कियों के साथ की गई थी.

इस पूरे मामले के सभी पहलू देखने के बाद मेरी समझ में जो बात आती है वो ये है कि ये सांप्रदायिक हिंसा से ज़्यादा प्रशासनिक लापरवाही का मामला है.

स्थानीय पत्रकारों और लोगों से बात करने के बाद जो बात पता चली वो ये है-

-पीड़ित परिवारों ने छेड़छाड़ के बाद विवाद की जानकारी पुलिस को देने की हर मुमकिन कोशिश की.
– वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी देने के लिए 100 नंबर, बिजनौर के एसपी के फ़ोन नंबर और बाक़ी वरिष्ठ अधिकारियों को फ़ोन किया गया, किसी ने नहीं उठाया.
-यहां तक हल्के की चौकी और बीट कांस्टेबिल का नंबर लेकर उस तक पर फ़ोन किया गया किसी ने नहीं रिसीव किया.
-इलाक़े के जनप्रतिनिधियों को भी फ़ोन किया गया लेकिन किसी पर रिसीव नहीं हुआ.
-एक दरोगा, एक सिपाही और एक होमगार्ड मौक़े पर पहुँचे लेकिन उन्होंने हमलावरों पर सख़्ती बरतने के बजाए उनका ही साथ दिया.
– नतीजा ये हुआ कि अल्पसंख्यक समुदाय के परिवारों पर उनके घरों में घुसकर गोलीबारी की गई. जिसमें तीन लोगों की मौत हो चुकी है और नौ लोग घायल हैं.

फ़ेसबुक पर सोशल मीडिया पर बहस इस बात पर हो रही है कि छेड़खानी हिंदू-लड़कियों से हुई या मुसलमान लड़कियों से. ये ‘क्रिया पर प्रतिक्रिया’ का तर्क गढ़ने की कोशिश भर है.

जो सबसे बड़ा सवाल है कि इतनी कोशिशों के बाद भी ज़िला मुख्यालय से मात्र पांच मिनट की दूरी पर स्थित घटनास्थल पर पुलिस मदद क्यों नहीं पहुँच सकी? जो पुलिसवाले पहुँचे उन्होंने क्या किया?

क्या ये पुलिस की आपराधिक लापरवाही नहीं हैं? सांप्रदायिकता का चश्मा उतारकर देखने पर ये हत्याकांड पुलिस प्रशासन की घोर नाकामी नज़र आता है.

जो लोग मारे गए, वो निश्चित रूप से बचा लिए गए होते, अगर ज़िम्मेदार लोगों ने अपना काम सही से किया होता.

Mohammad Anas– 

मैं उस स्थापना को तोड़ना चाह रहा था जो दैनिक जागरण ने बिजनौर से स्थापित करने की कोशिश की थी और जिसे सोशल मीडिया पर लेकर ‘पढ़े लिखे- अच्छी सोच’ के लोग भी उड़ रहे थे। जो लोग ख़बरों की जांच पड़ताल बहुत करीने से करते रहे हैं उन्होंने भी दैनिक जागरण/दैनिक भास्कर/ हिंदुस्तान टाइम्स जैसे टुटपुंजिए पोर्टल्स की अफवाह पर यकीन किया। इन मीडिया दफ्तरों की विश्वसनियता कब की खत्म हो चुकी है। मैं न तो इन अख़बारों को पढ़ता हूं न तो यहां से कोई संदर्भ उठाता हूं। हिंदुस्तान टाइम्स ने छेड़छाड़ का आरोप मुसलमानों पर लगाया और उसके बाद लोग कहने लगे,’छेड़खानी करेंगे तो भुगतना तो पड़ेगा ही।’ या फिर ‘मुसलमान होते ही ऐसे है’ मतलब इज्जत पर डाका भी डालिए, जान से मार दीजिए और फिर मन मुताबिक ख़बर लेकर दर्जनों घायलों और पांच की मौत को किनारे लगा दीजिए।

न्यायप्रिय और लोकतंत्र में भरोसा करने वाले लोग सक्रिय हुए क्योंकि दैनिक जागरण/दैनिक भास्कर के ऑनलाइन एवं प्रिंट एडिशन पर मुसलमानों को लेकर हमेशा से निगेटिव स्टोरी होती रही हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने भी हिंदी पट्टी की मीडिया रिपोर्ट को फॉलो करते हुए छेड़खानी वाली घटना मुसलमानों से नत्थी कर दी, यह बेहद हैरान और परेशान करने वाली बात थी क्योंकि इंडियन एक्सप्रेस से झूठ की उम्मीद बिल्कुल नहीं रहती।लेकिन फिर याद आया वह वॉयरल थ्रेड जिसमें पीएम मोदी द्वारा आधी रात को एक आईएएस अफसर को फोन करके सड़क बनाने की बात पेश आई थी। वह वॉयरल फेसबुक पोस्ट बीजेपी आईटी सेल द्वारा प्रचारित किया गया था जिसे एक्सप्रेस ने ख़बर बनाते हुए पब्लिश कर दिया और नीचे डिस्कलेमर के तौर पर लिखा था – इस ख़बर की पुष्टि नहीं हुई है।’ मतलब एक्सप्रेस ने लगे हाथ दो काम किए , पहला ये कि बीजेपी को खुश किया, मोदी की ब्रांडिंग हुई सारे मामले से पल्ला भी झाड़ लिया।

इसके बाद एक्सप्रेस की बिजनौर छेड़छाड़ तथा हत्याकांड की पहली ख़बर की आलोचना शुरू होती है जो कुछ देर बाद एडिट करके उस हिस्से को हटाने पर मजबूर होना पड़ता है जिसमें उसने यह स्थापित करना चाहा था कि छेड़छाड़ मुसलमानों ने जाट युवतियों से की है।
मीडिया द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति नफरत का कार्य किया जा रहा है, यह समाज के बहुसंख्यक तबके की उस सोच को सिंचित करने में मददगार साबित होता है जिसमें मुसलमान या तो हिंसक होता है या फिर देशद्रोही। इस तरह के मौकों पर समाज के हिंदूओं खासकर पत्रकारों, संपादको, सामाजिक कार्यकर्ताओं को आगे आना चाहिए और मीडिया के इस नफरती एजेंडा को रोकने का प्रयास करना चाहिए। हर बार मुसलमानों के साथ हो रहे अन्याय पर मुझ जैसा मुसलमान ही क्यों लिखे, शुरूआत आपसे क्यों न हो, समाज को बेहतर बनाने की पहल मेरे ही फेसबुक वॉल से हो यह ज़रूरी नहीं, आप यह काम कब करेंगे ? या तो बता दीजिए साफ लिख कर कि आपको यह सब पसंद है, आप मीडिया के इस चरित्र को लेकर खुश हैं।

यहां एक हिंदू साथी के कमेंट का स्क्रीनशॉट लगा रहा हूं जो कि कल रात और आज सुबह में आए हैं। कल उन्होंने कहा कि छेड़छाड़ वाले लड़के मुसलमान थे फिर मैंने एक वेबसाइट का लिंक दिया तो वे माने नहीं, फिर लगा कि मान गए और उनकी एक टिप्पणी ‘मैं पीड़ित पक्ष के साथ हूं वे चाहे जो भी हो’ आई। उनकी बात हर किसी को अच्छी लगती सो लगी भी, उनकी बात पर भरोसा सबको होना था सो हुआ भी। एक हिंदू द्वारा सार्वजिनक तौर पर खुद को ‘पीड़ित (मुसलमान) के साथ’ खड़ा पा कर मुसलमानों ने भरोसा किया। आज सुबह उन्होंने फिर से वही कहा जो वे कल पहली टिप्पणी में कह रहे थे। उन्होंने मुझ पर आरोप लगाया कि गलत ख़बर बता रहा हूं लोगों को।
धोखा कई तरह से और कई चरणों में मिलता है। हम भरोसा करें और आप हमारी गर्दन उतार दें, यह तो अच्छी बात नहीं न। खैर.. आइए, ले जाइए गर्दन.. आप भी क्या याद रखेंगे की किन लोगों से सामना हुआ था। तोड़िए भरोसे को, हम बार बार भरोसा करेंगे आप पर। कितनी बार तोड़ेंगे? हम फिर भी उफ्फ न करेंगे। आपको कुछ न कहेंगे।

बिजनौर सामूहिक हत्याकांड /छेड़छाड़ पर और अधिक जानने के लिए इन न्यूज़ लिंक्स पर चटका लगा कर पढ़ सकते हैं।

http://indianexpress.com/…/bijnor-on-edge-after-3-of-famil…/

http://www.dnaindia.com/node/2255829

http://hindi.catchnews.com/…/in-up-bijnor-after-gi…/fullview

http://twocircles.net/2016sep17/1474056511.html#.V9vk_yF961s

Mohammad Anas's photo.
एफबी से साभार
 

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