भोपाल। राइट टू एजुकेशन (आरटीई) का प्रदेशभर में जमकर मखौल उड़ाया जा रहा है। मान्यता प्राप्त बड़े स्कूल फर्जीवाड़ा कर रहे हैं। यह स्कूल अभिभावकों से डोनेशन के साथ ही सरकार से भी आरटीई का भुगतान ले रहे हैं। अफसरों की मेहरबानी से गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को आरटीई के तहत एडमिशन देकर करोड़ों का भुगतान भी किया जा रहा है। इस सब के बीच मीडियम और छोटे स्तर के स्कूलों को दो-दो साल से भुगतान नहीं हुआ है। इस बात का खुलासा कैग की रिपोर्ट में हुआ है। उल्लेखनीय है कि राइट टू एजुकेशन के तहत निजी स्कूलों में गरीब बच्चों को एडमिशन के बाद फीस सरकार देती है। इसके लिए स्कूलों का मान्यता प्राप्त होना जरूरी है। वर्ष 2011 से 2015 के दौरान बुरहानपुर, धार और झाबुआ के 303 गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को 1 करोड़ से ज्यादा का भुगतान 4,361 विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए दिया गया। वर्ष 2011 से 2013 के दौरान बालाघाट जिले के 231 गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों को भी आरटीई के तहत भुगतान किया गया।
21 करोड़ रुपए होने के बावजूद नहीं किया भुगतान:कैग की रिपोर्ट के अनुसार स्कूल शिक्षा विभाग की लापरवाही से कई स्कूलों को समय पर आरटीई की राशि नहीं मिली, जबकि 132 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत थी। उनमें से 111 करोड़ रुपए का ही उपयोग किया गया। 21 करोड़ से ज्यादा की राशि डीपीसी के बैंक खातों में पड़ी रही। 2012-13 की फीस प्रतिपूर्ति निजी स्कूलों को 2014-15 में और 2013-14 की फीस प्रतिपूर्ति 2015-16 में की गई।
विभागीय अधिकारियों की गलती से 2011-16 के दौरान बालाघाट, दतिया, धार और रतलाम के स्कूलों के 1.63 करोड़ का भुगतान नहीं किया गया।
न निगरानी हुई, न सत्यापन
सर्व शिक्षा अभियान की मॉनिटरिंग के लिए 2014 में नोडल अधिकारी नियुक्ति के निर्देश दिए थे। लेकिन नियुक्ति नहीं की गई। नोडल अधिकारी को आरटीई के तहत स्कूलों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की उपस्थिति का रिकॉर्ड रखना था।
साथ ही इस बात पर भी नजर रखनी थी कि कोई स्कूल दोहरा बिल तो नहीं स्वीकृत करा रहा। बीआरसीसी और डीपीसी को फीस प्रतिपूर्ति प्रकरणों का सत्यापन करना था। लेकिन, निगरानी तंत्र की कमी के कारण निरीक्षण नहीं किया गया। इसके कारण विद्यालयों द्वारा किए गए दावों को ही अंतिम मानकर राशि जारी की गई।
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