बोरोलिन ने 1947 में आजादी पर मुफ्त बांटी थी एक लाख क्रीम, स्वदेशी कंपनी पर आज एक रुपये का भी कर्ज नहीं

Source : indiasamvad

खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम… के जिंगल और हरे रंग की ट्यूब वाली बोरोलीन की उम्र भले ही 87 साल हो गई, मगर इसकी माली सेहत समय के साथ और मजबूत होती जा रही।

नई दिल्लीः 1920 का वक्त और उसी समय गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन का आगाज। ब्रिटिश शासकों और कंपनियों के खिलाफ जनता में जबर्दस्त आक्रोश। जगह-जगह विदेशी कपड़ों की होली जलाई जा रही थी। 1857 के बाद से फिर  राष्ट्रवादी माहौल का उभार शुरू हुआ। उसी कालचक्र में 1925 में हेडगेवार  आरएसएस की स्थापना कर राष्ट्रवाद को धार देने में जुटे थे मगर विदेशी कंपनियों का मुकाबला करने के लिए भी कोई स्वदेशी कंपनी होनी चाहिए थी। इस बीच 1929 में गौर मोहन दत्ता ने स्वदेशी आंदोलन को व्यावसायिक धरातल पर उतारते हुए जीडी फार्मास्युटिकल्स की कलकत्ता में नींव डाली। जब कंपनी ने  बोरोलिन क्रीम बाजार में उतारी तो तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय चौंक पड़ा। अंग्रेजी हुकुमत में बोरोलीन जैसी भारतीय कंपनी की लोकप्रियता से अंग्रेज अफसर परेशान हो गए। उन्होंने कई तरह की बंदिशें डालनी शुरू कीं, मगर इन सबसे लड़ते हुए बोरोलीन क्रीम हिंदुस्तान की जनता के हाथ पहुंचती रही। तब से आज 87 साल हो गए, मगर आज भी कंपनी की सेहत पर कोई असर नहीं है। जहां आज बडे़-बड़े औद्यौगिक घरानों की कंपनियों हजारों करोड़ के कर्ज में डूबी हैं वहीं यह स्वदेशी मॉडल की कंपनी पर देश की जनता का सरकार का एक रुपया भी कर्ज नहीं है। बिना किसी मार्केटिंग तामझाम के भी यह कंपनी 2015-16 में 105 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल करने में सफल रही। बोरोलिन प्रोडक्ट की लोकप्रियता का ही नतीजा है

कि इसकी निर्माता फार्मा कंपनी को भी बोरोलिन कंपनी लोग कहने लगे। यानी जीडी फार्मा और बोरोरिन एक दूजे के पर्याय बन गए।

देश आजाद हुआ तो बांटी थी एक लाख क्रीम

 बोरोलिन के संस्थापक गौर मोहन दत्ता के पौत्र देबाशीष दत्ता इस समय कंपनी के एमडी हैं। कहते हैं कि जब 1947 में देश आजाद हुआ तो कंपनी ने हरे रंग की ट्यूब वाली एक हजार क्रीम बांटी। अंग्रेजी हुकूमत में जिस तरह से स्वदेशी कंपनी की राह में रोड़े अटकाए गए उन रोड़ों के अंग्रेजों की विदाई के साथ खत्म होने के जश्न में कंपनी ने सबके गाल पर मुफ्त में क्रीम पहुंचाने की पहल की। 

नेहरू हों या राजकुमार सबके घर पहुंची क्रीम

1929 में स्थापना के बाद से बोरोलिन क्रीम की इतनी लोकप्रियता बढ़ी कि उस समय के सभी बड़े कांग्रेसी नेता और अन्य हस्तियां इसे इस्तेमाल में लाने लगीं। चाहे पंडित नेहरू रहे हों या फिर अभिनेता राजकुमार। बोरोलिन की खुशबू  और एंटीसेप्टिक होने के चलते लोग इस स्वदेशी क्रीम के दीवाने बनते गए।

 

 

जैसे आज पतंजलि की घेराबंदी वैसे तब  बोरोलिन की

जिस तरह से आज बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी भारतीय बाजार में विदेशी कंपनियों का वर्चस्व तोड़ रही है,  कोलगेट, नेस्ले सहित कई विदेशी कंपनियां घेराबंदी में लगी हैं। ठीक उसी प्रकार से अंग्रेजों के जमाने में  बोरोलिन के साथ हुआ। उस दौर में देश में आयातित क्रीम का ज्यादातर इस्तेमाल होता था। नहीं तो भारतीय घरेलू विधि से आयुर्वेदिक क्रीम बनाते थे। मगर बोरोलीन जब तेजी से उभरी और सस्ते दर पर खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम देना शुरू किया तो जन-जन ने हाथोंहाथ लिया। उस दौर में बोरोलीन की बढ़ती लोकप्रियता से ब्रिटिश कंपनियां परेशान हुईं और उनके मालिकों के कहने पर ब्रिटिश सरकार ने औद्यौगिक सुविधाओं की राह में रोड़े अटकाने की कोशिश की। 

न क्वालिटी से समझौता किया न फार्मूला बदला

कोलकाता के जोका स्थित 28 एकड़ की फैक्ट्री से निर्मित  बोरोलिन 87 साल बाद भी अगर  लोकप्रिय है तो इसका क्वालिटी कंट्रोल। कंपनी ने क्रीम की गुणवत्ता से कभी समझौता नही किया। फार्मूला भी पहले जैसा रहा।  मुख्य रूप से बोरिक पाउडर, जिंक आक्साइड, जरूरी तेल, पैराफिन के फार्मूले से बोरीलीन तैयार होता है। 1929 में शुरू हुए जीडी फार्मास्युटिकल्स की पहचान यूं तो बोरोलीन से ही है, काफी समय बाद 1990 में कंपनी ने  Eleen hair oilशुरू किया।  फिर 2003 में कंपनी ने स्किन लिक्विड Suthol लांच किया। मगर  GD Pharmaceuticals Pvt. Ltd की पहचान बोरोलीन से ही आज तक कायम है।

फोटो-अपनी फैक्ट्री में मौजूद बोरोली कंपनी के एमडी देबाशीष दत्ता।

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