मानसून के बाद सर्दी भी अपना असर दिखाएगी

अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में पारा सामान्य से ऊपर बना हुआ है, लेकिन आने वाले दिनों में इसमें अचानक बदलाव की संभावना है। वजह यह है कि इस बार समुद्र में भारतीय मौसम को प्रभावित करने वाली हलचलें नहीं हो रही हैं, इसलिए अनुमान है कि इस बार सर्दी परंपरागत तरीके से पड़ेगी।

प्रशांत महासागर में पिछले दो-तीन सालों से लगातार अल नीनो बन रहा था। नतीजा यह था कि समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, जिसका असर भारत के मानसून पर तो पड़ता ही है, साथ ही सर्दियों पर भी पड़ता है। इससे सर्दियों में भी तापमान सामान्य से अधिक बना रहता है। पिछले कुछ सालों के दौरान इससे न सिर्फ सर्दी कम पड़ी है बल्कि, उसकी अवधि भी कम हुई है।

 

पिछले साल तो कड़ाके की सर्दी पड़ी ही नहीं थी।

प्रशांत महासागर में अल नीनो और ला नीना पर नजर रखने वाली एजेंसी एनओएए ने कहा कि अल नीनो या फिर ला नीनो उत्पन्न नहीं होने की संभावना 60 फीसदी है। दूसरे, ला नीना उत्पन्न होने की संभावना 40 फीसदी है, जबकि अल नीनो उत्पन्न होने को लेकर कोई संभावना व्यक्त नहीं की गई है। यदि ला नीना उत्पन्न होता है, तो इससे सर्दी और ज्यादा हो सकती है। अलबत्ता अल नीनो के प्रभाव से सर्दी घट सकती है।

मौसम वैज्ञानिकों ने हालांकि स्पष्ट पूर्वानुमान जारी नहीं किया है, लेकिन इन तथ्यों के आधार पर यह नतीजा निकाला जा रहा है कि यदि प्रशांत महासागर में अल नीनो या ला नीना उत्पन्न नहीं होते हैं, तो इसका भारतीय मौसम पर कोई प्रभाव नहीं होगा। इसका मतलब है कि सर्दियां सामान्य तरीके से पड़ेंगी। सामान्य सर्दी का मतलब यह है कि जैसे उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी पड़ती है, वैसी ही पड़ेगी। दूसरे शब्दों में कहें तो लोग यह नहीं कह सकेंगे कि ठंड नहीं पड़ रही है।

मौसम विभाग का मानना है कि अगले एक सप्ताह से तापमान में गिरावट का दौर शुरू हो जाएगा। दरअसल, अभी अधिकतम तापमान तो करीब-करीब सामान्य ही चल रहे हैं, लेकिन न्यूनतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री तक ज्यादा हैं। इसकी वजह सितंबर में कम बारिश होना, हवाओं की गति कमजोर होना तथा प्रदूषण ज्यादा होना बताया गया है।

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