मैंने इस्लाम का भाईचारा देखा और खुद मुसलमान बन गया – बॉक्सर मोहम्मद अली

17 जनवरी 1942 को पैदा हुए एक महान बॉक्सर मुहम्मद अली 3 जून 2016 को इस दुनिए से रुखसत हो गए. मुहम्मद अली हैवीवेट चैंपियनशिप जीतने वाले दुनिए के सबसे बेहतरीन बॉक्सर में से एक थे. एक ईसाई परिवार में पैदा हुए इस एथलीट ने अपना धर्म को छोड़कर 1975 में 33 साल की उम्र में इस्लाम धर्म को अपनाया. एक इंटरव्यू में उन्होंने इस्लाम को क़ुबूल करने को लेकर खुलासा किया.

इंटरव्यू के दौरान अली ने बताया की उन्होंने देखा की इस प्लेनेट पर लगभग 6 मिलियन से अधिक इस्लाम को मानने वाले लोग रहते है. जैसे पानी नदी से भी बहता, झील से बहता और कुंवा वह भी पानी से भरा होता हैं, लेकिन काम सबका एक ही होता हैं, पानी देना, प्यासे को पानी पिलाना उसी तरह ख़ुदा के नाम बहुत हैं, जैसे अल्लाह, भगवान्, कृष्णा और जीसस वगैरह, लेकिन सब अपनी-अपनी रहमत अपने बन्दों पर बनाए रखते हैं.

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मैंने इस्लाम धर्म इसलिए अपनाया की मैंने देखा की अगर एक इंसान भूखा है और दूसरे के पास खाने को एक रोटी भी मौजूद है तो वह उस इंसान से अपनी रोटी को बाँट के खायेगा, जोकि इस्लाम धर्म से अच्छा कोई नहीं सिखाता हैं. इस्लाम धर्म आपस में मोहब्बत करना सिखाता हैं, लोगो को इंसानियत सिखाता हैं. इस्लाम धर्म सुफिसम को बढ़ावा देता हैं. सुफिसम कहता हैं की आप अपनी ज़ात से किसी को भी दुःख न दो, किसी को नुक्सान न पहुँचाओ, भूखे को रोटी खिलाओ, पियासो को पानी पिलाओ, जिसके पास रहने के लिए सही ठिकाना न हो उसको रहने के लिए आसरा दो. इस्लाम के यह सब उद्द्येश ने मुझको इतना ज़्यादा आकर्षित किया की मैंने इस्लाम धर्म को अपनाया.

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और मैं आपको एक बात और बताता हूँ की अक्सर मुझसे पूछा जाता हैं. की आपने अपना नाम मुहम्मद कियो रखा, तो मैं आज इस बात का खुलासा करता हूँ की मैंने अपना नाम मुहम्मद अली कियो रखा. अगर वर्ल्डवाइड देखे तो तकरीबन 4  मिलियन लोगो के नाम मुहम्मद के नाम से है. और फिर जब मैंने पैगम्बर मुहम्मद के बारे में पढ़ा तो मैं बहुत ही ज़्यादा प्रभावित हुआ, और सच में यह नाम में शांति का प्रतीक है.

कोई भी पैगम्बर हो, चाहे वह मूसा अलेह अस्सलाम हो, ईसा अलेह अस्सलाम हो, या इस्लाम धर्म के आखिरी पैगम्बर मोहम्मद सल्लाहो अलेह वस्सल्लम हो, सब ख़ुदा के मैसेज को ख़ुदा के बन्दों तक पहुंचाते थे. सब सही हैं सब एक ही ख़ुदा को मानते है, सभी पैगमबर के फॉलो करने वाले एक ही ख़ुदा का कलमा पढ़ते हैं. यह इस्लाम धर्म की ऐसे बाते हैं जिन्होंने मुझे इतना ज़्यादा प्रभावित किया की जिसके कारण मैंने इस्लाम धर्म को क़ुबूल किया.

मैं किसी धर्म को गलत नहीं कहता और न ही किसी को झूठा कहता हूँ. सब धर्म अच्छे होते हैं, लेकिन उनके कुछ मानने वाले जो की धर्म के नाम पर उल्टा सीधा करते है, दहशतगर्दी फैलाते हैं. चाहे वो किसी भी धर्म के मानने वाले हो. पहली बात तो ये लोग धर्म को मानते ही नहीं तभी तो इंसानियत का क़त्ल करते हैं और धर्म के नाम पर बरबरियत को बढ़ावा देते हैं. हिन्दू धर्म में भी आपको ऐसे मानने वाले मिलेंगे, इस्लाम में भी आपको ऐसे लोग मिलेंगे, जीसस को ख़ुदा मानने वालो भी में ऐसे लोग हैं. और जितने भी धर्म है इस दुनिया में सब अच्छे हैं. और इंसानियत को बढ़ावा देते हैं. इसलिए धर्म कोई गलत काम नहीं करता उनके गलत फॉलोवर गलत करते हैं जिसका खामियाजा पुरे समाज को भुगतना पड़ता हैं.

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