मौत से पहले क्यों मजाक के मूड में थे गांधी जी? जानिए क्या थी पूरी कहानी

महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर ऐसी कुछ बातें, जिसे शायद ही इससे पहले कभी आपको पता हो। बापू के जीवन से जुड़े ऐसे कई तथ्य हैं, जिन्हें जानकर आप हैरान जरूर होंगे। हालांकि बापू के बारे में कई जानकारों और लेखकों ने अपनी किताबों में लिखी है। मशहूर लेखक लुई फिशर ने अपने किताब ‘गांधी की कहानी’ में इसका जिक्र किया था कि मरने से पहले गांधी जी और आभा-मनु के साथ एक संवाद है, जिसमें वे मजाक के मूड में थे। हालांकि इसी के कुछ क्षण बाद उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

आइए जानते हैं कि लेखक लुई फिशर की किताब में महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ा लिखा हुआ एक अंश…

”शाम को साढ़े चार बजे आभा भोजन लेकर आई।

 

यही उनका अंतिम भोजन होने वाला था। इस भोजन में बकरी का दूध, उबली हुई कच्ची भाजियां, नारंगियां, ग्वारपाठे का रस मिला हुआ अदरक, नीबू और घी का काढ़ा था। नई दिल्ली में बिड़ला भवन के पीछे वाले भाग में जमीन पर बैठे हुए गांधी जी खाना खा रहे थे और स्वतंत्र भारत की नए सरकार के उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से बात कर रहे थे। सरदार पटेल की पुत्री और उनकी सचिव मणिबहन भी वहां मौजूद थीं। बातचीत महत्त्वपूर्ण थी। पटेल और प्रधानमंत्री नेहरू के बीच मतभेद की अफवाहें थीं। अन्य समस्याओं की तरह यह समस्या भी गांधी जी के पल्ले डाल दी गई थी।

गांधी जी, सरदार पटेल और मणिबहन के पास अकेली बैठी आभा बीच में बोलने में सकुचा रही थी। परंतु समय-पालन के बारे में गांधी जी का आग्रह वह जानती थी। इसलिए उसने आखिर बापू की घड़ी उठा ली और उन्हें दिखाई। तब गांधी जी बोले- मुझे अब जाना होगा। यह कहते हुए वह वहां से उठे और पास के गुसलखाने में गए। इसके बाद भवन के बाईं ओर बड़े पार्क में प्रार्थना-स्थल की ओर चल पड़े। गांधी जी के चचेरे भाई के पोते कनु गांधी की पत्नी आभा और दूसरे चचेरे भाई की पोती मनु उनके साथ चलीं। उन्होंने इनके कंधों पर अपने बाजुओं को सहारा दिया। वह इन्हें अपनी ‘टहलने की छड़ियां’ कहा करते थे।

प्रार्थना-स्थल के रास्ते में लाल पत्थर के खंभों वाली लंबी गैलरी थी। इसमें से होकर प्रतिदिन दो मिनट का रास्ता पार करते समय गांधीजी सुस्ताते और मज़ाक करते थे। इस समय उन्होंने गाजर के रस की चर्चा की, जो सुबह आभा ने उन्हें पिलाया था।

मरने से पहले इस संवाद में मजाक के मूड में थे गांधी जी –

गांधी जी ने कहा- ‘अच्छा, तू मुझे जानवरों का खाना देती है!’ और हंस पड़े।

आभा बोली- ‘बा (गांधी जी की पत्नी) इसे घोड़ों का चारा कहा करती थीं।’

गांधी जी ने मजाकिया लहजे में कहा- ‘क्या मेरे लिए यह शान की बात नहीं है कि जिसे कोई नहीं चाहता, उसे मैं पसंद करता हूं?’

आभा कहने लगी- ‘बापू, आपकी घड़ी अपने को बहुत उपेक्षित अनुभव कर रही होगी। आज तो आप उसकी तरफ निगाह ही नहीं डालते थे।’

गांधी जी ने तुरंत ताना दिया- ‘जब तुम मेरी समय-पालिका हो, तो मुझे वैसा करने की जरूरत ही क्या है?’

मनु बोली- ‘लेकिन आप तो समय-पालिकाओं को भी नहीं देखते।’ गांधी जी फिर हंसने लगे।

अब वह प्रार्थना-स्थान के पासवाली दूब पर चल रहे थे। प्रतिदिन की सायंकालीन प्रार्थना के लिए करीब पांच सौ की भीड़ जमा थी। गांधीजी ने बड़बड़ाते हुए कहा- ‘मुझे दस मिनट की देर हो गई। देरी से मुझे नफरत है। मुझे यहाँ ठीक पाँच पर पहुँच जाना चाहिए था।’

प्रार्थना-स्थान की भूमि पर पहुंचने वाली 5 छोटी सीढ़ियां उन्होंने जल्दी से पार कर लीं। प्रार्थना के समय जिस चौकी पर वह बैठते थे, वह अब कुछ ही गज दूर रह गई थी। अधिकतर लोग उठ खड़े हुए। जो नजदीक थे वे उनके चरणों में झुक गए। गांधीजी ने आभा और मनु के कंधों से अपने बाजू हटा लिए और दोनों हाथ जोड़ लिए।
ठीक इसी समय एक व्यक्ति भीड़ को चीरकर बीच के रास्ते में निकल आया। ऐसा जान पड़ा कि वह झुककर भक्त की तरह प्रणाम करना चाहता है, परंतु चूंकि देर हो रही थी, इसलिए मनु ने उसे रोकना चाहा और उसका हाथ पकड़ लिया। उसने आभा को ऐसा धक्का दिया कि वह गिर पड़ी और गांधी जी से करीब दो फुट के फासले पर खड़े होकर उसने छोटी-सी पिस्तौल से तीन गोलियां दाग दीं।

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