यहां परंपरा के नाम पर होती है जिस्मफरोशी, अब युवाओं ने उठाया कलंक मिटाने का बीड़ा

किशोर ग्वाला, [मंदसौर]। जिले को जितनी पहचान अफीम की खेती से मिलती है,उतनी ही बदनामी बांछड़ा समाज के देह व्यापार को लेकर भी होती है। मंदसौर, नीमच और रतलाम जिले के 75 गांवों में बांछड़ा समुदाय की आबादी 23 हजार के आसपास है। इनमें 2 हजार से अधिक महिलाएं और युवतियां देह व्यापार के दलदल में धंसी है। मंदसौर जिले के 38 गांवों में लगभग 450 महिलाएं और युवतियां देह व्यापार में लगी हैं।

 

ये है परंपरा

मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में रहने वाले बांछड़ा समुदाय में यह रिवाज है कि परिवार की बड़ी लड़की देह व्यापार के धंधे में जाती है। उसकी कमाई से बाकी परिवार को पालने में मदद मिलती है। करीब 3-4 दशक पहले जब यह मामले सामने आए तो हर कोई हैरत में पड़ गया। हर कोई चाहता था कि यह प्रथा जितनी जल्दी हो सके खत्म हो। फरवरी 1983 में राज्य विधानसभा एकमत से इस प्रथा को खत्म करने के लिए कार्य करने पर सहमत हुई थी।

 

देह व्यापार नहीं माना जाता खिलावाड़ी

बांछड़ा समुदाय में ऐसा काम करने वाली औरतों को खिलावाड़ी कहा जाता है। यह महिलाएं अपना जिस्म बेचकर पैसा कमाती हैं, लेकिन समाज में इसे बुरा नहीं माना जाता। बल्कि यहां ऐसी औरतों को सम्मान भी खूब मिलता है और ये लोग संयुक्त परिवार में रहते हैं। समाज में महिलाओं का रुतबा पुरुषों के मुकाबले ऊंचा होता है।

 

ज्यादातर लोग इसके खिलाफ

लेकिन आज का सच यह भी है कि समाज के 65 फीसद लोग इसके खिलाफ हैं, पर खुलकर बोल भी नहीं रहे हैं। समुदाय की 12 युवतियों सहित 150 युवा कलंक के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। मंदसौर जिले के 38 गांवों में बाछड़ा समुदाय की 4 हजार से अधिक आबादी है। परंपरा के नाम पर समुदाय के कई लोग आज भी बेटियों को देह व्यापार के दलदल में धकेल रहे हैं। पहले तो सभी को ठीक लगता है, पर बाद में समाज की हेय दृष्टि चुभती है। कुछ युवा इसके खिलाफ मुखर हुए हैं।

 

दो हजार से ज्यादा युवतियां इस दलदल में

एनजीओ नई आभा सामाजिक चेतना समिति के आकाश चौहान ने बताया कि अभी तक 29 युवतियों को देह व्यापार के दलदल से मुक्त करा चुके हैं। रतलाम जिले के ढोढर क्षेत्र में पीरूलाल भाटी, ग्राम कोलवा के सुंदर चौहान और राज नायक इस अभियान में सतत सक्रिय हैं। साल 2003 तक इस बुराई के खिलाफ कोई खड़ा नहीं होता था। 2013 के बाद से बुराई के खिलाफ युवा बढ़ रहे हैं। आज समुदाय के ही 150 से अधिक युवा अपने समाज से यह दाग धोने की कोशिश में लगे हैं।

 

प्रयास कई, सफलता नहीं

बांछड़ा समुदाय को इस कलंक से निकालने के लिए प्रशासन ने कई बार प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो पाए। 2012 में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक डॉ. जीके पाठक ने 141 बालिकाओं को मुक्त कराया था। 2014 में तत्कालीन कलेक्टर संजीव सिंह ने भी प्रयास किए। 1 अप्रैल 2014 को रेवास देवड़ा रोड पर कलेक्टर सिंह ने समुदाय का सम्मेलन कर चर्चा की। इसका असर भी होने लगा था, लेकिन उसके बाद फिर समुदाय को कोई एक मंच पर लाकर समझाने का प्रयास नहीं कर पाया।

 

लड़कों की तुलना में दोगुनी हैं लड़कियां

मंदसौर जिले की जनगणना के अनुसार यहां 1000 लड़कों पर 927 लड़कियां है। पर बांछड़ा समाज में स्थिति उलट है। 2015 में महिला सशक्तीकरण विभाग द्वारा कराए गए सर्वे में 38 गांवों में 1047 परिवार और कुल जनसंख्या 3435 दर्ज हुई थी। इसमें 2243 महिलाए थीं और महज 1192 पुरुष थे। यानी पुरुषों के मुकाबले दोगुनी महिलाएं। 2381 लोग पढ़े-लिखे हैं। इनमें 2240 माध्यमिक तक, 141 लोग 12वीं पास हैं।

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