राजगढ़ का “बैंक सखी मॉडल है देश का पहला

भोपाल :

राजगढ़ जिले में संचालित ‘बैंक सखी मॉडल” प्रदेश का प्रथम और संभवत: देश का भी पहला मॉडल है, जहाँ बैंक सखियाँ घर-घर जाकर खाते खोलना, जमा-निकासी, वृद्धावस्था पेंशन बाँटना, स्कूलों में छात्रवृत्ति देना, जॉब-कार्ड का भुगतान करना, बीमा करना, स्व-सहायता समूह का लेन-देन जैसी अनेक सुविधाएँ ग्राम-स्तर पर उपलब्ध करा रही हैं। मध्यप्रदेश दीनदयाल अन्त्योदय योजना- राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा गाँव में गठित स्व-सहायता समूहों और उनके संगठनों को आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से ‘बैंक सखी मॉडल” का नवाचार किया गया है।

राजगढ़ जिले में बैंक सखी मॉडल की शुरूआत अक्टूबर-2015 में 12 ग्रामीण बैंक सखियों को जोड़कर हुई। स्व-सहायता समूह की 12 ग्रामीण महिलाओं को नर्मदा-झाबुआ ग्रामीण बैंक में बैंक सखी बनाकर प्रशिक्षण दिया गया। मार्च-2016 से ये बैंक सखियाँ व्यवस्थित कार्य का संचालन करने लगीं। वर्तमान में 67 बैंक सखियाँ जिले में कार्यरत हैं, जिनमें से 42 बैंक सखी एनजेजीबी बैंक, 23 बैंक ऑफ इण्डिया तथा 2 बैंक सखी पंजाब नेशनल बैंक के लिये कार्य कर रही हैं।

प्रारंभ में बैंक सखी 2 पंचायत के पाँच गाँव में कार्य करती हैं, जो संबंधित बैंक शाखा से 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित हो। छह माह बाद इन बैंक सखियों का कार्य क्षेत्र बढ़ाकर इन्हें 5 पंचायत एवं 10 गाँव का कार्य सम्पादित करने की जिम्मेदारी दी जाती है।

बैंक सखी मॉडल से लगभग 67 ग्रामीण महिलाओं को स्व-रोजगार का अवसर मिला है। यह बैंक सखियाँ न सिर्फ लेपटॉप पर अपना कार्य करती हैं बल्कि ग्रामीण महिलाओं को इस आधुनिक तकनीक से भी अवगत करा रही हैं। जिन गाँवों में विधवा, विकलांग एवं बुजुर्ग दम्पत्तियों को घंटों लाइन में लगकर अपनी पेंशन की राशि मिलती थी, उन्हें आज इन सखियों के माध्यम से घर बैठे ही पेंशन राशि प्राप्त हो रही है। भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर द्वारा जिले की 12 बैंक सखियों को रणभूमि पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

अब ग्राम स्तर पर बैंक खाते खोलना, समूह के खाते में लेन-देन करना, फण्ड ट्रांसफर करना, सामाजिक सुरक्षा की पेंशन आदि कार्य गाँव की महिलाओं को बैंक के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं। ये काम बैंक सखी करती है। ग्राम फूंदिया की सखी मंजू बताती हैं कि वह डीपीआईपी द्वारा गठित स्व-सहायता समूह से पिछले पाँच वर्षों से जुड़ी है। वर्ष 2015-16 में एनआरएलएम के सहयोग से नर्मदा-झाबुआ ग्रामीण बैंक की बैंक सखी के रूप में मंजू का चयन हुआ।

बैंक सखी बनने के बाद मंजू और इन्हीं की तरह अनेक युवतियों के स्वयं के जीवन में बदलाव आया, उन्हें समाज में प्रतिष्ठा मिली। वर्तमान में ये सभी 5 से 6 हजार रुपये मासिक आय प्राप्त कर रही हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराना एक चुनौती है। राजगढ़ जिले में स्व-सहायता समूह की महिलाओं को बैंक सखी बनाकर इस चुनौती को आसान बनाया गया है।

 

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