1857 के क्रांतिकारी का वंशज चिपका रहा पंक्‍चर

Bareilly: आजादी के तीन मस्तानों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अग्रेजी हुकूमत ने 23 मार्च को ही फांसी के फंदे पर लटका दिया था. इन वीर सपूतों की कुर्बानी को याद करने के लिए पूरा देश इस दिन को शहीद दिवस के तौर पर मनाता है लेकिन देश को आजादी की सुकून भरी सांस दिलाने में अपनी जान की बाजी लगा देने वाले जांबाजों और उनके घरवालों की कंडीशन देख कर आपकी भी आंखें भर आएंगी.
हुक्मरानों की बेरुखी ‘बनवा’ रही पंचर
भारत माता को बेडिय़ों से आजाद कराने के लिए बरेली से ही क्रांति का बिगुल फूं का गया. बीसीबी के दो टीचर्स और एक स्टूडेंट ने लड़ाई में शहादत दी. हक की इस मुहिम में भारत के सपूतों का नेतृत्व रुहेला सरदार हाफिज रहमत खां के ग्रैंड सन नबाब खान बहादुर खान ने किया और अंग्रेजी हुकूमत से मुकाबला करते हुए शहीद भी हो गए. आज भी डिस्ट्रिक्ट जेल के बाहर उनकी मजार मौजूद है. इस शहीद सपूत की शहादत का सिला देश को आजादी के रूप में मिल गया. लेकिन उनके अपनों को आजाद सरकार ने नजरअंदाज कर दिया. सिटी के कोहाड़ापीर पर हाफिज रहमत खां के आठवें वंशज नबाब शफ्फन खां साइकिल के पंचर जोडक़र अपना गुजर बसर करने का मजबूर हैं.
 
बीसीबी के टीचर्स ने फूंका था बगावत का बिगुल
इतिहासविद् डॉ. जोगा सिंह होठी ने बताया कि देश की आजादी के लिए 22 मई, 1857 में बीसीबी के टीचर मौलवी महमूद हसन ने नौमहला मस्जिद से अलविदा की नमाज के समय अंग्रेजों के साथ हो रही जंग को जायज बताकर, क्रांति का बिगुल बजा दिया. इसके बाद ही उन्हें जिला बदर कर दिया गया. 31 मई क ो बगावत और बगावत का नेतृत्व नबाब खान बहादुर खान ने किया. उनके आम प्रकाशक बीसीबी के टीचर मास्टर कुतुबशाह बने. शाही फरमान और पैम्पलेट लिखने और बीसीबी की प्रेस में छापने के जुर्म में उन्हें पहले और बाद में अंडमान की जेल में काला-पानी की सजा दे दी गई. वहीं बीसीबी के इंग्लिश के स्टूडेंट मोहम्मद अली उर्फ जेमी ग्रीन को जासूसी करते हुए उन्नाव की अंग्रेज बटालियन ने पकड़ लिया और लखनऊ-कानपुर हाइवे पर एक पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी. आजादी की लड़ाई के लिए मई 1857 से जुलाई 1859 के लिए बीसीबी को बंद कर दिया गया था.
 
BCB में पढ़े थे भगत सिंह के चाचा
भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह बीसीबी के लॉ डिपार्टमेंट में स्टूडेंट रह चुके हैं. हालांकि, राजनैतिक कारणों से वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. यहां से पंजाब वापस जाने के बाद उन्होंने किसान आंदोलन छेड़ा. आजादी की लड़ाई के लिए फंड कलेक्ट करने के लिए हुए काकोरी कांड में भी बीसीबी के स्टूडेंट दामोदर स्वरूप ने महत्वपूर्ण योगदान दिया.
 
जरा आंख में भर लो पानी
फूंक दो बर्बाद कर दो, आशियाना अंग्रेज का, नौजवान-ए-वतन फिर से गदर पैदा कर दो…
ये वो जज्बात हैं जिन्होंने भगत सिंह की शहादत के बाद बरेली के युवाओं को झकझोर कर रख दिया और वह दोगुने जोश, जज्बे और जुनून के साथ आजादी की जंग में कूद पड़े. फ्रीडम फाइटिंग में शहीद भगत सिंह का योगदान, देश की धरोहर फ्रीडम फाइटर्स की जुबानी…..
 
अब नहीं बचा देश सेवा का जज्बा
‘जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी, तब मैं केवल 11 साल का था. इसकी सूचना हमें 5 दिन बाद मिली थी. इसके बाद आर्य समाज में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. शहर के विभिन्न हिस्सों में युवाओं ने जुलूस निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया. इस शहादत के बाद तो जैसे देश सेवा के युवाओं की भीड़ ही उमड़ पड़ी. लोग सडक़ों पर बात करते हुए भी अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाना शुरू कर देते थे. इसके बाद आजादी का जुनून काफी ज्यादा बढ़ चुका था. वर्तमान समय में तो राजनीति में ईमानदारी रह ही नहीं गई है, किसी में देश सेवा का जज्बा ही नहीं बचा है.’
-शांति शरण विद्यार्थी, फ्रीडम फाइटर
 
…तो नहीं रास आती आजादी
‘जब भगत सिंह को फांसी दी गई उस समय मैं रावलपिंडी में था, मेरी उम्र 9 साल थी. मुझे उस मौके का तो ज्यादा याद नहीं है, पर आज भगत सिंह होते तो उन्हें यह आजादी रास ना आती. वास्तव में, यह वह आजादी नहीं है जिस पर उन्होंने अपनी जबानी कुर्बान कर दी. अब तो नेताओं में देश सेवा का जज्बा तक नहीं रह गया है. हर कोई केवल अपनी जेबें भरने में लगा है. वहीं दूसरी ओर लोग भूख से तड़प रहे हैं. जरूरत है कि भगत सिंह के समान जज्बे की, जो समाज में फैले स्वार्थ को दूर कर सके. उन्होंने अपनी मौत को ही देश को जगाने का जरिया बना लिया था.’
-किशन लाल आनंद, फ्रीडम फाइटर
 
रिपोर्ट तो भेजी पर जवाब नहीं मिला
शफ्फन खां बताते हैं कि उन्हें राज्य सम्मान और स्वतंत्रता पेंशन देने के लिए राज्य सरकार की ओर से तीन बार रिपोर्ट मांगी गई. तत्कालीन अधिकारियों ने इसकी रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेजी. रिपोर्ट में उन्हें राज्य सम्मान और स्वतंत्रता पेंशन दिए जाने की वकालत भी की. इसके बाद वर्तमान सरकार के अस्तित्व में आने के बाद वह लखनऊ भी गए और शासन को लेटर भी लिखा पर कोई रिस्पांस तक नहीं मिला. जबकि, खान बहादुर खान को तत्कालीन मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने बगावत के दौर में रुहेला नबाव की उपाधि भी दी थी.
 
एफबी पर भी मनाया शहीद दिवस
‘शहीद दिवस के मौके पर देश की आजादी के लिए शहादत देने वाले भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फेसबुक पर भी पूरे दिन याद किया गया. इस दौरान फेसबुक यूजर्स ने ज्यादातर फोटोग्राफ्स में इन शहीदों को देश की वर्तमान हालत देखकर दुखी होते ही दिखाया है. वहीं इस मौके पर यूजर्स ने देश भर में फैले करप्शन पर भी अपनी नाराजगी जाहिर की है. तमाम लोगों ने ऐसे वॉल पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रि याएं भी दी हैं. सैकड़ों परिंदे आसमां पर आज नजर आने लगे, शहीदों ने दिखाई है राह उन्हें आजादी से उडऩे की’
-श्वेता मिश्रा
 
‘युवाओं में कहां से जोश और उल्लास आ पाता, शहीदों की चिताओं का अगर दर्पण नहीं होता.’
-अजय भारद्वाज
 
आज शहीद दिवस है. आओ सब
‘मिलकर भगत सिंह, राजगुरू और भगत सिंह के बलिदान और शहादत के दिन को याद करें.’
-यतेंद्र कुमार
 
‘Bhagat singh, Rajguru and Shukhdev are going to be hanged this way the end of Bhagat singh’s fight for his country. and he sacrifice his life at a very young age for his country.’
-Brijesh Kumar
 
‘Our generation remembers very well about the valentine’s day rather than martydom day 23rd March.’
-Karuna Mysore

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