21 फ़िलिस्तीनी पत्रकार, फ़ासिस्ट, आतंकवादी अवैध देश इस्राईल की जेल में बंद : रिपोर्ट

पत्रकारों की समर्थक कमेटी ने ज़ायोनी सैनिकों के हाथों फ़िलिस्तीनी पत्रकारों की गिरफ़्तारी की निंदा करते हुए बल दिया कि कम से कम 21 पत्रकार, ज़ायोनी शासन की जेलों में बंद हैं।

फ़िलिस्तीन अलयौम की रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों का समर्थन करने वाली समिति ने सोमवार को एक बयान में ज़ायोनी शासन के हाथों फ़िलिस्तीनी पत्रकार और कार्यकर्ता मुहम्मद फ़रज इस्माईल अबू लफ़ह की गिरफ़्तारी की निंदा की और कहा कि अब तक ज़ायोनी सैनिक कम से कम तीन बार अबू लफ़ह को गिरफ़्तार कर चुके हैं और वह अब तक अपनी ज़िंदगी के तीन साल ज़ायोनी जेल में बिता चुके हैं।

इस बयान में पत्रकारों का समर्थन करने वाली समिति ने कहा कि पत्रकारों की गिरफ़्तारी की समयावधि बढ़ाने की नीति, मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय नियमों का खुला उल्लंघन है। बयान में कहा गया है कि अतिग्रणहकारी ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीनी मीडिया के विरुद्ध सरकारी आतंकवादी शुरु कर रखा है और यह शासन फ़िलिस्तीनी मीडियाकर्मियों को चुप कराने के प्रयास में है ताकि फ़िलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध और उनके डटे रहने को नुक़सान पहुंचा सके।

इस कमेटी ने अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मांग की है कि वह फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध इस्राईल की कार्यवाहियों को रुकवाने का प्रयास करे और फ़िलिस्तीनी पत्रकारों का अंतर्राष्ट्रीय समर्थन किया जाए।
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एक फ़िलिस्तीनी ने भूखे पेट रह कर इस्राईल को हरा दिया था
मई २०, २०१६
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ज़ायोनी शासन की जेल में लम्बी भूख हड़ताल करने वाले मुहम्मद अलक़ीक़ अंततः इस्राईल से अपनी लड़ाई जीत गए हैं।

अलआलम टीवी के अनुसार फ़िलिस्तीनी पत्रकार मुहम्मद अलक़ीक़ जिन्हें ज़ायोनी शासन की जेल में क़ैद करके रखा गया था तीन महीने की भूख हड़ताल के बाद रिहा हो गए हैं। वे गुरुवार की शाम को पश्चिमी तट के अलख़लील नगर के निकट स्थित अपने गांव पहुंच गए। अलक़ीक़ ने पत्रकारों को बताया कि उनकी यह विजय, ज़ायोनी शासन की कमज़ोरी को स्पष्ट करती है और इसी तरह यह भी साबित करती है कि सुरक्षा स्थापित करने के मामले में यह शासन पागल हुआ जा रहा है। इस फ़िलिस्तीनी पत्रकार ने कहा कि उनकी विजय, फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की विजयों की ही एक कड़ी है और यह राष्ट्र अपने गतिरोध से नई नई सफलताएं प्राप्त करेगा।

ज्ञात रहे कि 33 वर्षीय मुहम्मद अलक़ीक़ के दो बच्चे हैं और इस्राईल ने उन्हें दिसम्बर में गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया था। इस दौरान उन के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार की चार्ज शीट दाख़िल नहीं की गई। उन्होंने तीन महीने पहले अपनी अवैध गिरफ़्तारी और जेल अधिकारियों के बुरे रवैये के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल शुरू की थी और मांग की थी कि उन्हें रिहा किया जाए। अंततः वे भूखे पेट रह कर लड़ी गई इस लड़ाई में विजयी रहे और ज़ायोनी शासन ने उन्हें गुरुवार को रिहा कर दिया।

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