FILM REVIEW: कुछ ऐसी है अजय देवगन की ‘शिवाय’

फिल्मः शिवाय
स्टारः अजय देवगन, सायशा सहगल, एरिका कार, एबीगेल एम्स, वीर दास, सौरभ शुक्ला, गिरीश कानार्ड
डायरेक्टर-प्रोड्यूसर-स्टोरीः अजय देवगन
राइटरः संदीप श्रीवास्तव, रोबिन भट्ट
म्यूजिक एंड गानेः मिथुन, जसलीन रॉयल, सैय्यद कादरी, संदीप श्रीवास्तव, आदित्य शर्मा
रेटिंगः 2

 

इस फिल्म को देखने के बाद साल 2007 में दीपावली के मौके पर ही आई शाहरुख खान की फिल्म ‘ओम शांति ओम’ का एक डायलॉग याद गया, जो कुछ इस तरह था, हमारी फिल्मों की तरह, हमारी जिंदगी में भी एंड तक सब कुछ ठीक ही हो जाता है।’

हो सकता है कि दर्शकों यह फिल्म देख कर अंग्रेजी फिल्मों के कुछ सीन भी याद आने लगें।

 

हालांकि डायरेक्शन के अलावा फिल्म की कहानी भी एक्टर अजय देवगन की ही है, इसलिए कह सकते हैं कि उन्होंने किसी फिल्म से सीन नहीं लिए, हां प्रेरणा जरूर ली होगी। मोटे तौर पर शिवाय का मुख्य किरदार और उसका लक्ष्य साल 2008 में आई अभिनेता लिअम नीजन की फिल्म टेकन से आंशिक रूप से प्रभावित लगता है। हालांकि शिवाय का एक्शन और इमोशनल पक्ष, टेकन से कहीं ज्यादा उन्नत और अपील करने वाला है।

 

फिल्म की कहानी कुछ ऐसी है…
ये कहानी है एक पिता और उसकी बेटी की, जिसके बिछड़ जाने के बाद पिता का रौद्र रूप पूरी दुनिया को हिला कर देता है। अपनी बेटी की तलाश में ये पिता किसी सुपरहीरो की तरह एक देश में कोहराम मचा देता है और अंत में सब ठीक कर देता है। ये शाहरुख वाला डायलॉग इसीलिए याद आया था।

बॉलीवुड एक्टर अजय देवगन के डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘शिवाय’ एक पिता और बेटी की कहानी है और लीड रोल में अजय देवगन ही हैं। शुरुआत होती है शिवाय (अजय देवगन) और ओल्गा (एरिका कार) के प्यार से। शिवाय एक पर्वतारोही हैं और ओल्गा एक टूरिस्ट, जो बुल्गारिया से आई है।

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ओल्गा बुल्गारिया से भारत घूमने के लिए आई है। दोनों के बीच प्यार होता है लेकिन जब बात शादी तक पहुंचती है तो शिवाय हिमालय छोड़ने से मना कर देता है। कुछ दिनों बाद ओल्गा को पता चलता है कि वो मां बनने वाली है। ओल्गा मां बनकर एक बच्चे की जिम्मेदारी नहीं संभालना चाहती है और बेटी को जन्म देने के बाद बुल्गारिया वापस चली जाती है। शिवाय उस बच्ची को पालता है और उसका नाम रखता है गौरा (एबीगेल एम्स) रखता है। वो गौरा को बताता है कि उसकी मां मर चुकी है, लेकिन एक दिन गौरा को सच्चाई का पता चल जाता है और वो शिवाय से बुल्गारिया चलने के लिए कहती है।

बहुत जद्दोजहद के बाद शिवाय गौरा की बात मान जाता है और दोनों ओल्गा से मिलने बुल्गारिया चले जाते हैं। ओल्गा का जो पता शिवाय के पास होता है वो अब वहां नहीं रहती है। शिवाय ओल्गा की तलाश कर रहा होता है और इसमें अनुष्का (सायेशा सहगल) उसकी मदद करती है। इसी बीच गौरा का किडनैप हो जाता है। पुलिस इस बीच शिवाय को ही गिरफ्तार कर लेती है। शिवाय को पता चलता है कि बुल्गारिया में बच्चों को किडनैप कर उनको चाइल्ड ट्रैफिकिंग के लिए बॉर्डर पार रूस भेज दिया जाता है।

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अब शिवाय के पास सिर्फ 72 घंटे हैं गौरा को बचाने के लिए। वो जेल से फरार हो जाता है। अनुष्का इस बीच उसकी मदद करती है जो भारतीय अंबेसी में काम करती है। अनुष्का उसे एक भारतीय हैकर वहाब (वीर दास) से मिलवाती है। कुछ अहम सुरागों के बाद वहाब पुलिस की वेबसाइट हैक कर लेता है और पता लगा लेता है कि बच्चों से भरे एक ट्रक को रूस भेजा जा रहा है। गौरा भी उसी ट्रक में है लेकिन जब तक शिवाय को पता चलता है बहुत देर हो चुकी होती है।

फिल्म में ज्यादा कुछ बताने और छिपाने लायक नहीं
जाहिर है इस कहानी में छिपाने या बहुत कुछ बताने जैसा कुछ नहीं है। बहुत सारी चीजों को लेकर कयास लगाए जा सकते हैं, जो सही ही बैठेंगे। तो आखिर किस बल पर अजय देवगन ने इसके डायरेक्शन की सोची और इतना पैसा लगाया? इसकी दो बड़ी वजहें फिल्म देखने के बाद समझ आती हैं। पहली तो ये कि इस फिल्म का एक्शन कमाल का है। चाहे वो बर्फीले पहाड़ों में वीएफएक्स के जरिए दर्शाया गया स्टंट हो या फिर कार चेजिंग और कारों की तोड़फोड़। इसमें कोई दो राय नहीं कि एक एक्शन एक्टर होने के नाते अजय में इस खांचे में तो जान लगा दी है। एक्शन सीन लंबे हैं और कई जगहों पर सांस रोक देने वाले भी। इस चक्कर में एक-दो जगहों के कुछ सीन्स अविवश्सनीय भी लगे हैं। कारों की तोड़-फोड़ में अजय ने अपने दोस्त रोहित शेट्टी को भी पीछे छोड़ दिया है, इसलिए एक्शन सीन के लिए देवगन को पूरे नंबर दिए।

दूसरा है फिल्म का इमोशनल पहलू, जिसमें पहले-पहल एक पति-पत्नी और फिर एक बाप-बेटी के बीच आपसी रिश्तों की आजमाइश को अजय ने पिरोने की कोशिश की है। पूरी फिल्म के सारे इमोशनल सीन पर गौर करें तो अजय इसमें कई जगह सफल भी रहे हैं। खासतौर से सारी मार-धाड़ खत्म हो¨ जाने के बाद गौरा और शिवाय के अलग होने वाले दृश्य में भावुक पलों का कोटा काफी बड़ा भी है और गहरा भी। बावजूद इसके ये फिल्म कई जगहों पर मात खा जाती है। ओल्गा की हिंदी-अंग्रेजी वाले सीन्स में तालमेल नहीं दिखता जो लगभग सारी जगह बड़ा अटपटा लगा है।

बहुत फिल्मी है ‘शिवाय’ का किरदार
शिवाय का किरदार बेहद फिल्मी है, जो काफी कम जगहों पर विश्वस्नीय लगता है। फिल्म काफी लंबी है, जिसे लेकर अजय देवगन का कहना है कि उन्होंने इमोशनल पहलुओं पर मुकम्मल रौशनी डालने के लिए लंबाई वाली बात पर थोड़ी आजादी ली है। इमोशंस पर एक्शन हावी दिखता है और फिल्म के हर सीन में होने की वजह से शिवाय इन सब पर हावी रहता है। तकनीकी पहलुओं को छोड़ दें तो ये फिल्म नब्बे के दशक में भी बनाई जा सकती थी। एक पिता के लिए उसकी बेटी एक पल के लिए भी उसकी आंखों से ओझल हो जाए तो एक पिता की क्या हालत होगी, ये सब जानते हैं। लेकिन अपनी बेटी को किसी बदमाश के चंगुल से छुड़ाने के लिए एक पिता सुपरहीरो की तरह बर्ताव करेगा, ये केवल फिल्म में हो सकता है। असल जिंदगी में नहीं।

फिल्म में दिखेगी ‘टेकन’ की झलक
फ्रेंच फिल्म टेकन का जो उदाहरण दिया गया है, वो इसलिए भी कि अपनी बेटी को जिस्मफरोशी की दुनिया से निकालने के लिए लिअम नीजन इस फिल्म में एक विश्वस्नीय किरदार लगता है, जो अंधाधुंध मारकाट तो करता है, लेकिन वह सहजता से गले उतर जाता है। देवगन इस पूरी कवायद में बॉलीवुड के वही परंपरागत हीरो की तरह की नजर आते हैं, जिसे पेश करने का काम कोई और भी कर सकता था, तो फिर उन्होंने क्या नया किया?

अजय देवगन की असली शक्ति उनका अभिनय है, जो कम जगहों पर प्रभावित करता है। उन्होंने पूरी जान बस एक्शन पर ही लगा दी है, जो कई मायनें में रह रहकर अपील भी करती है। पर पूरी तरह से संतुष्टि नहीं देती। अपनी पहली फिल्म में सायशा सैगल ने अच्छा काम किया है। वो बेहद खूबसूरत हैं। अपनी मां शाहीन की ही तरह उनके नैन नक्श भी उनका प्लस प्वॉइंट हैं। एरिका कार का अभिनय सामान्य है और बाल कलाकार एबीगेल असर छोड़ती हैं। बाकी किरदार आधे अधूरे ढंग से लिखे गए हैं, जिन्हें विभिन्न कलाकारों ने निभाया भी उसी तरीके से है।

कुल मिला कर उत्सव के माहौल में आई ये फिल्म थोड़ी गंभीर लगती है, जो हंसी-खुशी की आस लगाए दर्शकों को निराश कर सकती है। बाकी तो सब बॉक्स आफिस की माया है, क्योंकि एसआरके ने कहा ही है कि हमारी फिल्मों की तरह…..

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