FILM REVIEW: फिल्म देखने से पहले पढ़ें Dear Zindagi का रिव्यू

डियर जिंदगी

सितारे : शाहरुख खान, आलिया भट्ट, कुणाल कपूर, अली जफर, अंगद बेदी,
ईरा दुबे, यशस्विनि दायमा
निर्देशक-लेखक-पटकथा : गौरी शिंदे
निर्माता : गौरी खान, करण जौहर, गौरी शिंदे
संगीत : अमित त्रिवेदी
गीत: कौसर मुनीर
रेटिंग 2.5 स्टार

अगर आपके जवान होते बेटे या बेटी की आपसे नहीं बन रही है तो शायद उसे डीडी की जरूरत है। बच्चे आपका फोन नहीं उठाते, आपसे ठीक से बात नहीं करते, घर से अलग रहते हैं या घर की किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी उठाने से कतराते हैं, तब तो उन्हें डीडी की सख्त जरूरत है। डीडी का मतलब है ‘दिमाग का डॉक्टर’…

 

मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों का नया नाम डीडी है। ये सुनने-बोलने में कूल लगता है।
मुंबई में रहने वाली कायरा (आलिया भट्ट) भी देखने में बेहद कूल लगती है। वो बात अलग है कि उसे उसके सपनों का पहला जॉब इसलिए मिलता है क्योंकि वह हॉट लगती है। लेकिन हॉट और कूल का ये संगम कायरा की असल पहचान नहीं है। लवर्स को बतियाते-गुनगुनाते देख बिंदास कायरा भड़क उठती है। पत्थर तक मारने दौड़ती है। अपने फोन में उसने मां का नंबर ‘ड्यूटी’ नाम से फीड किया हुआ है। उसे बिखरी हुई चीजें पसंद है। घर के नाम से उसे सख्त चिढ़ है। उसके माता-पिता गोवा में रहते हैं, जहां वह कभी नहीं जाना चाहती। लेकिन जब एक दिन उसका दिल जोरों से टूटता है तो उसे गोवा जाना ही पड़ता है।

साल 2012 में आई ‘इंग्लिश विंगलिश’ के बाद निर्देशक गौरी शिंदे एक ऐसी लड़की की कहानी बयां कर रही है, जिसकी जिंदगी रिश्तों की उलझनों में बस उलझ कर रह गई है। ऊपर से तो सबको यही दिखता है कि कायरा एक प्रतिभाशाली कैमरा वुमेन है और एक सफल सिनेमाटोग्राफर बनना चाहती है। लेकिन अंदर से वह कितनी घुटी हुई है इसका अंदाजा किसी को भी नहीं है। हर समय उसके साथ रहने वाले उसके दोस्त जैकी (यशस्विनि दायमा) और फैटी (ईरा दुबे) को भी नहीं। इसलिए जब कायरा अपने करियर की खातिर सिड (अंगद बेदी) का दिल तोड़ती है तो किसी को पता नहीं चलता। लेकिन जब रघुवेन्द्र (कुणाल कपूर) कायरा का दिल तोड़ता है तो इसका दर्द सभी को होता है। फैटी को भी, जो रघुवेन्द्र की सच्चाई कायरा को बताती है।

अपना दर्द समेटे कायरा कुछ समय के लिए जैकी के साथ अपने माता-पिता के पास गोवा चली जाती है। उसे वहां भी चैन नहीं मिलता। रातों को नींद नहीं आती। पेरेन्ट्स और रिश्तेदारों से उसकी वैसे ही नहीं बनती। ना वो उसे समझते हैं और ना वह उन्हें, इसलिए वह जैकी के साथ रहने लगती है और एक दिन कायरा की मुलाकात डीडी यानी दिमाग के डॉक्टर जहांगीर खान उर्फ जग (शाहरुख खान) से होती है।

कायरा, जग से पहली ही नजर में काफी प्रभावित होती है। अपनी उलझने सुलझाने के लिए वह उसके पास जाने लगती है। जग की बातों का उस पर काफी साकारात्मक प्रभाव पड़ता है और धीरे-धीरे कायरा रिश्तों को समझने लगती है। तभी उसकी जिंदगी में रूमी (अली जफर) आता है जो कि एक सिंगर है। कायरा को लगता है कि वह उसी के लिए बना है, लेकिन वह उसे भी ज्यादा दिन झेल नहीं पाती।

इसी दौरान एक दिन वह किसी बात पर अपने पेरेन्ट्स और रिश्तेदारों पर फट पड़ती है। जग को जब ये बात पता चलती है तो वह उसके अतीत के बारे में जानने की कोशिश करता है और उसे पता चलता है कि कायरा का बचपन बड़ी मुश्किलों भर था, जिसकी वजह से वह न केवल अपने माता-पिता से दूर रहना चाहती है, बल्कि हर रिश्ते से भी अपना दामन छुड़ा लेना चाहती है। उसे हमेशा यही डर सताता रहता है कि कहीं कोई उसे छोड़ कर न चला जाए, इसलिए वह हर रिश्ते को खुद से ही खत्म कर देती है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कायरा के रूप में गौरी शिंदे ने एक संवेदनशील किरदार गढ़ा है। चूंकि फिल्म की कहानी-पटकथा भी उन्होंने ही लिखी है, इसलिए उन्होंने कायरा के किरदार को कई रंग दिए हैं और परतें भी। लेकिन इस किरदार की उलझनों की गहराई में जाने और उसकी दिक्कतों के निवारण के लिए उन्होंने ढाई घंटे का लंबा समय लिया है, जिसकी वजह से फिल्म कई जगह काफी ऊबाई लगती है।

इंटरवल तक समझ आ जाता है कि आखिर कायरा का मिजाज कैसा है। उसके आस-पास की गतिविधियां कैसी हैं। कौन लोग हैं, जिन्हें वह पसंद करती है और किन्हें नापसंद। इंटरवल तक जहांगीर खान जैसे एक नए किरदार की एंट्री से कहानी में एक घुमाव की उम्मीद भी झलकती है, लेकिन ये उम्मीद बहुत देर तक उत्साह नहीं जगाती। कायरा और जहांगीर के बीच कई सीन्स बेहद अच्छे हैं। पल पल मजा भी आता है, लेकिन इन दोनों की कैमिस्ट्री बहुत अच्छी होने के बावजूद बहुत दूर तक नहीं जाती और पुख्ता अहसास भी नहीं जगा पाती। ये फिल्म कहीं-कहीं अच्छी लगती है तो बस आलिया के अभिनय की वजह से।

इसी साल आई ‘उड़ता पंजाब’ और ‘कपूर एंड संस’ के बाद इस फिल्म में आलिया का सबसे दमदार अभिनय देखने को मिलता है। वह भावुक दृश्यों में बेहद स्वभाविक लगती हैं। उनकी परिवक्वता इसी झलकती है कि वह एक क्षण में बदलने और पलटने सरीखे भावों को अच्छे से निभा लेती हैं। और यही वजह है कि जब कायरा अपने सपनों के फलक के इर्द-गिर्द होती है तो मन को भाती भी है, इसलिए ये फिल्म आलिया के बेहतरीन अभिनय के लिए एक बार देखी जा सकती है।

दूसरे छोर पर शाहरुख खान ने केवल अपने हिस्से के संवाद बोलने का काम किया है। वो धीरे से मुस्कुराते दिखते हैं। हल्की आवाज में बात करते दिखते हैं और इसी बातचीत के दौरान वह कुछ अच्छे सीन्स दे जाते हैं। शाहरुख से कुछ साक्षात्कारों के दौरान ये अहसास हुआ कि वह रील से परे रीयल जिंदगी में भी कुछ ऐसे ही बातें करते हैं और यही अहसास उन्होंने परदे पर भी उकेरा है। उनकी आवाज और हाव-भाव से संजीदगी झलकती है, लेकिन कुछ नया नहीं दे पाती।

बाकी कलाकारों का काम कायरा के किरदार की पेचीदगी के आगे ठीक से उभर ही नहीं पाया है। दरअसल गौरी शिंदे ने इस पेचीदगी को पनपने का भरपूर मौका दिया है, जिससे इस फिल्म में मनोरंजक तत्वों का घोर अभाव दिखता है। इस अभाव को भरने के लिए संगीत काफी हद तक मददगार साबित होता है। लेकिन वह भी काम नहीं आया है।

‘इंग्लिश विंगलिश’ के मुकाबले ये थोड़ी कमजोर फिल्म है, जिसमें शिंदे ने एक महिला के अस्तित्व और पहचान को मुद्दा बनाया था। उसका अंग्रेजी सीख लेना उसे विजयी बना देता है, हीरो की तरह। उसके मुकाबले ‘डियर जिंदगी’ बुरी फिल्म नहीं है, बल्कि कम अच्छी है। ‘उड़ता पंजाब’ में आलिया के किरदार की ही तरह ‘डियर जिंदगी’ देख कर एक गीत की पंक्तियां याद आती हैं। ‘एक कुड़ी जेदा नाम मुहब्बत, गुम है गुम है गुम है…’

 

 

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