REVIEW: ’31 अक्टूबर’.. दिल तक नहीं पहुंच पाएगी यह कहानी.. (1.5 स्टार)

फिल्म- 31 अक्टूबर

स्टारकास्ट- वीर दास, सोहा अली खान

निर्देशक- शिवाजी लोटन पाटिल

भारत में घटी कुछ घटनाएं ऐसी हैं, जिनसे आज तक लोगों की संवेदनाएं जुड़ी हुई हैं। 31 अक्टूबर 1984 वैसा ही एक दिन है, जिसे लोग भुलाए नहीं भूल सकते। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी। उसके बाद देखते देखते पूरे देश में दंगा फैल गया।

सड़कों, घरों, गलियों में घुस घुसकर सिखों की हत्याएं की जाने लगीं। सिख मां, बहनों की इज्जत लूटी जा रही थी, लेकिन इन सबके बीच प्रशासन और कानून भी हाथ बांधे बैठी रही। बहरहाल, इसी घटना पर आधारित है यह फिल्म 31 अक्टूबर..

फिल्म की कहानी एक सिख परिवार के इर्द गिर्द घूमती है।

 

दविंदर सिंह (वीर दास) और तजिंदर कौर (सोहा अली खान) अपने तीन बच्चों के साथ दिल्ली में रहते हैं। मुहल्ले में उनकी इज्जत है, लोग उन्हें प्यार करते हैं। लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद ही माहौल पूरी तरह से बदल जाता है।

लोग उन्हें हिराकत भरी नजरों से देखने लगते हैं। सड़कों पर लोग सिखों को पकड़ पकड़ कर जिंदा जलाते हैं। जिनमें से कुछ इनके परिवार के सदस्य भी होते हैं।

लेकिन यह परिवार किसी तरह अपने दोस्तों की मदद से दंगों से बच जाता है। फिल्म के अंत में दर्शकों को यही बताया गया कि साल बीत गए लेकिन दंगों के शिकार लोगों को आज तक इंसाफ नहीं मिल पाया।

फिल्म की बैक ग्राउंड म्यूजिक अच्छी है। कहीं कहीं पर संगीत की वजह से आप फिल्म से बंध पाएंगे। चाहे वह सोनू निगम द्वारा गाया गाना हो या दंगों के दौरान का बैकग्राउंड स्कोर।

फिल्म तकनीकी रूप से काफी कमजोर है। फिल्म की पटकथा लिखी है हैरी सचदेवा ने। इतनी संवेदनशील विषय पर केन्द्रीत होते हुए भी वह दर्शकों को भावुक करने में विफल रहे। शायद इसका कारण है कि फिल्म की कहानी सिर्फ कुछ ही किरदारों के इर्द गिर्द रह गई.. वह भी कुछ अधूरी सी।

फिल्म अच्छे विषय पर बनी है, यह लोगों के लिए एक दिलों में एक असर छोड़ सकती थी, लेकिन पटकथा, निर्देशन में थोड़ी कमियां होने की वजह से बेअसर रही।

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