जबलपुर. “अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम दास मलूका कह गए सबके दाता राम” वेतन दोगुना होने के बावजूद भी स्कूलों में उपस्थिति दर्ज करने का तकल्लुफ़ न उठाने वाले चंद शिक्षकों पर दास मलूका की यह कहावत सटीक बैठ रही है. एक तरफ केंद्र से शिक्षा के निजीकरण की बातें सामने आने लगी है दूसरी तरफ मास्साब है की टस से मस होने को तैयार नहीं. इसे में विद्यर्थियों का ही नहीं सरकारी स्कूलों का भविष्य क्या होगा कहना मुश्किल है. कर्मचारी संगठनो के नेता बार बार शिक्षकों को जाग्रत करने का प्रयास कर रहे है लेकिन कुछ शिक्षकों के कानो में जूं तक नहीं रेंग रही है. मिल रहा छठवां वेतनमान छठवां वेतनमान मिलने के बाद अध्यापकों का वेतन दोगुने से भी ज्यादा हो गया है. फिर भी उनकी न तो मांगें खत्म हो रही हैं और न ही स्कूल जाने की इच्छा. वर्तमान में एक लाख से ज्यादा शिक्षक स्कूलों से गायब रहते हैं. इनमें 80 हजार से ज्यादा अध्यापक हैं. हैरत की बात तो यह है कि करीब आधे शिक्षक 8 से 15 दिन या एक से दो महीने के अंतराल से स्कूल जाते हैं. स्कूल शिक्षा विभाग के मैदानी अफसरों द्वारा स्कूलों से आंकड़े जुटाने पर यह खुलासा हुआ है. प्रदेश में पौने 3 लाख शिक्षक “प्रदेश में 2 लाख 84 हजार अध्यापक और डेढ़ लाख नियमित शिक्षक हैं. इनमें से एक लाख से ज्यादा शिक्षक हमेशा गायब रहते हैं. इस कारण स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित होती है. ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा हो रहा है. वरिष्ठ अफसरों को दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों के न जाने से स्कूल बंद रहने और दो-तीन शिक्षक होने पर बारी-बारी से स्कूल जाने का फीडबैक भी मिला है. इसे देखते हुए विभाग ई-अटेंडेंस व्यवस्था को प्रभावी तरीके से लागू करने की कोशिशों में जुट गया है. अफसरों का कहना है कि इस व्यवस्था से सही स्थिति सामने आ पाएगी. 55 फीसदी मासाब नहीं आते स्कूलउल्लेखनीय है कि स्कूल शिक्षा विभाग के एसीएस रहते हुए एसआर मोहंती मुख्यमंत्री तक को बता चुके हैं कि 55 फीसदी अध्यापक स्कूल नहीं जा रहे हैं. स्कूल शिक्षा विभाग अब शिक्षकों की गैरहाजिरी के ठोस प्रमाण जुटाने पर काम कर रहा है. एक बार प्रमाण इकठ्ठे हो गए तो कार्रवाई भी ठोस ही होगी. संविलियन की मांग कर रहे अध्यापक छठवां वेतनमान मिलने के चंद दिन बाद ही अध्यापकों ने स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग शुरू कर दी है. अब वे सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि उन्हें विभाग में शामिल करें. ऐसा हुआ तो अध्यापकों को नियमित शिक्षकों जैसी सुविधाएं स्वत: मिल जाएंगी.
दोगुनी हो गई तन्खा अब तो स्कूल जाओ मासाब

Be the first to comment on "दोगुनी हो गई तन्खा अब तो स्कूल जाओ मासाब"