जबलपुर. शहर के आबकारी विभाग में अब तक पदस्थ अधिकारीयों में सर्वाधिक विवादित अधिकारियों में गिने जाने वाले विनोद रघुवंशी पर आख़िरकार इंदौर में कार्यवाही की गाज गिर ही गई .शराब ठेकों के 41 करोड़ के घोटाले में जहाँ छह अधिकारी कर्मचारी निलंबित किये गए वहीँ 20 अफसरों का तबादला किया गया है. शहर में सहायक आयुक्त रहने के बाद इन्दोर में उपायुक्त बन कर गए विनोद रघुवंशी पर कार्यवाही के बाद उनकी जबलपुर पदस्थापना के साथ जिन जिलों में तैनाती हुई उनकी फाइले खंगाली जा रही है. वित्त मंत्री ने उठाया कदम शराब ठेकों के 41.40 करोड़ स्र्पए से अधिक के घोटाले में आबकारी विभाग के सहायक आयुक्त संजीवकुमार दुबे सहित छह अफसरों को निलंबित कर दिया गया है. उपायुक्त विनोद रघुवंशी का भी तबादला कर दिया गया है. निलंबित अधिकारियों में लसूड़िया आबकारी वेयरहाउस के प्रभारी डीएस सिसोदिया, महू वेयर हाउस के प्रभारी सुखनंदन पाठक, सब इंस्पेक्टर कौशल्या सबवानी, हेड क्लर्क धनराज सिंह परमार और अनमोल गुप्ता भी शामिल हैं. साथ ही इंदौर में 3 साल से अधिक समय से जमे 20 अधिकारियों और बाबुओं को भी हटा दिया गया है. इनमें उपायुक्त के अलावा 7 जिला आबकारी अधिकारी, 11 आबकारी उप निरीक्षक और एक लिपिक शामिल है. फर्जी बैंक चालान के जरिये शराब ठेके हासिल करने के मामले का खुलासा होने के बाद आबकारी और वित्त विभाग दोनों की बदनामी हो रही थी. इसलिए वित्त मंत्री जयंत मलैया ने इंदौर में यह बड़ा कदम उठाया. मंत्री ने कार्रवाई की पुष्टि करते हुए कहा कि मामले की जांच में प्रथम दृष्टया जो तथ्य सामने आए हैं उसे देखते हुए यह कदम उठाया गया है. अधिकारियों पर कार्रवाई में देरी इसलिए हुई कि हम राजस्व की वसूली करना चाहते थे. फर्जी बैंक चालान की 41.40 करोढ़ की राशि में से अब तक 23 करोड़ स्र्पए की वसूली हो चुकी है. बाकी की राशि दोषी ठेकेदारों की संपत्ति कुर्क करके वसूल की जाएगी. शहर के विषय में फिलहाल नहीं किया खुलासा जब मंत्री से यह पूछा गया कि इंदौर की तरह भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, सागर जैसे जिलों में तो आबकारी ठेकों को लेकर इस तरह का खेल नहीं चल रहा है? जवाब में मंत्री मलैया ने कहा कि हमने चेक करवाया है, इंदौर के अलावा किसी जगह ऐसा मामला सामने नहीं आया है. आगे इस तरह की कोई गड़बड़ी न हो इसके लिए अब लाइसेंस और ठेकों की राशि ऑनलाइन जमा कराई जाएगी. लगा था दस्तावेजों में छेड़छाड़ का आरोप जबलपुर में विनोद सिंह रघुवंशी सहायक आबकारी आयुक्त रहने के दौरान विवादित रहे. रघुवंशी पर भोपाल में जिला आबकारी अधिकारी रहते हुए एक शराब कंपनी अशोक ट्रेडर्स को गलत तरीके से लाभ पहुंचाने और इसके लिए सरकारी दस्तावेजों में छेड़छाड़ करने का आरोप था. इस आरोप की पुष्टि के लिए आबकारी विभाग ने अपने ही अधिकारियों से दो-दो बार इसकी जांच कराई और जांच में आरोप सही भी पाए गए लेकिन इस वजनदार अधिकारी ने जुगाड़ बिठाकर इन दोनों जांच रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े कर दिए. रघुवंशी की अशोक ट्रेडर्स पर मेहरबानी से जिस दूसरी कंपनी को नुकसान जब वह अदालत पहुंची तो गड़बडिय़ों का सिलसिला और खुलता गया और पहले हाईकोर्ट एवं बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि विनोद रघुवंशी ने न केवल अपने पद का दुरुपयोग किया बल्कि एक शराब कंपनी को अवैधानिक तरीके से लाभ पहुंचाया. कोर्ट ने सरकार को विनोद रघुंवशी के खिलाफ कार्रवाई करने निर्देश दिए लेकिन विभाग के प्रमुख एके श्रीवास्तव के चहेते इस अधिकारी का बाल भी बांका नहीं हुआ. उल्टे प्रमुख रघुवंशी को सहायक आबकारी आयुक्त से उपायुक्त बनाने की तैयारी कर रहे हैं. यदि आचार संहिता का रोड़ा नहीं होता तो शायद यह दागी अधिकारी रघुवंशी अब तक पदोन्नत भी हो चुके होते. विधानसभा चुनाव के दौरान रघुवंशी पर एक पार्टी विशेष के लिए चुनावी चंदा इकठ्ठा करने के आरोप भी लगे. चुनाव में इसकी शिकायत हुई. चुनाव आयोग ने दिए थे निर्देश आयोग ने आबकारी आयुक्त को रघुवंशी को हटाने के निर्देश दिए लेकिन विभाग के प्रमुख श्रीवास्तव की रघुवंशी से नजदीकी के कारण आयुक्त भी कोई कार्रवाई नहीं कर पाए. आचार संहिता के दौरान चुनाव आयोग के निर्देश पर सरकार ने भोपाल में एसडीएम पदस्थ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भांजी सहित कई बड़े और प्रभावशाली अधिकारियों तक को हटा दिया लेकिन रघुवंशी के मामले में पूरी सरकार यह हिम्मत नहीं दिखा पाई. आयोग की कार्रवाई से बचने के लिए प्रमुख सचिव लंबी छुट्टी पर चले गए. तत्कालीन महाधिवक्ता ने क्या लिखा आबकारी आयुक्त को इन दोनों जांच प्रतिवेदनों के आधार पर तत्कालीन महाधिवक्ता ऋषभदास जैन ने 21 अक्टूबर 2013 को पत्र लिखकर कहा कि इन दोनों जांचों के निष्कर्षों में विनोद रघुवंशी का कार्यवाही में संलिप्त होना प्रथमदृष्टया पाया गया था, लेकिन इसकी जांच न करते हुए उपसचिव आबकारी आरके वाजपेयी ने भरत कुमार व्यास की जांच रिपोर्ट पर उंगली उठाई थी. महाधिवक्ता ने लिखा कि उपसचिव की जांच से साफ है कि भरत कुमार व्यास से पहले की गई जांच के बाद आरडी जौहरी ने अलग से कोई जांच नहीं की थी. इस बात का खंडन करते हुए उन्होंने लिखा कि सामने आए तथ्यों से यह भी साफ है कि भरत कुमार व्यास और आरडी जौहरी द्वारा की गई जांच में विनोद रघुवंशी के विरूद्ध अनियमितता की जाना पाया गया था. ऐसी दशा में बिना किसी जांच के दोनों जांच रिपोर्ट को अमान्य कर दिनांक 23 अगस्त 2007 को निष्कर्ष निकाला गया जबकि दोनों जांचों में विनोद कुमार रघुवंशी की संलिप्तता पाई गई थी. इस संबंध में 10 अप्रैल 2008 को अजय अरोरा ने एक परिवाद पत्र प्रस्तुत किया जिस पर इसी तारीख को ही धारा-420 और 120-बी के तहत विनोद रघुवंशी, आरके गोयल और ओपी शर्मा पर मामला दर्ज हुआ था. इसके बाद लगातार अदालती कार्यवाही चलती रही. इसके बाद हाई कोर्ट ओर फिर सुप्रीम कोर्ट में आरोरा के परिवाद पर सुनवाई में यह साबित हुआ कि रघुवंशी सहित गोयल और शर्मा ने गड़बड़ी की है. रघुवंशी के खिलाफ लगी थी जनहित याचिका यह जनहित का मामला जनता दल (यू) के नेता सूरज जायसवाल की ओर से दायर किया गया था. जिसमें कहा गया है कि तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त जबलपुर के पद पर पदस्थ विनोद रघुवंशी, जब भोपाल में पदस्थ थे तो शासकीय अभिलेखों में हेरफेरी की थी. न्यायालय ने भी उनके खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने के निर्देश जारी किए थे. जिसके खिलाफ उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में भी याचिका दायर की थी, जो खारिज कर दी गई थी. इसके बावजूद भी उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया. आवेदक का कहना था कि इसके अलावा सहायक आयुक्त आबकारी रहते हुए उन्होंने शराब ठेकेदारों का सिंडीकेट बनाया और नियम विरुद्ध तरीके से उन्हें शराब दुकानें आवंटित की. जिसके कारण सरकार को करोड़ों रुपए की राजस्व हानि हुई. शराब सिंडीकेट में उन्हीं की 20 प्रतिशत की पार्टनरशिप है. याचिकाकर्ता ने साक्ष्यों के साथ लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू में उनकी शिकायत की थी, लेकिन कोई कायर्वाही नही हुई. याचिका में राहत चाही गई है कि उक्त अधिकारी के खिलाफ न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कर सख्त कायर्वाही की जाए. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता संजय अग्रवाल ने पक्ष रखा था
41 करोड़ के शराब घोटाले में फंसे रघुवंशी

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