एसपी की मौत के बाद पुलिसवालों ने खो दिया था आपा, नहीं सुने आदेश

पुलिस लाइन में बैठक हुई। डीएम और एसएसपी की मौजूदगी में प्लानिंग बनी। उस पर अमल बाद में होना था। रिहर्सल के नाम पर एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी को रंगरूटों के साथ जवाहरबाग भेज दिया गया। एसएसपी और डीएम की इसी चूक से दो जांबाजों की जान चली गई। एसओ फरह की मौत और एसपी सिटी के मरणासन्न होने पर पुलिस आपा नहीं खोती तो जवाहरबाग खाली भी नहीं हो पाता। आपा खोने के बाद पुलिस ने बिना किसी निर्देश के काम किया। अधिकारी चाहकर भी किसी को नहीं रोक पाए और लाशों के ढेर लग गए।

मथुरा पुलिस लाइन में रंगरूटों की ट्रेनिंग चल रही है। 150 रंगरूट, चार थानेदार और 40 सिपाही लेकर एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और सिटी मजिस्ट्रेट को जवाहरबाग भेजा गया था।

बैठक में कार्रवाई की पूरी रूपरेखा बनी थी। यह तय हुआ था कि अश्रु गैस के गोले, रबड़ बुलट का प्रयोग किया जाएगा। यह कार्रवाई ऑपरेशन के दौरान की जानी थी। एसपी सिटी को जवाहरबाग के पीछे की दीवार तोड़कर यह देखने भेजा गया था कि कब्जाधारी क्या करते हैं।

अधिकारियों की इसी चूक ने एसपी सिटी और एसओ फरह की जान ले ली। मौके पर मौजूद पुलिसकर्मी घटना की चर्चा कर रहे हैं। उनके अनुसार दीवार तोड़ते ही एसपी सिटी आगे बढ़े। कब्जाधारियों से बातचीत करते, इससे पहले उन्होंने पथराव शुरू कर दिया। भगदड़ मच गई। रंगरूट भाग खड़े हुए। पत्थर लगने पर एसपी सिटी गिर पड़े। आधा दर्जन उपद्रवियों ने उन्हें घेर लिया। लोहे की रॉड से उनके सिर पर ताबड़तोड़ वार शुरू कर दिए। यह देख एसओ फरह संतोष कुमार यादव उन्हें बचाने पहुंचे। उपद्रवियों ने एसओ को गोली मार दी। वह मौके पर ही गिर पड़े। अफरा-तफरी मच गई। वायरलेस सेट पर फोर्स की मांग की गई।

पुलिस वालों ने जैसे ही एसपी सिटी की हालत देखी वे आपा खो बैठे। उन्होंने फिर किसी दिशा निर्देश का इंतजार नहीं किया। ऑपरेशन की कमान अपने हाथ में ले ली और ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं। इसी दौरान आगजनी हो गई। सिलेंडर फटने लगे। धमाकों से आस-पास का इलाका दहल गया। पुलिस ने एक घंटे की कार्रवाई में जवाहरबाग खाली करा दिया। वे इतना गुस्से में थे कि अधिकारी चाहकर भी उन्हें नहीं रोक पाए। उस समय किसी की यह समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है। जिसे जो ठीक लग रहा था वह वही कर रहा था।

सरकार माने या नहीं माने। मथुरा पुलिस खुद यह बोल रही है कि प्लानिंग का अभाव था। एसएसपी को खुद लीड करना चाहिए था। आला अधिकारियों को खुद मौजूद रहना चाहिए था। डंडे लेकर रंगरूटों को भेजने की जरूरत ही क्या थी। यह नौसिखियापन है। जानकर दो जांबाज पुलिस अधिकारियों की मौत के मुंह में धकेला गया। उनकी मौत के लिए कोई और नहीं मथुरा के अधिकारी जिम्मेदार हैं।

एसएसपी ने नहीं संभाली कमान: ऑपरेशन जवाहरबाग पर सीधे शासन की नजर थी। कई जिलों से फोर्स पहुंचा था। ऐसी स्थिति में ऑपरेशन की कमान एसपी सिटी को सौंप दी गई। दीवार तोड़ने का फैसला ठीक नहीं था, जबकि अधिकारियों को इस बात का अंदाजा था कि अंदर जमे लोगों के पास भारी मात्रा में हथियार हैं। वे पहले भी कई बार कानून को अपने हाथ में ले चुके थे।

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