मिशन-ए-उर्दू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी

Bhopal :यह करम मुझपे कुछ ज्यादा है!! वक्त बदलता है, हालात बदलते हैं, दिल बदलता है, दिल के अहसास भी बदल जाते हैं। इसी दौर-ए-बदलाव से फिलहाल एक ऐसा संगठन गुजर रहा है, जो कभी एक कौम-ए-खास को फूटी नज़र देखना पसंद न करता था। उसके लिए बोल में आग, इरादों में ज्वाला और कर गुजरने के लिए नेस्तनाबूद करने की नीयत हुआ करती थी। लेकिन कहते हैं कि सब चीजें सदा समान नहीं रहती। बदले हालात में संगठन के विचारों में भी बदलाव नज़र आ रहा है। कुछ साल पहले संगठन ने एक शाख को आकार दिया, केन्द्र बिंदु में वही कौम-ए-खास थी, जिससे हमेशा कुट्टी का रिश्ता रखा गया। लोगों को अचरज हुआ, लाजिमी भी था। लन्गडाते कदमों से चली इस शाखा ने कुछ खास परिणाम तो नहीं दिए, लेकिन लोगों की धारणा बदलने का एक नजरिया जरूर दे दिया। बात कुछ और आगे बढ़ी, फिर एक कोशिश, एक नई तन्जिम की तहरीर लिखने की, लेकिन शुरुआती रिस्पान्स ही बेहद ठन्डा रहा, सो बात पिटारे से बाहर ही नहीं निकल पाई। कुछ दिन पहले इस संगठन के मन्च ने फिर एक तारीखि इबारत लिख डाली। मिशन किसी साजिश के तहत खत्म होती उर्दू जुबान को पुनर्जीवित करने का है। हालांकि मिशन-ए-उर्दू उस सन्गठन की मुहिम न होकर नया कारवां नामक एक सामाजिक संस्था का शगल है, लेकिन इसकी शुरुआत सन्गठन खास के मन्च से होना दान्तो तले उगलिया दबाने का कारण बन गया है। चलिए शुरुआत अच्छी है, इसकी कामयाबी की दुआ भी की जाना चाहिए, लेकिन शर्त यह है कि इस बदलाव, झुकाव, लगाव का कोई सियासी साइड इफेक्ट न हो।

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