युवाओं में बढ़ रहा फैशन का क्रेज

फैशन को लेकर युवा पीढ़ी कुछ ज्यादा ही संजीदा है। वक्त के साथ बदलते फैशन पर यह पीढ़ी न सिर्फ नजर रखती है बल्कि उसे अपनाने में भी देर नहीं करती।

फैशन को लेकर युवा वर्ग में बड़ा क्रेज है। साथ ही खुद के लुक को स्मार्ट बनाने के लिये गंभीर भी। समय बदलने के साथ फैशन ट्रेड पर नजर रखना और उसे अपनाने की होड़ में यह सबसे आगे रहती है। टीवी सीरियल या सिनेमा में कोई भी नया फैशन आया नहीं कि युवाओं को इसे अपनाने में देर नहीं लगती। जाहिर सी बात है कि समाज में अपने आप को बनाये रखने के लिये जमाने के साथ चलना है। इस बात का भी डर है कहीं पिछड़ न जायें। युवक हों या युवतियां बाइक, कार, कपड़ों के साथ मैचिंग के जूते, चप्पल, हेयर कट, पर्स, हेयर पिन, ज्वैलरी आदि बहुत सी चीजें हैं। जिसे लेकर युवा दीवानगी की हद तक गुजर जाने को तैयार रहते हैं।

 

सदर बाजार के कपड़ा व्यवसाई रमाकांत जैन का कहना है कि युवाओं में आजकल जींस का का क्रेज बहुत ज्यादा है। लड़के चेकदार और ब्राइट कलर के शर्ट अधिक पसंद कर रहे हैं।

व्यवसाई नीरज कुमार गुप्ता का कहना है कि युवकों में डिजाइनदार और लेटेस्ट स्पोर्ट शू की मांग ज्यादा है।

फैशन के हिसाब से मांग बढ़ती और घटती रहती है। सब्जी मंडी के कपड़ा व्यवसाई चंद्रपकाश गुप्ता का कहना है कि युवाओं की मांग फैशन के हिसाब से होती है। लड़के हों या लड़कियां जींस की मांग सबसे ज्यादा है। साथ ही लड़कियों में लेगीज कुर्ती की भी खूब मांग है। उन्होंने बताया कि अक्सर ऐसा होता है कि बाजार में नये डिजाइन आते ही मांग शुरू हो जाती है।

जीन्स

जीन्स डेनिम (कपडे़) के पतलून हैं। मूलतः इन्हें पहनकर मेहनत वाले काम करने के लिए बनाया गया था पर 1950 के दशक मे ये किशोरों के बीच लोकप्रिय हो गये। ऐतिहासिक ब्रांडों में लीवाइस, जोर्डक़ और रैंगलर शामिल हैं। जीन्स आज एक बहुत ही लोकप्रिय अनौपचारिक परिधान है जिसे दुनिया भर मे कई शैलियों और रंगों मे प्रचलित है। ” नीले रंग की जींस ” की पहचान विशेष रूप से अमेरिका की संस्कृति के साथ, विशेष रूप से पुराने वेस्ट (पश्चिम) अमेरिका के साथ जुडी़ है।

इतिहास

जींस के इतिहास पर नज़र डालें तो हमारे सामने 16 वीं शताब्दी की भारतीय निर्यातित मोटा सूती कपडा़ आता है जिसे डुंगारी कहा जाता था। बाद मे इसे नील के रंग में रंग कर मुंबई के डोंगारी किले के पास बेचा गया था। नाविकों ने इसे अपने अनुकूल पाया और इससे बनी पतलूनें वो पहनने लगे।

जीन्स का कपडे़ का निर्माण 1600 की शुरुआत मे इटली के एक कस्बे ट्यूरिन के निकट चीयरी में किया गया था। इसे जेनोवा के हार्बर के माध्यम से बेचा गया था, जेनोवा एक स्वतंत्र गणराज्य की राजधानी थी जिसकी नौसेना काफी शक्तिशाली थी। इस कपडे़ से सबसे पहले जेनोवा की नौसेना के नाविको की पैंट बनायी गयीं क्योंकि इसके नाविको को ऐसी पैंट चाहिये थी जिसे सूखा या गीला भी पहना जा सके तथा इसके पौचों को पोत के डेक की सफायी के समय उपर को मोडा़ जा सके। इन जींसो को सागर के पानी से एक बडे़ जाल में बाँध कर धोया जाता था और समुद्र के पानी उनका रंग उडा़कर उन्हें सफेद कर देता था। जींस का नाम कई लोगों के अनुसार जेनोवा के नाम पर पडा़ है। जींस बनाने के लिये कच्चा माल फ्रांस के निम्स शहर से आता था जिसे फ्रांसीसी मे दे निम कहत थे इसीलिये इसके कपडे़ का नाम डेनिम पड़ गया।

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