Poonam
Jaipur : राजस्थान के सीकर ज़िले में क़रीब पंद्रह हज़ार किसान एक सितंबर से प्रदर्शन कर रहे हैं.
कृषि उपज मंडी पर ऑल इंडिया किसान महासभा के बैनर तले चल रहा ये प्रदर्शन अहिंसक है.
किसानों के इस प्रदर्शन को आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, व्यापारियों और कई ट्रांस्पोर्ट यूनियनों का भी समर्थन हैं.
अब तक एक लाख से अधिक लोग जिनमें युवा भी शामिल हैं, किसानों के प्रति समर्थन जताने के लिए मार्चों में हिस्सा ले चुके हैं.
किसानों की मुख्य मांग पूर्ण क़र्ज़माफ़ी और स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करवाना है.
यही नहीं किसान 2017 में पशुओं के व्यापार पर लगे प्रतिबंध को भी हटवाना चाहते हैं.
किसान अपने लिए पेंशन की मांग भी कर रहे हैं.
11 सितंबर को किसानों ने ज़िला मुख्यालय पर बंद का आह्वान भी किया है.
किसानों के इस प्रदर्शन का नेतृत्व वामपंथी नेता अम्र राम कर रहे हैं. सीपीआई (एम) से जुड़े अम्रराम का कहना है कि वो मानते हैं कि आत्महत्या करना कायरता है इसलिए अपने अधिकारों को पाने के लिए वो लड़ते हुए जान देंगे.
हाल ही में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सरकारों ने किसानों के लिए कर्ज़माफ़ी का ऐलान किया था. पंजाब में भी किसानों का क़र्ज़ माफ़ किया गया है. इसी तर्ज पर अब राजस्थान के किसान आंदोलन पर हैं.
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया अपने पॉलिसी बयान में कह चुकी है कि किसानों का कर्ज़ माफ़ करने का असर बैंकों की वित्तीय सेहत पर पड़ता है.
नहीं मिल रहे फ़सल के सही दाम
हाल के सालों में भारत में किसानों की वित्तीय हालत ख़राब हो रही है. इसी साल मध्यप्रदेश में भी बड़ा किसान आंदोलन हुआ था जिसमें पुलिस की गोलीबारी में छह किसानों की मौत हो गई थी.
किसानों का कहना है कि उनकी लागत बढ़ रही है जबकि उन्हें फसल के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने ही अपने चुनावी मेनिफेस्टों में किसानों को लागत मूल्य के ऊपर पचास फ़ीसदी मुनाफ़ा दिलवाने का वादा किया था.
यही नहीं भाजपा ने किसानों के लिए फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्यों बढ़ाने और दुग्ध उत्पादकों को सब्सिडी देने का वादा भी किया था.
पशु बिक्री पर प्रतिबंध
किसानों की अर्थव्यवस्था पर सबसे ज़्यादा असर तीन महीने पहले पशुओं की बिक्री पर लगाए गए प्रतिबंध का पड़ रहा है. एक अधिसूचना लाकर केंद्र सरकार ने बिक्री के लिए पशुओं को लाने ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था.
इस प्रतिबंध के बाद से बाज़ार में पशुओं के दाम कम हो गए हैं. उदाहरण के तौर पर जो गाय पहले पचास हज़ार रुपए तक की बिक जाती थी उसके अब बीस हज़ार रुपए भी किसानों को मुश्किल से मिल पा रहे हैं. यही हाल भैंसों के दामों का भी हुआ है.
यही नहीं आवारा पशुओं की संख्या भी बड़ी है जिसकी वजह से किसानों को फसलों की निगरानी में भी काफी समय लगाना पड़ रहा है.
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