भोपाल। सरकारी दफ्तरों में खटर-पटर की आवाज कर बड़े-बड़े आदेश बनाने वाले टाइप राइटर अब पुराने जमाने की बात हाते जा रहे हैं, लेकिन इन टाइप राइटर को चलाने वाले कर्मचारी जिस बोर्ड से परीक्षा पास कर नौकरी हासिल करते थे,वह बोर्ड भी अब बंद होने जा रहा है।
सरकार ने 93 साल पहले 1924 में बना टाइपिंग बोर्ड (शीघ्र लेखन मुद्र लेखन परीक्षा परिषद) बंद करने का फैसला लिया है। टाइपिंग बोर्ड में कुछ सालों पहले सामने आए घोटाले और इसका कोई औचित्य ना रह जाने से स्कूल शिक्षा विभाग ने इसे बंद करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग से अनुमति मांगी है।
इस बोर्ड के जरिए शॉर्ट हैंड और टाइपराइटर पर टाइपिंग की परीक्षा आयोजित की जाती थी। 2013 के बाद से बोर्ड ने कोई परीक्षा भी आयोजित नहीं की थी। सरकार के सहायक ग्रेड 3, स्टेनो टायपिस्ट और शीघ्र लेखकों के पद पर नौकरी के लिए पहले टाइपिंग बोर्ड से हिंदी-अंग्रेजी टाइपिंग, हिंदी-अंग्रेजी शॉर्टहैंड की परीक्षा पास करना अनिवार्य थी। अब यह अनिवार्यता समाप्त होगी।
हालांकि स्कूल शिक्षा विभाग अब तक परीक्षा पास कर चुके लोगों के प्रमाण पत्र का सत्यापन कार्य और डुप्लीकेट प्रमाण पत्र बनाने का काम करता रहेगा। स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक कंप्यूटर टाइपिंग अनिवार्य होने के बाद से टाइपिंग बोर्ड का कोई औचित्य नहीं रह गया है। इसलिए इसे बंद किया जा रहा है।
नागपुर से भोपाल शिफ्ट हुआ था बोर्ड
टाइपिंग बोर्ड का इतिहास 93 साल पुराना है। ब्रिटिश इंडिया में 1924 में मध्य भारत प्रांत के लिए इस बोर्ड का गठन किया गया था। पहले इसका मुख्यालय नागपुर में था। 1956 में मप्र बनने पर यह भोपाल आ गया।
भ्रष्टाचार चरम पर था
टाइपिंग बोर्ड में पांच से छह साल पहले बड़ा भ्रष्टाचार भी सामने आया था। बोर्ड के कर्मचारी परीक्षा देने वाले लोगों से पैसे लेकर उन्हें पास कर देते थे। मप्र पुलिस की एसटीएफ ने बोर्ड में छापा मारकर कई अधिकारियों और कर्मचारियों को गिरफ्तार भी किया था।
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