बदनाम औरंगजेब ने बनवाया था बाला जी मन्दिर

बांदा। वैसे तो मुगल शासक औरंगजेब हिन्दुओं के मंदिर तुड़वाने और धार्मिक कट्टरता के लिए बदनाम रहा, लेकिन भगवान राम की तपोस्थली भूमि चित्रकूट के मन्दाकिनी तट पर 328 साल पहले सन् 1683 में ‘बाला जी मन्दिर’ बनवाकर उसने धार्मिक सौहार्द्र की मिशाल भी कायम की थी। इतना ही नहीं, हिन्दू देवता की पूजा-अर्चना में कोई बाधा न आए इसलिए उसने इस मन्दिर को 330 बीघा बे-लगानी कृषि भूमि भी दान की। धार्मिक सौहार्द्र के प्रतीक का यह मन्दिर सरकारी उपेक्षा से ध्वस्त होने की कगार पर है। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल चित्रकूट में भगवान श्रीराम ने अपने बारह साल वनवास के बिताए थे, इसी से यह हिन्दू समाज के लिए विशेश श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। यहां हर माह की अमावश्या को देश-विदेश से आए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होती है। यहां कुछ ऐसे भी ऐतिहासिक मन्दिर हैं जो धार्मिक सद्भावना की मिशाल कायम किए हैं, इनमें से एक है मन्दाकिनी नदी के किनारे गोपीपुरम का ‘बाला जी मन्दिर’।  इसका निर्माण हिन्दुओं के मन्दिर तुड़वाने में बदनाम रहा मुगल शासक औरंगजेब ने 328 साल पहले सन् 1683 में कराया था, जिसके अभिलेखीय प्रमाण अब भी मौजूद हैं। इतना ही नहीं, इस मन्दिर में विराजमान भगवान ‘ठाकुर जी’ की पूजा-अर्चना में कोई बाधा न आए, इसके लिए आठ गांवों की 330 बीघा कृशि भूमि दान कर लगान (भूमि कर) भी माफ की थी। मंदिर तुड़वाने के आदेश इतिहासकार राधाकृष्‍ण बुंदेली बताते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब ने सन् 1669 में जारी अपने एक हुक्मनामे पर हिन्दुओं के सभी मन्दिर ध्वस्त करने का आदेश सेना को दिया था, इस दौरान सोमनाथ मन्दिर, वाराणसी का मन्दिर, मथुरा का केशव राय मन्दिर के अलावा कई प्रसिद्ध मन्दिर तोड़ दिए गए थे। वह बताते हैं कि सन् 1683 में औरंगजेब चित्रकूट आया यह तो इतिहास के पन्नों में दर्ज है, लेकिन किन परिस्थितियों में बाला जी के तिमंजिला मन्दिर का निर्माण कराया इसकी प्रमाणिकता का उल्लेख नहीं मिलता। मन्दिर के पुजारी नारायण दास की मानें तो यहां दो किंवदन्तियां प्रचारित हैं, एक तो यह कि ‘औरंगजेब चित्रकूट आते ही सेना को आदेश दिया था कि सुबह होते ही यहां के सभी मठ-मन्दिर तोड़ कर मूर्तियां नदी में प्रवाहित कर दी जाएं, किन्तु रात में ही सेना के सभी जवानों के पेट में भयंकर दर्द हुआ और औरंगजेब को बाला जी मन्दिर के संत बाबा बालकदास की शरण में जाना पड़ा। बाबा की दी हुई ‘भभूती’ (भस्म) से जवानों का दर्द ठीक हुआ, इस चमत्कार से प्रभावित होकर उसने चित्रकूट के किसी भी मन्दिर को छुआ तक नहीं और इसका निर्माण कराया। दूसरा यह कि कालिंजर किला फतह करने के बाद औरंगजेब को बाबा बालकदास के चमत्कारों के बारे में पता चला तो वह चित्रकूट के मन्दिर तुड़वाने की मंशा त्याग मन्दिर का निर्माण कराया और दान दिया। ताम्रपत्र में टंकित औरंगजेब के फरमान में उल्लेख है कि यह फरमान आलमगीर बादशाह ने शासन के 35 वर्श रमजान की 19वीं तारीख को जारी किया है, फरमान के लेखक नवाब रफीउल कादर सआदत खां वाकया नवीश थे। फरमान को रमजान की 25वीं तारीख में जमाल मुल्क नाजिम आफताब खां ने शाही रजिस्टर में अंकित किया है, जिसका सत्यापन एवं प्रमाणीकरण मुख्य माल अधिकारी मातमिद्दौला रफीउल शाह ने किया है। फारसी भाषा में लिखे गए इस राजाज्ञा फरमान की इबारत को कालिंजर के रहने वाले वशीर खां पढ़ते हैं और हिन्दी अनुवाद कर बताते हैं, इस राजाज्ञा में लिखा गया है कि बादशाह का शाही आदेश है कि इलाहाबाद सूबे के कालिंजर परगना के अंतर्गत चित्रकूट पुरी के निर्वाणी महन्त बालक दास जी को ठाकुर बाबा जी के सम्मान में उनकी पूजा व भोग के लिए बिना लगानी माफी के रूप में आठ गांव देवखरी, हिनौता, चित्रकूट, रौदेरा, सिरिया, पड़री, जरवा और दोहरिया दान स्वरूप प्रदान किए गए हैं और 330 बीघा बिना लगानी कृषि योग्य भूमि राठ परगना के जाराखाड़ गांव की 150 बीघा व अमरावती गांव की 180 बीघा के साथ-साथ कोनी परोष्‍ठा परगना की लगान वसूली से एक रुपया दैनिक अनुदान भी स्वीकृत किया गया है। आज भी मौजूद है
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औरंगजेब का फरमान इस फरमान में बादशाह औरंगजेब का यह भी आदेश दर्ज है कि राज्य के वर्तमान तथा भावी सामंत जागीरदार आठों गांवों सहित दान की सारी जायदाद को पीढ़ी दर पीढ़ी बिना लगानी माफी के रूप में मानते चले जाएंगे, इसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे तथा राजाज्ञा के विपरीति कोई कदम न उठाएंगे। औरंगजेब के इस फरमान को सन् 1814 में चित्रकूट के आधिपति पन्ना नरेश महाराज हिन्दूपत और बाद में ब्रिटिश हुकूमत ने भी स्वीकार कर बरकरार रखा। पुजारी के पास ब्रिटिश शासन काल में उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणित फारसी भाशा के अंग्रेजी अनुवाद की प्रति भी मौजूद है। बाला जी मन्दिर के पुजारी नारायण दास का कहना है कि वह दान में मिले गांवों मे से जरवा गांव की कृशि भूमि के लिए अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, अन्य गांवों की भूमि का अता-पता ही नहीं है। मन्दिर के भवन पर नगर पालिका पशिद कर्वी में कई लोग नाम मात्र की किरायादारी दर्ज कराकर अवैध कब्जा कर लिए हैं और अवैध निर्माण कर मन्दिर का नक्शा तक बदल दिया। शायद देश में किसी हिन्दू देवता का यह पहला मन्दिर होगा जिसका निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने कराया है। मन्दिर की दीवारें दरक चुकी हैं, परिसर में अवैध कब्जाधारकों के पालतू पशुओं के गोबर का ढेर लगा है। पुरातत्व विभाग ने इस धरोहर को अब तक अधिग्रहीत नहीं किया और न ही संरक्शित करने के प्रयास ही किए। धार्मिक सौहार्द्र के प्रतीक का यह मन्दिर सरकारी उपेक्शा से नेस्तनाबूद होने के कगार पर है। जिलाधिकारी चित्रकूट दलीप कुमार गुप्ता कहते हैं कि ‘वह जल्द ही पुरातत्व विभाग को सौंपने के लिए शासन को पत्र लिखेंगे और मन्दिर को अवैध कब्जाधारकों से मुक्त कराएंगे।’
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