फ़िल्म समीक्षा : जग्गा जासूस

बॉलीवुड में एक मजेदार, फ़ैमिली फ़िल्म जिसे बच्चों के साथ बैठकर देखा जाए, बहुत कम देखने को मिलती हैं । जब जग्गा जासूस का ऐलान हुआ तो ऐसा लग रहा था कि यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा में इस शून्य को भरने में कामयाब होगी । लेकिन फ़िल्म में हुई देरी और फ़ैली नकारात्मक खबरों ने फ़िल्म के उत्साह को खत्म कर दिया । और अब जब यह फ़िल्म रिलीज हुई है तो क्या यह फ़िल्म वास्तव में मनोरंजन प्रदान करती है और दर्शकों को हैरान करती है या यह ऊबाऊ हो जाती है, आइए समीक्षा करते हैं ।

जग्गा जासूस एक म्यूजिकल एडवेंचर फ़िल्म है जिसमें एक नौजवान जासूस अपनी महिला साथी के साथ अपने खोए हुए पिता की खोज में लगता है । जग्गा (रणबीर कपूर) जन्म से ही अनाथ हैं और एक अस्पताल में बड़ा होता है । उसका एक मरीज बडोल बागची (शाश्वत चटर्जी), के साथ काफ़ी अच्छा रिश्ता बन जाता है और फ़िर वो उसे गोद ले लेता है । जग्गा बोलते हुए हकलाता है लेकिन उसके पिता जग्गा से कहते हैं कि अगर वह गाते हुए बोले तो वह पूरी बातें सही ढंग से बोल पाएगा । घटनाओं में एक रहस्यमय मोड़ आता है और बागची जग्गा को बोर्डिंग स्कूल में दाखिला करवा देता है और किशन (सौरभ शुक्ला) के तहत एक महत्वपूर्ण मिशन के लिए छोड़ देता है । जग्गा के दिमाग में जासूसी का कीड़ा विकसित होता है और अपने स्कूल के चारों ओर छोटे मामलों को सुलझाना शुरू करता है । एक केस के दौरान, उसका सामना श्रुति सेनगुप्ता (कैटरीना कैफ) से होता है और दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन जाते हैं । जब जग्गा को पता चलता है कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे तो वह सच का पता लगाने की कोशिश करता है और श्रुति से इस मामले में मदद लेता है । क्या जग्गा अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए गलत लोगों को बेनकाब करने में कामयाब हो पाता है, यह फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

जब फ़िल्म का ट्रेलर और टीजर रिलीज किया गया था तब उसने जग्गा जासूस के बारें में फ़ैली नकारात्मक खबरों को निरुत्तर कर दिया था । दोनों में ही फ़िल्म की भव्यता, संगीत, काल्पनिक एलिमेंट को बहुत ही खूबसूरती के साथ दिखाया गया । हालांकि, तकनीकी रूप से शानदार और उच्च श्रेणी के वीएफएक्स होने के बावजूद, निर्देशक जग्गा जासूस के साथ न्याय करने में असफ़ल हो जाते हैं । जग्गा जासूस की लवली म्यूजिकल बच्चों की फ़िल्म के रूप में शुरूआत हुई थी, लेकिन फ़िर भी यह फ़िल्म बर्फ़ी की याद दिलाती है । यहां तक कि ‘पिक्चर शुरु’ यहां बजता है, बिल्कुल बर्फ़ी की तरह । लेकिन यह गाना जग्गा जासूस पर ज्यादा सूट करता है, इसके संगीत विषय के लिए अधिक धन्यवाद । जैसे ही जग्गा बड़ा होता है और हत्या की गुत्थी सुलझाने की कोशिश शुरु करता है वैसे ही फ़िल्म में किड-फ़्रेंडली एलीमेंट फ़िल्म शुरू होने के 15 मिनट के अंदर खत्म हो जाता है । जब जग्गा टीचर के हत्या की गुत्थी को हल करता है तो वो देखना काफ़ी अच्छा लगता है । फ़िल्म में श्रुति की एंट्री फ़िल्म को एक अलग स्तर पर ले जाती है और पूरा अम्यूजमेंट पार्क सीन फ़िल्म में छा जाते हैं । हैरानी की बात ये है, और यह बात सभी को आश्चर्यचकित करती है कि कैसे दोनों हर बार बुरे लोगों पर जीतने में सक्षम हो जाते हैं । इंटरवल के बाद, पागलपन मोम्बाका में शिफ़्ट हो जाता है, और जग्गा के खोए हुए पिता की खोज शुरू होती है और यहां से, फ़िल्म को और भी ऊंचा चले जाना चाहिए था । लेकिन दुख की बात ये है कि ऐसा नहीं होता है और यहां फ़िल्म जबरदस्ती की खीची हुई और बिखरी हुई सी लगती है । फिल्म अनावश्यक क्षेत्र में चली जाती है- उदाहरण के लिए, ‘खाना खाके’ गाना फ़िल्म के उद्देश्य को पेश नहीं करता है । फ़र्स्ट हाफ़ के दौरान जग्गा बातचीत करते समय गाना गाते हुए ही नजर आता है लेकिन यही सेकेंड हाफ़ में रुक जाती है । और इसका नतीजा यह निकलता है कि जग्गा बहुत ज्यादा हकलाने लगता है और जिसे देखकर यह कहने की जरूरत नहीं है कि एक बिंदु के बाद, यह दर्शकों के धैर्य का परीक्षण करता है । ये सब बेवकूफ़ियां नकार दी जाती यदि अंत में कुछ पंच होता तो । हैरानी की बात है कि फ़िल्म का अंत बहुत ही अप्रत्याशित और हंसने योग्य होता है । जग्गा अंत में आतंकवाद को खत्म करने का समाधान बताता है जिसका कोई मतलब नहीं होता है । हालांकि, अंतिम दृश्य एक झटकेदार है और संकेत देता है कि अगली कड़ी निकट भविष्य में आ सकती है ।

फिल्म में बहुत सारे तालबद्ध संवाद हैं और उनमें से प्रत्येक रचनात्मक रूप से लिखे गए हैं । हालांकि बाकी के सभी डायलॉग बहुत साधारण हैं । ऐसा लगता है कि अनुराग बसु के पास कोई संरचित प्लॉट नहीं था और चीजों को बहुत बेतरतीब से रखा गया है । पटकथा दोषपूर्ण, खींची हुई लगती है विशेष रूप से सेकेंड हाफ़ में । सिनेमाई स्वतंत्रताएं ढेर सारी हैं- जब पुलिस की मौजूदगी में जग्गा आसानी से क्राइम सीन में घुस जाता है और हत्या किए हुए व्यक्ति के सामान की जांच करता है और ऐसा करते हुए कोई भी आश्चर्य प्रकट नहीं करता है । इस सम्बन्ध में, इंतरवल के बाद चीजें बदतर होती चली जाती हैं जब जग्गा आसानी से दुश्मन के खतरनाक क्षेत्र में घुसता है और काफ़ी आसानी से बाहर भी आ जाता है । कोई भी यह तर्क दे सकता है कि ऐसी सिनेमाई स्वतंत्रताएं ठीक हैं क्योंकि ये बच्चों के लिए लक्षित फिल्म है । हालांकि, यह हिस्सा भी विवादास्पद है क्योंकि कहानी इतनी आसान नहीं है और न ही बच्चों के लिए है । इसके अलावा, यह फ़िल्म नक्सली, हत्या, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद आदि के बारे में भी काफ़ी कुछ कह जाती है । जो की बच्चों के लिए आसानी से समझ में नहीं आ सकती है । इसके अलावा, फ़िल्म का क्लाइमेक्स फ़िल्म का सबसे बेहतरीन हिस्सा होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं होता है और यह असम्बद्ध सा लगता है । असल फ़िल्म में ऐसे कई सीन है जो एक दूसरे से कोई कनेक्शन नहीं रखते हैं । यह सभी को पता है कि अनुराग बसु को इस फ़िल्म को बनाने में करीब साढ़े तीन साल लग गए और उसके बाद ये देखने को मिला, इसे देखकर कोई भी कह सकता है वह फिल्म के बारे में कितने भ्रमित और खो गए थे ।

जग्गा जासूस पूरी तरह से रणबीर कपूर के कंधो पर टिकी हुई है । रणबीर कपूर, जो एक ऐसे अभिनेता हैं जो अपने हर रोल में एक ताजगी लेकर आते हैं, पूरी तरह से अपने किरदार में समाए हुए नजर आते हैं और इस बार भी वो कुछ नया लेकर आने की कोशिश करते हैं । उनका हकलाना थोड़ा सा अवास्तविक सा लगता है लेकिन वहीं उनका गायन पक्ष बहुत ही अच्छी तरह से दिखाई पड़ता है । उनका संजीदा अभिनय ही इस फ़िल्म को देखने का एकमात्र कारण बनता है । वहीं दूसरी ओर कैटरीना कैफ़ बहुत ही खूबसूरत दिखती हैं और बहुत ही बखूबी से रणबीर कपूर के साथ-साथ चलती हैं । फ़िल्म में वह अपनी बेवकूफ़ी से हास्य का माहौल पैदा करती है जो अच्छी तरह से काम करता है । शास्वाता चटर्जी, जिसने कहानी फ़िल्म में बॉब बिस्वास का बेहतरीन किरदार अदा किया था, इस फ़िल्म में बहुत जंचते हैं और उन्होंने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया है । सौरभ शुक्ला कड़ाई से ठीक है और अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं करते है । सयानी गुप्ता, जिसने मार्गरीटा विद ए स्ट्रॉ, फैन और जॉली एलएलबी 2 के साथ लोकप्रियता अर्जित की, वह इसमें काफी हद तक बर्बाद होती है । सयानी ने फ़िल्म में 14 साल की लड़की का किरदार अदा किया है और बहुत ही अच्छी तरह निभाया भी है लेकिन अफ़सोस फ़िल्म में वह बहुत कम नजर आती हैं । वो कलाकार जिसने बचपन के जग्गा का किरदार निभाया, टीचर का, मिस माला का और अन्य का, सभी ने बहुत ही उम्दा प्रदर्शन किया है ।

जग्गा जासूस, म्यूजिकल फ़िल्म होने की वजह से डायलॉग की कमी रखती है और इसमें गाने ज्यादा है । प्रत्येक गाने को याद रखना मुश्किल है क्योंकि इसमें करीब 20-30 गाने हैं और कोई भी वास्तव में रजिस्टर नहीं है । वास्तव में, एक बिंदु के बाद, जब किरदार गाना गाते हैं तो आप डरने लगते हो । हालांकि ‘गलती से मिस्टेक’ अपनी पिक्चरराईजेशन और अलग प्रकार के डांस के चलते बहुत ही शानदार लगता है । ‘खाना खाके’ अच्छा गीत है लेकिन इसकी फ़िल्म में कोई जरूरत नहीं थी । बैकग्राउंड स्कोर बहुत जोरशोर वाला है और कभी-कभी, फ़िल्म की कार्यवाही से ध्यान खींचता हैं ।

रवि वर्मन का छायांकन ध्यान आकर्षित करने वाला है । यह फ़िल्म कुछ खूबसूरत स्थानों पर शूट की गई है और कैमरा मैन ने बहुत ही खूबसूरती से उन्हें कैप्चर किया है । आर्ट और वीएफ़एक्स डिपार्टमेंट को विशेष उल्लेख मिलना चाहिए । अजय शर्मा की एडिटींग निराश करती है । यह फ़िल्म 2 घंटे 41 मिनट लंबी है जिसमें दृश्यों को बुरी तरह से एक के साथ जोड़ा गया है ।

कुल मिलाकर, जग्गा जासूस एक बुरी तरह से लिखी गई और बहुत खराब तरह से बनाई गई म्यूजिकल फ़िल्म है । यह फ़िल्म न तो बच्चों और न ही वयस्कों के लिए कोई मनोरंजन मूल्य प्रदान करती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म काफ़ी संघर्ष करेगी ।

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