भोपाल। मध्यप्रदेश में भिक्षावृत्ति पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार ने नियम तो कड़े बना रखे है, परन्तु भिक्षावृत्ति रोक पाने में सरकार नाकामयाब है। यहां तक कि प्रदेश में करीब 30 हजार भिखारियों के रहने के लिए बनाए जाने वाले भिक्षुक गृह और भिक्षुक प्रवेश केंद्र भी बनाने से कैबिनेट ने इंकार कर दिया है, जबकि मप्र मानव अधिकार आयोग ने तीन साल पहले लिए अपने एक निर्णय में प्रदेश में भिक्षावृत्ति पर पूर्णता: प्रतिबंध लगाने के निर्देश राज्य सरकार को दिए थे, जबकि भिखारियों के मामले में मप्र अभी भी अन्य राज्यों से पांचवें स्थान पर है। खासकर भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर जैसे शहर ही नहीं, बल्कि धार्मिक स्थलों पर भी भिखारियों की संख्या ज्यादा है। मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने 2014 में निर्णय लिया था कि प्रदेश में भिक्षावृत्ति पर पूर्ण रूप से रोक लगाई जाए तथा भिखारियों को रहने के लिए भिक्षुक गृह निर्मित किए जाए। इस मामले में सामाजिक न्याय विभाग ने वर्ष 2012-17 के तहत प्रस्ताव रखा था कि मप्र विकासशील राज्यों की श्रेणी में आ रहा है। ऐसी स्थिति में बडेÞ शहरों की सड़कों के चौराहों पर भीख मांगते पाए जाने वाले भिखारियों की वजह से प्रदेश की छवि धूमिल हो रही है। कैबिनेट ने नहीं दी स्वीकृति: इस कारण प्रदेश में भिक्षुक गृह की स्थापना करने कैबिनेट में प्रस्ताव रखा गया, लेकिन कैबिनेट ने इसे स्वीकृति नहीं दी।
इसके बाद विभागीय प्रस्ताव फिर कैबिनेट में लाया गया, जिसमें ग्वालियर, जबलपुर, भोपाल, रीवा, सागर, उज्जैन शहर सहित धार्मिक स्थल चित्रकूट, ओंकारेश्वर, मैहर तथा अमरकंटक आदि में भिक्षुक प्रवेश केंद्र (पुनर्वास स्थलों) की स्थापना की जाए, मगर इस प्रस्ताव को भी मंत्रिपरिषद ने ठुकरा दिया।
क्या कहते हैं नियम
मप्र में भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1973 के अंतर्गत भिखारी के रूप में भिख मांगने पर पकड़े जाने पर प्रथम बार के लिए दो वर्ष का कारावास और दूसरी बार पकडे जाने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है। यह कार्य पुलिस, स्कूल शिक्षा तथा सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों को संयुक्त रूप से करना है, लेकिन आज तक किसी भी भिखारी को पकड़ा नहीं गया है।
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