FILM REVIEW: पैसा वसूल फन राइड की तरह है ‘ढिशूम’, लेकिन दिमाग घर छोड़ कर आएं

इस फिल्म का जब पहला पोस्टर जारी हुआ तो चर्चा हुई कि यह ‘धूम’ स्टाइल की फिल्म होगी। बाद में जब इसका ट्रेलर आया तो साफ हो गया कि निर्देशक रोहित धवन, जो कि अभिनेता वरुण धवन के भाई और निर्देशक डेविड धवन के बेटे हैं, ने ‘धूम’ की कामयाबी को भुनाने के लिए एक तेज तर्रार, स्टाइलिश एक्शन और कॉमेडी से भरपूर कोई फिल्म बनाई है। अच्छी बात ये है कि ‘ढिशूम’ बिल्कुल अपने ट्रेलर जैसी ही है। दो घंटे चार मिनट की ये फिल्म एक फन राइड की तरह है, जिसमें कई जगहों पर तर्क की बात करना बेमानी सा लगता है।

फिल्म की कहानी मिडिल ईस्ट में भारतीय क्रिकेट टीम के विस्फोटक बल्लेबाज विराज शर्मा (साकिब सलीम) के अपहरण से शुरू होती है। आईपीएल की पृष्ठभूमि में जिस ढंग से पहले सीन से ही इस किरदार को दर्शाया गया है, उससे बताने की जरूरत नहीं है कि फिल्म मेकर आखिर किस बल्लेबाज की तरफ इशारा कर रहा है। विराज का अगला यानी फाइनल मैच पाकिस्तान के साथ है। ये खबर जब भारतीय विदेश मंत्री तक पहुंचती है तो वह पूरी टीम को इंडिया वापस आने का हुक्म देती है। लेकिन अपहरणकर्ता की शर्त है कि अगर ऐसा हुआ तो वह विराज को मार डालेगा। वह चाहता है कि भारत-पाक का फाइनल मैच जरूर हो, लेकिन विराज के बगैर।

मामले की जांच के लिए भारत से स्पेशल टास्क अफिसर कबीर शेरगिल (जॉन अब्राहम) मिडिल ईस्ट भेजा जाता है। तहकीकात के हर काम को अपने ढंग से अंजाम देने वाला ये अफसर अपने अड़ियल रवैये और गुस्से के कारण बदनाम है। विराज के होटल के कमरे का जायजा लेने के बाद कबीर वहां की लोकल पुलिस के साथ अपनी शर्तों पर काम करने लगता है। इसके लिए वह अपनी पसंद का एक पुलिस अफिसर भी चुनता है। कबीर, जुनैद अंसारी (वरुण धवन) नामक एक पुलिस आफिसर के साथ मिल कर विराज की खोज नए सिरे से शुरू करता है और जल्द ही उसे कई नई चीजें पता चलती हैं। उसे पता चलता है कि अपहरण वाली रात विराज किसी के साथ एक पार्टी में गया था। इसी दौरान किसी तरह से विराज का फोन ट्रेस हो जाता है। फोन की खोज उन्हें इशिका उर्फ मीरा (जैक्लीन) तक ले जाती है, जो छोटी-मोटी चोरियां करती है।

वो कबीर-जुनैद को बताती है कि उसने ये फोन एक स्टोर में एक व्यक्ति की जेब से उड़ाया था, जिसे वह नहीं जानती। इशिका की निशानदेही पर उस व्यक्ति का एक स्कैच तैयार करवाया जाता है, जिससे पता चलता है कि वह एक पश्तून है। पता चलता है कि वह शख्स अलताफ (राहुल देव) है, जो एक खतरनाक इलाके में रहता है। जांच आगे बढ़ती है तो वाघा (अक्षय खन्ना) नामक एक बुकी का चेहरा सामने आता है, जिससे विराज का अपहरण सिर्फ इसलिए किया है कि उससे उसे सट्टेबाजी में करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है।

एक कमजोर कहानी से त्रस्त दिखती ये फिल्म सिर्फ और सिर्फ अभिनेता वरुण धवन की वजह से आकर्षित करती है। हालांकि जॉन के साथ उनकी अच्छी जमी है, लेकिन कबीर शेरगिल जैसा किरदार जॉन पहले भी कर चुके हैं। इसलिए उनके किरदार में नएपन जैसी कोई बात नहीं दिखती। वरुण का अभिनय सहज और आकर्षक लगता है। अपनी कॉमिक टाइमिंग से वह पहले भी प्रभावित कर चुके हैं। उनका किरदार ‘धूम’ के अली (उदय) जैसा है, लेकिन उसे उन्होंने अपने स्टाइल से निभाया है। फिल्म की दूसरी खूबी है इसका फिल्मांकन, लोकेशंस और एक्शन। फिल्म के क्लाईमैक्स में एक बड़े चॉपर पर जिस ढग से डॉन और वरुण ने लटक कर स्टंटबाजी की है वो बढ़िया है। पश्तून के इलाकों में भाग-दौड़ के सीन्स भी मजा देते हैं।

एक आईडिया के रूप में इस फिल्म का कथानक पहली नजर में भाता है, लेकिन सीन दर सीन कई जगह रोचकता का अभाव भी झलकता है। रोहित धवन ने एक स्टाइलिश फिल्म को एक्शन और स्टंटबाजी के चक्कर में अपनी और किरदारों की ‘सहूलियत’ के हिसाब से बहुत ज्यादा स्वतंत्रता दे डाली है। ये खटकने वाली बात है कि लगभग हाथ से निकलता वाघा अचानक एक हास्यास्पद ढंग से कबीर-जुनैद के सामने आ जात है, जबकि वह एक शातिर इंसान है। ऐसे कुछेक छेद इस फिल्म में हैं।

जॉन और वरुण के अलावा लंबे अर्से बाद दिखे अक्षय खन्ना स्क्रीन पर असरदार दिखे। हालांकि उनके किरदार को और अच्छे ढंग से मजबूती दी जा सकती थी। जैक्लीन अच्छी लगी हैं, लेकिन उनके करने के लिए कुछ खास है नहीं। फिल्म का एक गीत ‘सौ तरह के मर्ज ले लूं…’ सुनने और देखने, दोनों में अच्छा है। इसकी मैलोडी पूरी फिल्म में चलती है। कुल मिला कर ‘ढिशूम’ एक मसाला एंटरटेनर है, जिसे वरुण धवन की वजह से देखा जा सकता है। लॉजिक और तथ्यों से परे इस फिल्म में दिमाग धुनने की गुंजाइश नहीं है, इसलिए सिर्फ मजा लेने के लिए इसे देख सकते हैं। और हां, आपको अंत तक पता नहीं चलेगा कि फिल्म का नाम ‘ढिशूम’ क्यों रखा गया है…

रेटिंग : 2.5 स्टार

कलाकार: जॉन अब्राहम, वरुण धवन, जैक्लीन फर्नानडिस, अक्षय खन्ना, साकिब सलीम, नर्गिस फाखरी

निर्देशक-लेखक: रोहित धवन

निर्माता: साजिद नाडियाडवाला, सुनील ए. लुल्ला

संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

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