मोह के फंदे से मुक्त करे वो गुरू – महामंडलेश्वर पुरोहित

सीहोर। गुरू कृपा सिंधु है, और गुरू कृपा करेंक अपनें शिष्यों को मोह रूपी अधंकार से छुटकारा दिलाता है । गुरू मुख व्यक्ति एक न एक दिन पूर्णत्व  को प्राप्त करता है । गुरू पूर्णिमा के अर्थ यही है कि हमें पूर्णिमा के चंद्रमा के तरह पूर्ण होना है। उक्त उदगार  स्थानीय गीता भवन चल रहे गुरू पूर्णिमा के उत्सव में श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर यशोदा नंदन महाराज पंडित अजय पुरोहित ने व्यक्त किये। उन्होने पूर्णिमा की व्याख्या करते हुए जो अपने अंतर में उतरकर आत्मदर्शन कर ले वही पूर्ण है।

महामंण्डलेश्वर ने आगे व्याख्या करते हुए कहा कि गुरू शिष्य का मोह भंग करते हुए उस ईश्वर से जोड़ देता है गुरू के मोह भंग का तरीका केवल उनके वचन है। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने सदगुरू बनकर अर्जुन को गीता सुनाकर उसका मोह भंग किया। गुरू आपके बीच है, और दूर भी है। परतंत्र है मगर परम स्वतंत्र है। जब गीता का उपदेश पूरा हुआ तो भगवान कृष्ण ने पूछा अर्जुन कैसा लग रहा है,अर्जुन ने उत्तर दिया आज मेरा सारा मोह भंग हो गया। कार्यक्रम में संपूर्ण भारत वर्ष के हजारों शिष्य उपस्थित रहे। 

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