शैलेष तिवारी।
महापोधरोपण अभियान! देश की 1 जुलाई की तारीख जी एस टी के नाम तो प्रदेश की 2 जुलाई की तारीख पौध रोपण के बनने जा रहे विश्व रिकार्ड के नाम कही जा सकती है। जो हो रहा है वो कई सालों से हो रहा है। अगर वो होना परवान चढ़ जाए तो हम सब सावन के अंधे जैसे कहलाने लगें। अंधेपन को लेकर एक कहावत और याद आ गयी कि कानून अंधा होता है। पौध रोपण के मामले में वो ऐसा अँधा हुआ है कि रेवड़ी अपने वालों को बांटने में आँख वालों को भी मात कर रह है।
मामला जिले की नसरुल्लागंज तहसील के ग्राम छीपानेर का है। ये वही छीपानेर गाँव है जो धूनी वाले दादा जी के गाँव के रूप में भी पहचान रखता है। इसी गाँव की सरजमीं पर प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने गिनीज बुक ऑफ़ रिकार्ड के लिए दो हेक्टेयर जमीन पर पौध रोपण किया। इस जमीन पर 1250 पौधे लगाए गए हैं, जिनमें अधिकतर आम के ही हैं।
दिलचस्प मामला यह है कि जिस जमीन पर पौधों को रोपित किया गया है। वो जमीन सरकारी रिकार्ड में सरकारी है लेकिन कब्जे में किसी असरकारी के है। कभी इस जमीन को तीन गाँवों नारायणपुर, छीपानेर और झग्लाय के चौकीदारों को दी गयी थी। जिनके नाम शंकर संतोष और रामनाथ बताये गए हैं। जमीन रिकार्ड में सरकारी ही बनी रही। 90 के दशक में यहाँ पर एक सरकारी नर्सरी की स्थापना हुई और चौकीदार जमीन से बेदखल हो गए। नर्सरी भी अन्य सरकारी योजनाओं की तरह दम तोड़ गयी। सरकारी जमीन पर असरकार का कब्जा हो गया।
अब प्रदेश में पौध रोपण शुरू हुआ। इसी जमीन पर सरकारी कारिंदों की नजर पड़ी और इसे पौध रोपण के लिए चुन लिया। जमीन पर कब्ज़ा था, वो हट नहीं पाया। तो तरीका निकाला गया कि जमीन पर आम के पौध रोप कर उसे जमीन के कब्जा मालिक के हवाले कर दी जाएगी। पौधों की देख रेख कब्जाधारी ही करेगा।
ये अलग बात है कि इस देख रेख के लिए उसे सरकारी खजाने से खर्चा भी दिया जाएगा। जब ये पौधे पेड़ बनकर फल देने लगेंगे तो आधे फल ग्राम पंचायत को कब्जाधारी सौंपेगा। इसका बाकायदा अनुबंध होना बताया है। ये पांच साल का है।
बहरहाल सरकार इस क्षेत्र में असरकारी क्यों नहीं हो पाती कि अपनी ही जमीन को सार्वजनिक हित में वापस ले सके, ऐसे कितने किस्से होंगे बताना मुश्किल है। कानून के मुताबिक़ जितने प्रावधान जमीन का अधिग्रहण किये जाने के हैं। वो यहां बेअसर नजर आये या बना दिए गए। अंधा ऐसा आँख वाला बना कि रेवड़ी बांटने के वक्त उस से अपनों को पहचानने में कोई भूल नहीं हुयी।
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