विस्‍थापन का दर्द: निसरपुर डूबेगा… और छूट जाएंगे सहेलियों के हाथ

जिसे आप देख रहे हैं यह केवल एक फोटो नहीं… जिन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं, वो सिर्फ दो बालमन (आयूषी प्रजापत और कामिनी पाठक) का संवाद नहीं। ये तस्वीर, सच का वह दस्तावेज है, जिसमें ‘रंगहीन” जल्दी ही जल प्रलय का हिस्सा हो जाएगा और ‘रंगीन” अपने बचे रहने पर पश्चाताप-प्रलाप करेगा। ये संवाद उन तमाम लोगों की अव्यक्त पीड़ा है, जो अपने ही ‘पुरखों” से अलग कर दिए गए हैं। धार जिले के निसरपुर का बड़ा हिस्सा महा-जलराशि बन जाएगा और दूसरा तट बनकर अपनी ही तलछट निहारेगा।

निसरपुर के इस ‘सागर” से भले ही दूर गांव में विकास के बादल उड़ें, लेकिन यहां के ‘सपने’ यहीं समाध्ाि ले लेंगे। जहां के लोग परिंदों से लेकर मेहमानों तक को शरण देते थे, सरकार का मुआवजा थाम दूसरे गांव में शरणार्थी हो जाएंगे। निसरपुर का एक हिस्सा आज भले ही अपने बचे होने पर हंस ले, लेकिन 31 जुलाई के बाद पानी इस पूरे गांव को ‘बेपानी’ कर देगा…

विस्थापन का दर्द

तू कैसे खुलकर हंसती है?

जिस तरह से तू।

तू किस कक्षा में पढ़ती है?

जिस कक्षा में तू।

तू किस गांव की छोरी

जिस गांव की तू।

मेरा गांव है क्यूं काला, तेरा गोरा क्यों?

पप्पा कहते हैं…तेरे गांव में पानी आएगा,

सब डूबेगा

खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, हाट-बाजार

सब!

…सचमुच!

हम जहां खेलते थे छुपा-छुपाई, गिल्ली-डंडा

फुगड़ी-उगड़ी…सब जगहें डूबेंगी!

क्या हम भी डूबेंगे, घर भी डूबेंगे… अपना

स्कूल भी डूबेगा!

सबका मतलब सब ही होता है पगली

जो भागेगा, वही बचेगा, चल भाग यहां से.

Be the first to comment on "विस्‍थापन का दर्द: निसरपुर डूबेगा… और छूट जाएंगे सहेलियों के हाथ"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*


error: Content is protected !!